क्यों जरूरी है आर्कटिक की समुद्री बर्फ, यह किस तरह हमारे जलवायु पर डालती है असर?

आर्कटिक समुद्री बर्फ की न्यूनतम सीमा अब 13.1 फीसदी प्रति दशक की दर से घट रही है

By Dayanidhi

On: Thursday 21 October 2021
 
फोटो :नासा

आर्कटिक की समुद्री बर्फ सूर्य के प्रकाश को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करने, समुद्र और हवा के तापमान को नियंत्रित करने, समुद्र के पानी को घुमाने या सर्कुलेट करने और जानवरों के आवास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

नासा और नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर कोलोराडो के बोल्डर में समुद्री बर्फ की सीमा का निरीक्षण करने के लिए उपग्रहों का उपयोग करते हैं। पिछले कई दशकों से आर्कटिक समुद्री बर्फ की सीमा तेजी से घट रही है, खासकर गर्मियों के अंत में जब यह वर्ष में सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाती है। सर्दियों के महीनों में समुद्री बर्फ बनती है, जब समुद्र का पानी बर्फ के बड़े-बड़े हिस्सों में जम जाता है, फिर गर्मी के महीनों में आंशिक रूप से पिघल जाता है, यह चक्र हर साल चलता है।  

आइए समझते हैं आर्कटिक की समुद्री बर्फ को बेहतर ढंग से :

किस तरह घट रही है समुद्री बर्फ की मात्रा?

नासा ने 1978 के बाद से न्यूनतम आमतौर पर सितंबर में और अधिकतम मार्च में समुद्री बर्फ का पता लगाया है। हालांकि सटीक सीमा के आंकड़े साल-दर-साल अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन आर्कटिक में हर साल समुद्री बर्फ का नुकसान हो रहा है। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में समुद्री बर्फ वैज्ञानिक डॉ. राचेल टिलिंग ने कहा कहा कि पिछले 15 वर्षों में, हमने बहुत कम समुद्री बर्फ को बढ़ते देखा है। उन्होंने कहा हम हर साल बर्फ के एक इतने बड़े इलाके को खो रहे हैं जो मोटे तौर पर अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया के आकार के बराबर है।   

आर्कटिक समुद्री बर्फ की न्यूनतम सीमा अब 13.1 फीसदी प्रति दशक की दर से घट रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते तापमान और बर्फ-अल्बेडो प्रतिक्रिया चक्र के कारण इसकी गति के और तेज होने के आसार हैं। अल्बेडो प्रभाव सफेद बर्फ की सतह की पृथ्वी से जुड़ी सूर्य की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित करने की क्षमता है। सौर ऊर्जा को समुद्र से दूर करने से समुद्री जल बर्फ के नीचे ठंडा रहता है। जब समुद्री बर्फ पिघलती है, तो गहरे रंग का तरल पानी सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने के लिए खुला हुआ होता है। वह गर्म पानी फिर अतिरिक्त बर्फ को पिघला देता है, जिससे आइस-अल्बेडो फीडबैक चक्र बन जाता है।

समुद्री बर्फ वायुमंडल की गर्मी को रोकने में किस तरह मदद करती है?

टिलिंग के अनुसार, समुद्री बर्फ एक "कंबल" के रूप में कार्य करती है, जो समुद्र को वायुमंडल से अलग करती है। सूरज की रोशनी को बाहर रखने के अलावा, समुद्री बर्फ समुद्र में मौजूद गर्मी को ऊपर की हवा को गर्म करने से बचाती है। टिलिंग ने कहा समुद्र में गर्मी बनाए रखने के लिए बर्फ की क्षमता न केवल इसकी सीमा पर बल्कि इसकी मोटाई पर भी निर्भर करती है।

इस तरह हर साल, कुछ बर्फ गर्मी की वजह से पिघलने से बच जाती है। एक बार जब सर्दी आ जाती है, तो अधिक पानी जम जाता है और यह गाढ़ा और मजबूत होकर अनेक सालों तक रहने वाली बर्फ बन जाती है। पहले साल में बर्फ पतली होती है और इसके पिघलने, टूटने या आर्कटिक से बाहर निकलने के आसार अधिक होते हैं। हर साल अधिक बर्फ पिघलने की वजह से अधिक  सालों तक बर्फ के जमें रहने में कमी आती है। नतीजतन, आर्कटिक समुद्री बर्फ पहले की तरह ही कमजोर और पतली है, जिससे वह तेजी से पिघल रही है।

समुद्री बर्फ पानी के ऊपर और नीचे आर्कटिक वन्यजीवों को किस तरह प्रभावित करती है?

