उत्सर्जन पर न लगाई लगाम तो बारिश में आते बदलावों से जूझ रही होगी दुनिया की 66 फीसदी आबादी

अनुमान है कि बढ़ता उत्सर्जन भारत में भी बारिश के पैटर्न को प्रभावित करेगा, इससे सदी के अंत तक सालाना होने वाली बारिश में इजाफा हो सकता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 23 January 2024
 
गुवाहाटी में भारी बारिश के बाद स्कूल से घर लौटती बच्ची। जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण देश में जलभराव एक गंभीर समस्या बनती जा रही है; फोटो: आईस्टॉक

जलवायु में आता बदलाव एक ऐसी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। आज इसके प्रभाव अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आ रहे हैं। इनमें से एक है बारिश के पैटर्न में आता बदलाव। शोधकर्ताओं के एक अंतराष्ट्रीय दल द्वारा इस बारे में किए अध्ययन में सामने आया है कि यदि समय रहते बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम न लगाई गई तो सदी के अंत तक दुनिया की दो-तिहाई (65.6 फीसदी) आबादी यानी करीब 500 करोड़ लोग बारिश के पैटर्न में आते बदलावों से प्रभावित होंगें।

देखा जाए तो बारिश के पैटर्न में आता यह बदलाव कहीं बारिश में वृद्धि करेगा तो कहीं इसमें कमी की वजह बनेगा। मतलब की इसकी वजह से कहीं बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ जाएगा तो कहीं सूखे जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। हालांकि दोनों ही तरह से यह लोगों को प्रभावित करेगा।

गौरतलब है कि जहां एक तरफ बारिश में होती वृद्धि से बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ जाएगा वहीं दूसरी तरफ बारिश की कमी, दुनिया के कई हिस्सों में सूखा और पानी की कमी की वजह बन सकती है।

रिसर्च के मुताबिक इसकी वजह से एक तरफ जहां 87.5 करोड़ से ज्यादा लोग यानी दुनिया की 11 फीसदी आबादी बारिश में कमी का अनुभव करेगी वहीं दूसरी तरफ 435 करोड़ लोग (54.6 फीसदी आबादी) सामान्य से ज्यादा बारिश का सामना करने को मजबूर होंगें। बता दें कि यह आंकड़े उच्च उत्सर्जन परिदृश्य (आरसीपी 8.5 या एसएसपी5- 8.5) पर आधारित हैं। इस परिदृश्य का मतलब है कि दुनिया में होता उत्सर्जन सदी के अंत तक इसी तरह तेजी से बढ़ता रहेगा।

वहीं रिसर्च में मध्य उत्सर्जन परिदृश्य (आरसीपी 4.5 या एसएसपी2- 4.5) के तहत बारिश के पैटर्न में आने वाले बदलावों का जो आंकलन किया गया है उससे पता चला है कि इन बदलावों की वजह से सदी के अंत तक 38 फीसदी आबादी यानी करीब 300 करोड़ लोग प्रभावित होंगें। यह वो परिदृश्य है जिसके तहत सदी के अंत तक उत्सर्जन का स्तर 2050 से करीब आधा रह जाएगा।     

अनुमान है कि इस परिदृश्य में जहां 3.3 फीसदी आबादी (26.7 करोड़ लोग) बारिश की कमी से प्रभावित होगी। वहीं 34.7 फीसदी आबादी (267 करोड़) को बारिश में होती वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।

यह सही है कि जलवायु में आता बदलाव बारिश को प्रभावित कर रहा है। लेकिन इस बारे में अब तक निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह बदलाव दुनिया भर में बारिश को कैसे प्रभावित कर रहा है। इस अनिश्चितता ने हमारे लिए जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाना और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार रहना मुश्किल बना दिया है।

लेकिन इस नए अध्ययन में काफी हद तक इस तस्वीर को स्पष्ट कर दिया है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल की मदद से उन स्थानों की पहचान की है जहां जलवायु में आते बदलावों से बारिश का पैटर्न प्रभावित हो सकता है। साथ ही वहां होने वाली बारिश में कमी आएगी या इजाफा होगा इसकी पुष्टि भी वैज्ञानिकों ने की है।

