क्यों हुआ जोशीमठ भूधंसाव, भाग एक: कहीं छोटे-छोटे भूंकप तो नहीं थे वजह?

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट में कई अहम बिंदुओं को उठाया गया है

By Raju Sajwan

On: Wednesday 27 September 2023
 
लगभग आठ माह बाद जोशीमठ भूधंसाव की जांच कर रही एजेंसियों की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है। फोटो: सन्नी गौतम

जोशीमठ में भूधंसाव के कारणों की जांच कर रही आठ एजेंसियों की रिपोर्ट लगभग आठ महीने बाद सार्वजनिक कर दी गई है। डाउन टू अर्थ सभी आठों एजेंसियों की रिपोर्ट्स को एक-एक करके प्रकाशित करेगा। आज प्रस्तुत है कि देश के प्रतिष्ठित संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा है?

वाडिया की दस सदस्यों की टीम 10 जनवरी 2023 को जोशीमठ के लिए रवाना हुई। टीम ने बकायदा 23 फरवरी 2023 से लिडार सर्वेक्षण शुरू किया। टीम ने पीपलकोटी से तपोवन के बीच भूगर्भीय स्थिति, ढांचागत निर्माण, अस्थायी निर्माण, सक्रिय टेक्टोनिक्स आदि का सर्वेक्षण किया। टीम ने पीपलकोटी, जोशीमठ व तपोवन के किनारे दरार वाले भवनों, धंसाव और जोड़ों को विवरण सहित नक्शा बनाया।

सूक्ष्म भूकंपों की निगरानी जरूरी

हालांकि वाडिया की टीम ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि दो-तीन जनवरी 2023 की रात को ऐसा क्या हुआ, जिससे जोशीमठ शहर में तेजी से भूधंसाव हुआ, लेकिन रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया है कि जोशीमठ में छोटे-छोटे भूकप आते रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड का जोशीमठ क्षेत्र भारत के उच्चतम भूकंपीय क्षेत्र में आता है। 1999 में 6.6 तीव्रता के चमोली भूकंप का केंद्र जोशीमठ के करीब और दक्षिण में है। जहां हिमालयी भूकंपीय बेल्ट क्षेत्र से होकर गुजरती है, वहां भूकंपीय गतिविधि अधिक होती है। ऊपरी परत के भीतर मुख्य हिमालयन थ्रस्ट भूकंपीय गतिविधि को चलाने वाला प्रमुख टेक्टोनिक फाल्ट है।

यही वजह है कि वाडिया इंस्टीट्यूट ने यहां 1.0 से कम तीव्रता वाले सूक्ष्म भूकंप की की निगरानी के लिए जोशीमठ और उसके आसपास 11 स्टेशनों का एक निकटवर्ती भूकंपीय नेटवर्क स्थापित किया।

इसको सेंट्रल रिकॉर्डिंग स्टेशन, देहरादून में निरंतर भूकंपीय डेटा निकालने के लिए भूकंपीय स्टेशन ऑनलाइन जोड़ा गया और निरंतर निगरानी की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक 13 जनवरी से 12 अप्रैल के दौरान, भूकंपीय नेटवर्क ने जोशीमठ से 50 किमी की दूरी के भीतर अधिकतम 1.5 तीव्रता के 16 सूक्ष्म भूकंप रिकॉर्ड किए, जो हाइपोसेंटेस 10 किमी की गहराई के ऊपरी क्रस्ट के भीतर थे। भूकंप का केंद्र मुख्य रूप से जोशीमठ के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में था, जहां वक्रिता थ्रस्ट (वीटी) और मुन्सियरी थ्रस्ट (एमटी) टेक्टॉनिक फाल्ट मौजूद हैं।

