गर्मियों में नहीं दिखेगी उत्तरी ध्रुव में बर्फ, जल्द ही आएगा बड़ा बदलाव

शोध के अनुसार आज आर्कटिक में साल भर दिखने वाली बर्फ,  2050 तक गर्मियों के मौसम में पूरी तरह गायब हो जाया करेगी

By Lalit Maurya

On: Tuesday 21 April 2020
 

दुनिया भर में मौसम तेजी से बदल रहा है। जलवायु परिवर्तन का असर न केवल जमीन पर पड़ रहा है, बल्कि इससे महासागर और पृथ्वी के ध्रुव भी अछूते नहीं हैं। हाल ही में किए एक अध्ययन के अनुसार 2050 तक आर्कटिक महासागर में दिखने वाली बर्फ, गर्मियों के मौसम में पूरी तरह गायब हो जाएगी। वैज्ञानिको के अनुसार आर्कटिक का औसत तापमान पहले ही पूर्व औद्योगिक काल से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक हो चुका है। यही वजह है कि दक्षिणी ध्रुव में जमी बर्फ की चादर तेजी से पिघल रही है। यह अध्ययन जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। जिसे दुनिया के 21 प्रमुख संस्थानों ने मिलकर किया है। जिसके लिए उन्होने 40 अलग-अलग क्लाइमेट मॉडल्स की मदद ली है।

शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में किया गया कोई भी कार्य इसे बदल नहीं सकता। यह लगभग निश्चित ही है कि आने वाले दशकों में गर्मियों के दौरान आर्कटिक की बर्फ पूरी तरह खत्म हो जाया करेगी| हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि आर्कटिक कितनी बार और कितने समय तक बर्फ मुक्त रहेगा यह तय नहीं है। यह क्लाइमेट चेंज को रोकने की दिशा में किये गए हमारे प्रयासों पर निर्भर करेगा।

जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ हैम्बर्ग से जुड़े और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डर्क नॉटज़ ने बताया कि बर्फ का गायब होना रुक सकता है। "यदि हम वैश्विक उत्सर्जन को तेजी से कम कर देते हैं। और तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा से नीचे रख पाने में सफल हो जाते हैं। तो हम आर्कटिक की बर्फ को गर्मियों के मौसम में हमेशा के लिए गायब होने से बचा पाएंगे। हालांकि इसके बावजूद भी बर्फ इस मौसम में कभी-कभार गायब हो सकती है।"

हम पर निर्भर है आर्कटिक का भविष्य

वैज्ञानिकों का मत है कि आर्कटिक में बर्फ का भविष्य कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किये गए हमारे प्रयासों पर निर्भर करेगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दुनिया के पास अब केवल 1,000 गीगाटन का कार्बन बजट शेष है। जिसका मतलब है कि यदि हम इससे अधिक उत्सर्जन करते हैं तो हम तापमान में हो रही वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं रख पाएंगे। यह हमारे भविष्य के उत्सर्जन की पूर्ण सीमा है।

इस शोध के अनुसार यदि हम अपने आप को इतना उत्सर्जन करने से रोक भी दे तो भी आर्कटिक को गर्मियों में बर्फ मुक्त होने से नहीं रोक पाएंगे । भले ही हम अपने पूरे कार्बन बजट को खर्च न भी करें तब भी शोधकर्ताओं द्वारा किये गए 128 सिमुलेशन में से 101 बार यही सामने आया कि आर्कटिक की बर्फ 2050 तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर से भी कम रह जाएगी।

नेशनल स्नो एंड आइस डाटा सेंटर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में मार्च 2020 को आर्कटिक समुद्र में बर्फ का क्षेत्रफल करीब 1.48 करोड़ वर्ग किलोमीटर मापा गया था। जोकि रिकॉर्ड के अनुसार ग्याहरवीं बार सबसे कम है| गौरतलब है कि वर्तमान में उत्तरी ध्रुव साल भर बर्फ से ढंका रहता है। गर्मियों के दौरान बर्फ में कमी जरूर आती है। पर सर्दियों में जब बर्फ पड़ती है तो स्थिति फिर से पहले जैसी हो जाती है। लेकिन हाल के कुछ दशकों में क्लाइमेट चेंज की वजह से समुद्री बर्फ से ढंका यह क्षेत्र तेजी से कम हो रहा है, जहां बर्फ तेजी से पिघल रही है।

इसका सबसे बुरा असर आर्कटिक के इकोसिस्टम और धरती की जलवायु पर पड़ेगा। समुद्री बर्फ से ढंका यह क्षेत्र ध्रुवीय भालू और सील्स जैसे जीवों का घर है। जो उसे खाना और सुरक्षा प्रदान करता है। इसी की वजह से आर्कटिक हमेशा ठंडा रहता है। और यदि यहां बर्फ का आवरण ही नहीं रहेगा तो मौसम पूरी तरह से बदल जायेगा। ऐसे में इन जीवों का जीवन भी मुश्किल हो जायेगा।

Subscribe to our daily hindi newsletter