बॉन जलवायु सम्मेलन में मुख्य रूप से वित्तीय मामलों पर किया जाए ध्यान केंद्रित: सीएसई

ग्लोबल साउथ के देशों का ध्यान ऊर्जा क्षेत्र में बदलावों को अपनाने के लिए रियायती वित्त की कमी पर केंद्रित होना चाहिए

By Lalit Maurya

On: Tuesday 06 June 2023
 

संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के सहायक निकायों (एसबी 58) की बैठक की शुरूआत पांच जून 2023 से जर्मनी के बॉन में हो चुकी है। यह सम्मलेन यूएनएफसीसीसी के दो निकायों वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाह के लिए सहायक निकाय (एसबीएसटीए) और कार्यान्वयन के लिए सहायक निकाय (एसबीआई) के नेतृत्व में इस साल दिसंबर में होने वाले 28वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जिसे कॉप 28 के नाम से भी जाना जाता है, उसके लिए आधार तैयार करेगा।

इस मौके पर दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी विशेषज्ञों की एक टीम को बॉन भेजा है। इस बारे में सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि, "निष्पक्ष जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए 2023 एक महत्वपूर्ण वर्ष है।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि ग्लोबल नॉर्थ के देशों, जिन्होंने पहले ही अपने कार्बन बजट के एक बड़े हिस्से का उपयोग कर लिया है, उनको आगे भी प्राकृतिक गैस के उपयोग को करने के लिए छूट नहीं दी जानी चाहिए।"

प्राकृतिक गैस वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार कारकों में से एक है। ऐसे में उनका कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव सभी जीवाश्म ईंधनों पर लागू होना चाहिए। ऐसे में दुनिया के सबसे गरीब और कमजोर तबके तक भी ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित हो सके इसके लिए उन्होंने अक्षय ऊर्जा के मुद्दे पर एक वैश्विक समझौते की आवश्यकता पर बल दिया है।

कॉप 27 और उसके बाद

बता दें कि पिछले वर्ष जलवायु परिवर्तन पर हुए शिखर सम्मलेन कॉप 27 की मेजबानी मिस्र ने की थी। इस सम्मलेन में हानि और क्षति के लिए फण्ड की स्थापना पर बल दिया गया था। वहीं वित्त के मामले में पक्षकारों ने बहुपक्षीय विकास बैंकों और अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया था।

गौरतलब है कि इस सम्मलेन में पक्षकार चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु में आते बदलावों के कारण होने वाले क्रमिक परिवर्तनों के प्रभावों से निपटने के लिए अनुकूलन के वैश्विक लक्ष्यों पर फ्रेमवर्क स्थापित करने के लिए सहमत हुए थे। यह फ्रेमवर्क उन्हें इस बारे में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने के साथ-साथ वैश्विक स्टॉकटेक प्रक्रिया के माध्यम से उनकी प्रगति पर निगरानी रखने में भी सक्षम बनाएगा।

सीएसई में जलवायु परिवर्तन की कार्यक्रम प्रबंधक अवंतिका गोस्वामी का कहना है कि, "जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के प्रस्ताव पर कोई आम सहमति नहीं बन सकी थी। हालांकि कॉप 27 में कोयला से बनने वाली बिजली और जीवाश्म ईंधन को दी जा रही सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा की ओर रुख करने के पिछले आह्वान को दोहराया था।"

कॉप 27 के बाद जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने छठे मूल्यांकन चक्र के भाग के रूप में अपनी संश्लेषण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार यदि पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो उसके लिए 2030 तक उत्सर्जन को 50 फीसदी तक कम करने की आवश्यकता है। हालांकि, गोस्वामी का कहना है कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।

पिछले महीने जापान के हिरोशिमा में जारी जी7 की घोषणा से स्पष्ट है कि अमीर देशों ने प्राकृतिक गैस, विशेष रूप से एलएनजी पर अपनी निर्भरता की फिर से पुष्टि की है। इसके साथ ही यह देश बड़े स्तर पर ग्रीन सब्सिडी और कार्बन बॉर्डर टैक्सों की मदद से ग्रीन सप्लाई चेन पर भी कब्जा करने के लिए उत्सुक हैं।

इस ऊर्जा परिवर्तन ने बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का ध्यान भी आकर्षित किया है। ऐसे में सीएसई और अन्य संगठनों के विशेषज्ञों ने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर बल दिया है कि यह बदलाव निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होने चाहिए, ताकि इन देशों के विकास सम्बन्धी लक्ष्यों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

गोस्वामी ने बताया कि, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस साल जलवायु चर्चाओं में वित्त पर महत्वपूर्ण ध्यान दिया गया है। वैश्विक वित्तीय ढांचे में सुधार की आवश्यकता, जो कई मायनों में विकासशील देशों के लिए नुकसानदेह है, वो जलवायु समुदाय के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है।"

नारायण भी इससे सहमत हैं, उनका कहना है कि इस वर्ष सबसे बड़ा मुद्दा पैसे का है। उनके अनुसार ग्लोबल साउथ के देशों के मामले में ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे बदलावों को अपनानें के लिए रियायती वित्त की कमी पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वित्तीय कमी की पहचान के लिए क्षेत्र-विशिष्ट योजनाओं को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया है, जिसे सुरक्षित वित्त पोषण के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए।