भारत में हो सकती है बारिश में 30 फीसदी की वृद्धि

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1980 से सदी के अंत तक 120 वर्षों में बारिश के पैटर्न में आए और आने वाले बदलावों को स्पष्ट किया है। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने वैश्विक उत्सर्जन से जुड़े दो परिदृश्यों को ध्यान में रखा गया है। साथ ही गणना के लिए 146 क्लाइमेट मॉडलों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि भविष्य में कई देशों को शुष्क परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। इनमें सबसे अधिक प्रभावित देशों में ग्रीस, स्पेन, फिलिस्तीन, पुर्तगाल और मोरक्को शामिल हैं।

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कम से कम 85 फीसदी मॉडलों ने इस बात की भविष्यवाणी की है कि सदी के अंत तक इन देशों को बारिश में भारी कमी का सामना करना पड़ेगा। बता दें कि यह अनुमान बेहद उच्च उत्सर्जन परिदृश्य पर आधारित हैं। इसके विपरीत, 90 फीसदी से अधिक मॉडल फिनलैंड, उत्तर कोरिया, रूस, कनाडा और नॉर्वे में सालाना होने वाली बारिश की प्रवत्ति में वृद्धि का संकेत देते हैं।

विश्लेषण से यह भी संकेत मिलते हैं कि यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और फ्रांस सहित कुछ यूरोपीय देशों में आमतौर पर गर्मियों में बारिश कम होने और सर्दियों में बारिश बढ़ने की आशंका है।  ऐसे में यह विपरीत प्रवत्तियां एक दूसरे को संतुलित कर देंगी। मतलब की यहां वार्षिक वर्षा में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन साल के दौरान वर्षा के मौसमी वितरण में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगें।

हालांकि इसके बावजूद अध्ययन से यह भी पता चला है कि दुनिया के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में बारिश के अनुमानों में अनिश्चिता बनी रहेगी। इन क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश हिस्से, मध्य यूरोप, दक्षिण पश्चिम एशिया, अफ्रीका में पश्चिमी तट के कुछ हिस्से और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं।

ऐसा ही कुछ भारत और चीन के मामले में भी सामने आया है। देखा जाए तो यह दोनों देश दुनिया में 270 करोड़ लोगों का घर हैं। 70 फीसदी मॉडलों का अनुमान है कि इन दोनों देशों में होने वाली वार्षिक वर्षा में इजाफा हो सकता है। गौरतलब है कि हाल के समय में बांग्लादेश, भारत, जापान और पूर्वी अफ्रीका में भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं। जिनसे उबरने के लिए यह देश अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।

यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो अध्ययन का अनुमान है कि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में सदी के अंत तक सालाना होने वाली बारिश में औसतन 30 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो सकता है। इसका प्रभाव देश के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों पर पड़ेगा।

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गौरतलब है कि इससे पहले जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन में सामने आया है कि अगले कुछ दशकों तक एरोसोल भारत और दक्षिण एशिया में मॉनसून और बारिश के पैटर्न को प्रभावित करते रहेंगें। इनकी वजह से मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश में कमी का दौर आगे भी जारी रह सकता है। लेकिन बाद में आगे चलकर मॉनसून पर ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव हावी हो जाएगा।

रिसर्च से पता चला है कि हवा में एरोसोल का उच्च स्तर बारिश विशेषकर मॉनसून को कमजोर कर सकता है। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि सदी के मध्य तक मॉनसून और उसके बाद बारिश में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

वहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं द्वारा किए अन्य अध्ययन से पता चला है कि निकट भविष्य में गंगा बेसिन के निचले इलाकों में खेती पर सूखे की मार पड़ सकती है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए औसत बारिश में आने वाली कमी को जिम्मेवार माना है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि निकट भविष्य में इस क्षेत्र में होने वाली औसत मासिक वर्षा में सात से 11 मिलीमीटर प्रतिदिन की उल्लेखनीय कमी आ सकती है।

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रिसर्च से यह भी पता चला है कि कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2060 तक पश्चिमी भारत में होने वाली भारी बारिश की तीव्रता चार से दस फीसदी तक बढ़ सकती है। हालांकि यदि अगले कुछ दशकों की बात करें तो यह वृद्धि मुख्य रूप से केवल राजस्थान के कुछ हिस्सों और पश्चिम की ओर बहने वाली नदी घाटियों में केंद्रित होगी।

इसी तरह एसएसपी2-4.5 के तहत ऊपरी गंगा और सिंधु बेसिन में भारी बारिश की तीव्रता में 14.3 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। भारी बारिश की तीव्रता में होती वृद्धि से जल प्रबंधन और बाढ़ को लेकर की जा रही तैयारियों पर अच्छा खासा असर पड़ सकता है।

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