टिलिंग ने कहा कि वहां एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है जो समुद्री बर्फ में होने वाले बदलाव से प्रभावित होता है। जैसे-जैसे समुद्री बर्फ कम होती है, आर्कटिक लोमड़ियां, ध्रुवीय भालू और सील जैसे जानवरों के आवास गायब हो जाते हैं। बर्फ की सतह के नीचे भी काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

जैसे ही बर्फ के क्रिस्टल समुद्री पानी के ऊपर बनते हैं, वे नीचे समुद्र में नमक छोड़ते जाते हैं। यह घना, खारा पानी समुद्र के तल तक चला जाता है। जिसके परिणामस्वरूप अधिक पोषक तत्व-घने पानी की सतह की ओर चले जाते हैं। सूक्ष्म फाइटोप्लांकटन के लिए वे पोषक तत्व आवश्यक हैं, जिन्हें बाद में मछली और जानवरों द्वारा खाया जाता है। नियमित पिघलने और जमने का चक्र पानी के नीचे के जीवों जिसमें यह शैवाल से लेकर व्हेल तक को जीवित रखता है।  

समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है या नहीं?

चूंकि समुद्री बर्फ समुद्री जल से बनती है, यह एक गिलास पानी में बर्फ के समान व्यवहार करता है। उस आइस क्यूब की तरह, जो पिघलने पर गिलास के जल स्तर को नहीं बदलता है। आर्कटिक में समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर नाटकीय रूप से नहीं बदलता है। उदाहरण के लिए ग्रीनलैंड या अंटार्कटिक बर्फ की चादरों से पिघलने वाली भूमि की बर्फ, समुद्र के स्तर में वृद्धि करती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भूमि की बर्फ पिघलती है, तो वह पानी जमीन से होकर महासागरों तक पहुंच जाता है।

क्या उपग्रह नासा को समुद्री बर्फ की निगरानी करने में मदद करते हैं?

आर्कटिक महासागर तक पहुंचने और अध्ययन करने के लिए एक कठिन स्थान है। यही कारण है कि नासा, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य, क्षेत्र से जानकारी एकत्र करने के लिए अंतरिक्ष के सुविधाजनक बिंदु की ओर रुख करते हैं। टिलिंग ने कहा कि समुद्री बर्फ की निगरानी के लिए आमतौर पर दो तरह के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है।

पहले निष्क्रिय माइक्रोवेव प्रकार के उपकरण हैं, जो समय के साथ सीमा का पता लगाते हैं। नासा, एनओएए, अमेरिकी रक्षा विभाग और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों द्वारा समर्थित उपग्रहों पर सवार इन उपकरणों की एक श्रृंखला ने 1978 से यानी 40 से अधिक वर्षों से आर्कटिक की समुद्री बर्फ की सीमा की निगरानी कर रही है।

टिलिंग ने बताया कि निष्क्रिय माइक्रोवेव उपकरण सतहों के माइक्रोवेव उत्सर्जन को मापते हैं। माइक्रोवेव उत्सर्जन स्वाभाविक रूप से होता है और समुद्री बर्फ के पानी से अलग होता है, जिससे वैज्ञानिकों को साल-दर-साल दोनों का सटीक पता लगाने में मदद मिलती है।

दूसरे प्रकार के अल्टीमेट उपकरण हैं, जिनका उपयोग समुद्री बर्फ की मोटाई का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है। 2018 में लॉन्च किया गया नासा का आइस, क्लाउड एंड लैंड एलिवेशन सैटेलाइट-2 (आईसीईसेट-2), बर्फ की ऊंचाई और पानी की ऊंचाई को मापने के लिए एक लेजर का उपयोग करता है। दो मापों के बीच की जानकारी का उपयोग करके वैज्ञानिक इसकी कुल मोटाई की गणना कर सकते हैं। यह पानी की सतह के ऊपर बर्फ की ऊंचाई उसके नीचे की बर्फ की गहराई के बराबर होती है।

टिलिंग ने कहा कि आर्कटिक इतनी तेजी से बदल रहा है, कि हम अभी तक यह भी नहीं जानते हैं कि वहां होने वाले परिवर्तन हमें कैसे प्रभावित करने वाले हैं। हम केवल इतना जानते हैं कि वे हमें जरूर प्रभावित करेंगे।

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