झीलों के पानी के तापमान को चरम स्तर तक बढ़ा रहा है जलवायु परिवर्तन : अध्ययन

शोधकर्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की मदद से दुनिया भर की 78 बड़ी झीलों के सतह के तापमान के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया की झीलों में गर्मी खतरनाक स्तर से बढ़ रही है

By Dayanidhi

On: Monday 28 February 2022
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

एक नए अध्ययन के अनुसार, दुनिया की सबसे बड़ी झीलें भीषण गर्मी से प्रभावित होती हैं। इस दौरान पानी का तापमान सामान्य से छह गुना बढ़ जाता है। अध्ययन में कहा गया है कि पिछले 20 वर्षों में लगभग सभी झीलें लू या हीट वेव के वजह से गर्म हुए इसके लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार हैं। इस तरह की घटनाओं के सदी के अंत तक 3 से 25 गुना तक बढ़ने की आशंका जताई गई है।

इस अध्ययन में दुनिया की सबसे बड़ी झीलों से सतह के तापमान के दो दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। ताकि यह पता लगाया जा सके कि झील में लू या हीट वेव कितनी बार आती हैं। इससे पता चलेगा कि इन घटनाओं के लिए मानवजनित जलवायु परिवर्तन कितना जिम्मेवार है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि झील की गंभीर लू या हीट वेव की घटनाएं औसतन दोगुनी होती जा रहीं हैं। झील की गर्मी से पानी की स्थिति बदल सकती हैं, जलीय पौधों और जानवरों पर दबाव डाल सकती हैं। शैवालों के खिलने और अन्य पानी की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं को पैदा कर सकती हैं।

यह मापने वाला पहला अध्ययन है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन ने झील की गर्मी या लू को कैसे प्रभावित किया है। एक तरह से दुनिया की झीलें बढ़ते तापमान का मुकाबला कर रही हैं, अध्ययन  इस पर एक महत्वपूर्ण और नया दृष्टिकोण पेश करता है।

वेल्स में बांगोर विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक और प्रमुख अध्ययनकर्ता आर. इस्तिन वुलवे ने कहा वास्तव में जो दिख रहा था वह मानवजनित भयावहता थी। हमने जिन झीलों की गर्मी, हीट वेव को देखा, उनमें एक महत्वपूर्ण मानवजनित छाप थी। उन्होंने कहा मनुष्यों के विपरीत, जो एयर कंडीशनिंग में जा सकते हैं या छाया की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन अत्यधिक तापमान के संपर्क में आने पर जलीय जीवों के लिए बचने के कोई समाधान नहीं हैं।

वुलवे ने कहा कि पिछले एक दशक में रिमोट सेंसर डेटा या दूर-संवेदी आंकड़ों में वृद्धि ने इस तरह के अध्ययनों को संभव बना दिया है। जिससे वैज्ञानिकों को एक झील के अध्ययन से दूसरे समान पारिस्थितिक तंत्र में दुनिया में स्थित झीलों में हो रहे बदलावों से निपटने में मदद मिलती है। शोधकर्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की मदद से दुनिया भर की 78 बड़ी झीलों के सतह के तापमान के आंकड़ों का विश्लेषण किया। जो कई बिंदुओं से तापमान के नमूने लेने के लिए पर्याप्त थे और यह काम 1995 से 2019 तक किया गया।

वुलवे और उनके सहयोगियों ने झीलों से अलग-अलग तीव्रता की लू का पता लगाया, लेकिन उन्होंने एट्रिब्यूशन विश्लेषण को "गंभीर" या "चरम" लू के अंतर्गत रखा।

लू या हीट वेव की गंभीरता को निर्धारित करने के लिए, शोधकर्ताओं ने सतह के तापमान की विसंगतियों का विश्लेषण किया, या सामान्य परिस्थितियों की तुलना में कितना तापमान अधिक है। एक खतरनाक लू झील की सतह के तापमान को सभी देखे गए तापमानों के मुकाबले 10 फीसदी से ऊपर बढ़ा देती है। वुलवे ने कहा आम तौर पर अगर मनुष्य गर्मी महसूस कर रहे होते हैं, तो झीलें भी गर्मी को महसूस करती हैं।

शोधकर्ताओं ने इंटरसेक्टोरल इंपैक्ट मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट से जलवायु मॉडल के साथ ऐतिहासिक तापमान के आंकड़ों को जोड़ा। जलवायु परिवर्तन के तहत झील की प्रतिक्रियाओं का सिमुलेशन करने के लिए एक बड़ा प्रयास किया गया। इसमें यह अनुमान लगाया गया कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन ने झील की लू में कितना योगदान दिया है और अनुमान लगाने के लिए कि कितनी बार झील में अगली सदी में लू की लहरें उठेंगी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पूर्व-औद्योगिक तापमान से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीर और चरम झील की हीट वेव तीन गुना अधिक हो सकते हैं। 3 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य के तहत, जैसा कि इस सदी में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में न्यूनतम कटौती के साथ हो सकता है, पूर्व-औद्योगिक जलवायु में इन घटनाओं के सापेक्ष झील की खतरनाक लू की घटनाओं के 25 गुना अधिक होने के आसार हैं। उष्णकटिबंधीय झीलों में मानवजनित योगदान भी अधिक पाए गए। वुलवे ने कहा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खामियाजा कम अक्षांश वाले क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है।

वुलवे ने कहा क्योंकि अध्ययन में  केवल बड़ी झीलों को देखा गया है, जो परिवर्तन और गंभीर लू या हीट वेव के लिए अधिक प्रतिरोधी हो सकती हैं। जब हम इन निष्कर्षों को वैश्विक स्तर पर मापते हैं, तो परिणाम बहुत खतरनाक हो सकते हैं।

झील की गर्मी, लू या हीट वेव कई तरह से पारिस्थितिक तंत्र के लिए हानिकारक हो सकती हैं। ऐसे जीवों के लिए जो एक कम तापमान में रहते हैं, पानी के तापमान में छोटे बदलाव से भी उनकी मौत हो सकती है। गर्म पानी का मतलब अधिक वाष्पीकरण और कम मिश्रण भी होता है, क्योंकि झील का पानी ऊपर से गर्म पानी और नीचे ठंडे पानी के साथ मिल जाता है।

इन दोनों प्रभावों का मतलब ऑक्सीजन का कम होना है, जो झील में रहने वालों को मछली की तरह तनाव दे सकता है जिन्हें कि सांस लेने की जरूरत होती है। यह अध्ययन एजीयू जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

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