कॉप-26: जलवायु प्रदर्शन रैंकिंग में भारत दसवें नंबर पर बरकरार

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत तय लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते पर है, लेकिन सही नीतियां जरूरी हैं

By Jayanta Basu

On: Wednesday 10 November 2021
 

नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्यों की घोषणा करने वाली प्रमुख उत्सर्जक अर्थव्यवस्थाओं ने इस साल अब तक जलवायु परिवर्तन की दिशा में खराब प्रदर्शन किया है। ऐसा जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) 2022 की रिपोर्ट में पाया गया है।

हालांकि भारत ने इस सूची में अपना दसवां स्थान बरकरार रखा है। वह जी-20 के बेहतर प्रदर्शन करने वाले टॉप देशों में बना हुआ है।

यह रिपोर्ट दस नवंबर को क्लाईमेट एक्शन नेटवर्क (सीएएन) और न्यू क्लाईमेट इंस्टीटयूट ने गैर-लाभकारी संगठन जर्मन-वॉच के साथ मिलकर जारी की। गौरतलब है कि रिपोर्ट ऐसे समय में जारी हुई है, जब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अंतर्गत 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन चल रहा है।

रिपोर्ट में बताया गया, ‘एक स्वतंत्र निगरानी उपकरण के रूप में, पेरिस समझौते के कार्यान्वयन चरण के बारे में जानकारी प्रदान करने में सीसीपीआई की प्रमुख भूमिका है। इसने 2005 से कई देशों के जलवायु संरक्षण प्रदर्शन का विश्लेषण किया है।’

इसके मुताबिक, सीसीपीआई यूरोपीय देषों के साथ साठ अन्य देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है, जो मिलकर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस-उत्सर्जन का 90 फीसद हिस्सा घेरते हैं।

सीसीपीआई 14 संकेतकों के साथ चार श्रेणियों को देखता है । जिसमें ग्रीनहाउस गैस-उत्सर्जन (कुल स्कोर का 40 फीसद), नवीकरणीय ऊर्जा (20 फीसद), ऊर्जा उपयोग (20 फीसद) और जलवायु नीति (20 फीसद) शामिल है।

बड़े उत्सर्जक देशों ने किया खराब प्रदर्शन

रिपोर्ट के मुताबिक जो बाइडन के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के बाद जब अमेरिका वैश्विक जलवायु वार्ता प्रक्रिया में दोबारा शामिलहुआ तो उसकी रैंकिंग में मामूली सुधार आया। फिलहाल 65 देषों की सूची में वह 55वें नंबर है, जिसे ‘बहुत कम रैंकिंग’ माना जाता है।

वहीं चीन 2020 की तुलना में चार स्थान नीचे खिसककर 37वें नंबर पर पहुंच गया है, जिसे ‘कम रैंकिंग’ मं रखा गया है।

इसी तरह यूरोपीय संघ भी पिछले साल की तुलना में छह स्थान नीचे गिरकर 22वें नंबर पर आ गया है और ‘मध्यम रैंकिंग’ में है।  

यूनाईटेड किंगडम ने सातवें स्थान के साथ अच्छा प्रदर्षन किया। हालांकि वह भी बीते साल की तुलना में दो स्थान नीचे खिसका है।

रिपोर्ट के मुताबिक, स्कैंडिनेवियाई देशों ने इस सूची में अच्छा प्रदर्शन किया। डेनमार्क ने जलवायु प्रदर्शन सूची में 76.92 फीसद स्कोर के साथ पहला स्थान प्राप्त किया, इसके बाद स्वीडन और नॉर्वे ने क्रमशः 74.46 फीसद और 73.62 फीसद स्कोर (उच्च रेटिंग) के साथ दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया।

हालांकि बीते साल की तरह इस बार भी कोई भी देश इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सका कि उसे  ‘बहुत उच्च रेटिंग’ मिली हो, क्योंकि कोई भी देश 80 फीसद या उससे ज्यादा स्कोर नहीं कर सका।

सूची में कजाकिस्तान, सउदी अरब, ईरान, कनाडा और चीनी ताईपे अंतिम पांच स्थान पर रहे। ये सभी देष बीते साल की तुलना में कई स्थान नीचे खिसक गए।

सही राह पर भारत 

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने पिछले साल की तरह मजबूत प्रदर्शन बनाए रखा। रिपोर्ट ने ग्रीनहाउस गैस-उत्सर्जन, ऊर्जा उपयोग और जलवायु नीति की श्रेणियों में भारत के प्रदर्षन को उच्च और नवीकरणीय ऊर्जा में मध्यम स्तर का दर्जा दिया है।

इसके मुताबिक, ‘भारत पहले से ही अपने 2030 उत्सर्जन लक्ष्य (जो कि 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे के परिदृश्य के अनुकूल है) को पूरा करने की ओर अग्रसर है। इसके साथ ही वह गैर-जीवाश्म ईंधन के लिए 40 फीसद हिस्सेदारी के अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्य को प्राप्त करने के भी करीब है। इस प्रदर्षन के साथ ही भारत 2030 तक बिजली क्षमता, और ऊर्जा की तीव्रता में 33-35 फीसद की कमी के लक्ष्य को हासिल कर सकता है।

सीसीपीआई के एक भारतीय विशेषज्ञ के मुताबिक, ‘नवीकरणीय लक्ष्यों में उल्लेखनीय सुधार और एनडीसी लक्ष्यों के कार्यान्वयन और उपलब्धि पर ध्यान देने से भारत ने इस साल भी सूची में मजबूत प्रदर्शन जारी रखा है।’

उन्होंने आगे कहा कि भारत की महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा नीतियों, जैसे कि 450 गीगावाट की अक्षय बिजली क्षमता के लक्ष्य और 2030 तक 30 फीसद  इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी ने भी इसमें योगदान दिया।’

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में इससे पहले ही उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ कदमों की घोषणा की थी, जिसमें 2070 तक देश में नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य शामिल था।

हालांकि विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि भारत की कुछ नीतियां असंबद्ध है और उनमें दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए विस्तार से नहीं बताया गया है।

उन्होंने कहा कि किसी भी भारत के किसी राज्य ने स्पष्ट तौर पर यह नहीं बताया है कि कोयला को उपयोग से बाहर करने के लिए उसके पास क्या योजना है। यही नहीं, 2015 में पेरिस समझौते के बाद से भारत ने कोयले से चलने वाली बिजली में वृद्धि भी की है।

सीसीपीआई टीम में शामिल एक अन्य विशेषज्ञ ने माना कि परिवहन क्षेत्र में और अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की पहल की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत को 2050 के लिए नेट जीरो लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय पहलों में नवीकरणीय और उत्सर्जन तीव्रता पर अपनी घरेलू सफलता का लाभ उठाना चाहिए। उसे जलवायु की संवेदनशीलता, अनुकूलता और उसके लचीलेपन के निर्माण को लेकर अपनी नीतियों को और मजबूत बनाना चाहिए। इसके साथ ही भारत को ऊर्जा संक्रमण में समानता और सामाजिक विकास को भी ज्यादा मजबूती से दर्शाना चाहिए।

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