गोस्वामी का आगे कहना है कि, "विभिन्न व्यावहारिक तरीकों से वित्त को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसमें हानि और क्षति कोष की स्थापना, विकासशील देशों में ऊर्जा संक्रमण और डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों के लिए किफायती वित्तपोषण प्रदान करना, जलवायु अनुकूलन के लिए धन में वृद्धि करना और एक महत्वाकांक्षी नया लक्ष्य निर्धारित करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन (एनसीक्यूजी) की मात्रा पर राष्ट्रीय समिति की प्रगति करना शामिल है। जो विकासशील दुनिया की वास्तविक जरूरतों के अनुरूप हो।“

इस बारे में डाउन टू अर्थ के संवाददाता अक्षित संगोमला का कहना है कि बॉन सम्मेलन के दौरान हानि और क्षति के मुद्दे पर कॉप-27 के बाद की दो समितियों की बैठक में उठी असहमति को दूर करने की जरूरत है। इनका उद्देश्य समाधान तक पहुंचना है, ताकि बाद की दो बैठकों में हानि और क्षति से जुड़े फण्ड के पूर्ण रूप से कार्यान्वयन के लिए कॉप-28 में सिफारिशें की जा सकें।

किन मुद्दों पर बॉन में की जाएगी चर्चा

ग्लोबल स्टॉकटेक

2023 में पेरिस समझौते की प्रगति का मूल्यांकन करने वाला ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) समाप्त हो जाएगा। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील का कहना है कि, "यह हमारे रास्ते को सही करने" का अवसर प्रस्तुत करता है। तकनीकी संवाद की तीसरी बैठक इस महीने बॉन में होगी, इसके बाद जीएसटी के सूचना संग्रह और तकनीकी मूल्यांकन के चरण को पूरा किया जाएगा, जो अंतिम राजनैतिक चरण की ओर अग्रसर होगा।

एक बार जीएसटी प्रक्रिया के समाप्त हो जाने के बाद, इसे समानता को प्राथमिकता देते हुए जलवायु  शमन, अनुकूलन, वित्त और तकनीकी सहायता में महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए "शाफ्ट तंत्र" के रूप में काम करना चाहिए।

हानि एवं क्षति

वहीं दूसरी ग्लासगो वार्ता का उद्देश्य पिछली दो बैठकों और हानि एवं क्षति के मुद्दे पर माध्यमिक समिति (टीसी) की वर्कशॉप में शुरू की गई चर्चाओं को जारी रखना है। टीसी, जिसमें विकासशील और विकसित देशों के 24 सदस्य शामिल हैं। इसे कॉप 27 में स्थापित हानि और क्षति फण्ड (एलडीएफ) के वित्तपोषण स्रोतों, कार्यप्रणाली और प्रशासन को निर्धारित करने के लिए स्थापित किया गया था। ऐसे में कॉप 28 द्वारा हानि और क्षति के फण्ड को पूरी तरह लागू करने के लिए बॉन एक अच्छा अवसर है, क्योंकि फण्ड के मामले में टीसी की दो बैठकों में अलग-अलग विचार सामने आए थे।

जलवायु शमन

मिटिगेशन वर्क प्रोग्राम बॉन में चर्चा को अगले स्तर तक ले जाएगा, जिसमें एक वैश्विक संवाद की योजना बनाई जाएगी, जिसके बाद एक निवेश-केंद्रित कार्यक्रम होगा।

सह-सुविधाकर्ताओं ने 2023 में चर्चा के लिए केंद्रीय विषय के रूप में "त्वरित ऊर्जा संक्रमण" का चयन किया है। इस कार्यक्रम में विकासशील देशों को जलवायु महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी के लिए अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करने की क्षमता है।

जलवायु अनुकूलन

अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) के मुद्दे पर ग्लासगो शर्म अल शेख कार्यक्रम की छठी वर्कशॉप 4 से 5 जून को बॉन में आयोजित की जाएगी। इस वर्कशॉप में, पार्टियां मार्च में आयोजित पांचवीं कार्यशाला की चर्चाओं को आगे बढ़ाएंगी, जिसमें दुनिया भर में स्वदेशी समुदायों के ज्ञान, विभिन्न क्रॉस-कटिंग मुद्दों और बदलती मानसिकता को ध्यान में रखते हुए परिवर्तनकारी अनुकूलन पर चर्चा की गई थी।

इस छठी वर्कशॉप का विषय जीजीए के ढांचे की स्थापना के लिए मैट्रिक्स, संकेतक और पद्धतियों के बारे में चर्चा करना होगा। यह वर्कशॉप 7वीं और 8वीं वर्कशॉप्स के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी।

वित्त

हालांकि इस वर्ष 100 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्त का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद जलवायु वित्त पर न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) के बारे में चर्चा बॉन में भी जारी रहेगी। छठी तकनीकी विशेषज्ञ वार्ता के दौरान, पक्षकार नए लक्ष्यों के लिए आवश्यक धन की "मात्रा" के साथ-साथ "वित्तीय संसाधनों के स्रोतों और उपलब्धता के बारे में विचार-विमर्श करेंगे।

अनुच्छेद 6

 अनुच्छेद 6 के तहत, वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाह के लिए सहायक निकाय (एसबीएसटीए) अनुच्छेद 6.2 में उल्लेखित सहकारी दृष्टिकोणों को लागू करने के लिए आवश्यक नियमों और प्रक्रियाओं के विकास पर काम करेगा।

इसके साथ ही यह अनुच्छेद 6.4 में उल्लेखित तंत्र में पर्यवेक्षी निकाय और भाग लेने वाले दलों की भूमिकाओं और जिम्मेवारियों को परिभाषित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके साथ ही यह एसबीएसटीए अनुच्छेद 6.4 के तहत उत्सर्जन को कम करने और संरक्षण वृद्धि गतिविधियों को शामिल करने की व्यवहार्यता जैसे मामलों पर विचार करेगा।

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