जोशीमठ में भूूधंसाव क्यों, भाग पांच: पानी के बहाव को रोकने से बिगड़े हालात

एनआईएच ने पहाड़ों पर बसे शहरों के पानी के बहाव के लिए चैनल बनाने की सलाह दी है

By Raju Sajwan

On: Friday 20 October 2023
 
जोशीीमठसे ठीक नीचे बनी जेपी कॉलोनी में निकलने वाले पानी का साफ कारण पता नहीं चल पाया है। फोटो: सन्नी गौतम

जोशीमठ में जिस रात को भूधंसाव में अचानक तेजी आई थी, उसी रात को शहर के ठीक नीचे बनी जेपी कॉलोनी के पास सड़क किनारे पानी की मोटी धार निकलने लगी थी। यह पानी कहां से निकल रहा है, यह एक बड़ा सवाल बन गया था, जिसकी जांच की जिम्मेवारी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की को सौंपी गई। अन्य संस्थानों की तरह एनआईएच की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर दी गई है। डाउन टू अर्थ की इस सीरीज में आज एनआईएच की ही रिपोर्ट का सारांश बताएंगे। इससे पहले चार रिपोर्ट प्रकाशित की जा चुकी हैं।

इन रिपोर्ट्स को पढ़ने के लिए क्लिक करें   

एनआईएच की रिपोर्ट कई मायने में महत्वपूर्ण है। क्योंकि जोशीमठ में भूधंसाव के लिए पानी के रिसाव को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। उसी तरह पहाड़ों पर बसे हिल स्टेशनों में हो रहे भूस्खलन या भूधंसाव की वजह भी पानी रिसाव व निकासी का इंतजाम न होना माना जा रहा है।

इस रिपोर्ट के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि चूंकि पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है, ऐसे में यदि पानी के बहाव का रास्ता रोका गया तो वह जमीन के अंदर जाकर मिट्टी को कमजोर करेगा और एक दिन यह भूधंसाव का कारण बन सकता है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ की अपनी स्थानीय खामियां हैं, क्योंकि यह पहाड़ी ढलान के मध्य में एक पुराने भूस्खलन भंडार पर बसा हुआ है, जिसके ऊपरी इलाकों (औली क्षेत्र) में ढलानें नाजुक हैं। साथ ही, वहां घना जंगल होने के कारण पानी का पुनर्भरण क्षेत्र भी है। यह पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है। ऐसे में ढलान पर बने शहर में अनियोजित व बड़े पैमाने पर हुए निर्माण और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भूधंसाव जैसी घटनाएं बढ़ गई हैं।

एनआईएच की रिपोर्ट के मुताबिक जेपी कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए गए डिस्चार्ज आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां लगभग 10.66 मिलियन लीटर पानी का भंडारण था, जो लगभग एक महीने में खाली हो गया। मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इतनी मात्रा में पानी जमा करने में 12 से 15 महीने का समय लग सकता है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पानी कहां से आया, इसके कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन ऐसी संभावना हो सकती है कि किसी उप-सतह चैनल के अवरोध के कारण पानी इकट्ठा हुआ हो और जब किसी कमजोर जगह से फटने के कारण पानी का बहाव बाहर की ओर हो गया हो। एनआईएच ने जेपी कॉलोनी से निकलने वाले पानी और एनटीपीसी के तपोवन बांध में घुसे पानी को जांच के बाद अलग-अलग बताया है!

हालांकि रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर नहीं कहा गया है, लेकिन बताया गया है कि  जेपी कॉलोनी में पानी का तेज बहाव शुरू होने से लगभग 15 महीने पहले अक्टूबर 2021 में जोशीमठ में भारी वर्षा हुई थी, जिसे  24 घंटों में 190 मिमी मापा गया था। इस दिन इलाके में बाढ़ भी आई थी। यानी कि ऐसी आशंका जताई गई है कि संभवतया बारिश का पानी जमीन के नीचे कहीं भर गया हो। जेपी कॉलोनी में पानी ऊपरी इलाकों (सुनील वन और औली क्षेत्र) से आता है। 

रिपोर्ट में नक्शे के माध्यम से समझाया गया है कि ऊपरी इलाकों से बहने वाले चैनल बीच में गायब हो गए हैं। इसलिए ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी के निपटान के लिए स्थायी सतही चैनल बनाने होंगे। पानी के चैनलाइजेशन से पहले स्थानीय लोगों और वनस्पतियों और जीवों की पानी की आवश्यकता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी और शहर के कचरे का निपटान सुरक्षित तरीके से होना चाहिए। 

एनआईएच ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी है कि जोशीमठ जैसे भौगोलिक स्थानों के साथ-साथ भूवैज्ञानिक सेटिंग वाले शहरों की पहचान करने की आवश्यकता है। इन कस्बों को वांछित उपकरणों से सुसज्जित किया जाना चाहिए, ताकि एहतियाती कदम पहले से ही उठाए जा सकें। 

एनआईएच ने कहा है कि प्राकृतिक जल झरने प्राकृतिक पीजोमीटर के रूप में कार्य करते हैं और पहाड़ी क्षेत्र में भूजल के लिए अच्छे संकेतक हैं। इसलिए, पूरे भारतीय हिमालय क्षेत्र (आईएचआर) के शहरों की तरह जोशीमठ के आसपास स्थित सभी झरनों की सूची बनाने की तत्काल आवश्यकता है। जो पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी किसी भी घटना का पहले से पता लगाने के लिए उनकी आवधिक निगरानी एक अच्छा उपकरण होगी।

 

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