वर्तमान में आए इन भूकंप और अतीत की भूकंपीय गतिविधियों में दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में बढ़ती भूकंपीयता की समान प्रवृत्ति दिखी, जो मुख्य रूप से चमोली भूकंप के केंद्र के आसपास केंद्रित है। अत: इस क्षेत्र में अत्यंत छोटे सूक्ष्म भूकंप की यह भूकंपीय गतिविधि सामान्य है।

हालांकि, जोशीमठ के आसपास 100 किमी की दूरी के भीतर कुछ हल्के और उच्च तीव्रता वाले भूकंप दर्ज किए गए, जो हिमालय के आसपास के इलाकों की तुलना में थोड़े अधिक पैमाने पर हैं। सबसे अधिक तीव्रता वाला भूकंप 5.4 तीव्रता का है जो 24 जनवरी 2023 को नेपाल के पश्चिमी भाग में जोशीमठ से 100 किमी की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में आया था।

चट्टान नहीं मिट्टी के बोल्डर पर बसा है जोशीमठ
रिपोर्ट के मुताबिक टीम ने अध्ययन के दौरान जोशीमठ में ढलान पर सड़कों और घरों की दीवारों पर आई कुछ हालिया दरारों को देखने के बाद पाया कि अधिकांश दरारों की ज्यामिति (जियोमेट्री) समान है। यानी, नीचे की ओर संकीर्ण ज्यामिति, जिसका अर्थ है कि दरारें ऊपर से नीचे तक फैली हुई हैं या अभी भी फैल रही हैं।

दरारों के ऊपरी हिस्से का निचले हिस्से की तुलना में चौड़ा होना दर्शाता है कि दबाव की वजह से ये दरारें बनी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन में यह पाया गया कि जोशीमठ शहर एक ढलान पर स्थित है जिस पर अब तक कोई भी यथास्थान चट्टान नहीं देखी गई है। बल्कि ढलान में अलग-अलग आकार और मिट्टी की सामग्री के ढीले बोल्डर हैं। बोल्डर गार्नेट और गनीस से बने होते हैं।

कहां से आ रहा था पानी
वाडिया की टीम ने जोशीमठ के सात अलग-अलग जगहों पर इलेक्ट्रॉड के माध्यम से आंकड़े इकट्ठे किए। इनमें परसारी, मनोहर बाग में दो जगह, सिंहधर, जेपी कॉलोनी, सुनील गांव और मारवाड़ी (जेपी कॉलोनी के नीचे) शामिल हैं।

टीम ने पाया कि परसारी में 15 मीटर की गहराई पर एक सुसंगत आधारशिला परत मौजूद है। यहां पानी के रिसाव का कोई नामोनिशान नहीं मिला। सुनील में भी जमीन के नीचे बोल्डर की उपस्थिति देखी गई। यहां भी कोई रिसाव क्षेत्र नहीं मिला। मनोहर बाग की पहली साइट मेंऔली रोड से टॉवर 1 के पास उत्तर-पश्चिम की ओर ढलान के साथ 5 मीटर से 35 मीटर की गहराई पर भारी मात्रा में पानी का क्षेत्र देखा गया।

मनोहर बाग की दूसरी साइट में औली रोड के समानांतर 5 से 10 मीटर की गहराई पर पानी का रिसाव देखा गया। सिंहधार में पानी के रिसाव के अलग-अलग टुकड़े मौजूद थे, जबकि खंड के मध्य में 25 मीटर की गहराई तक एक बड़ा पत्थर मौजूद था। जेपी कॉलोनी में, 10 मीटर की गहराई तक पानी का रिसाव स्पष्ट रूप से देखा गया। जबकि वहां बोल्डर भी था।

मारवाड़ी में पानी का रिसाव अलग-अलग हिस्सों में देखा गया, लेकिन 4-5 मीटर की बहुत उथली गहराई तक ही था। इन तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है- “यह कहा जा सकता है कि रिसाव वाला पानी प्राकृतिक है और मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित नहीं है।” यहां यह उल्लेखनीय है कि स्थानीय निवासियों का आरोप था कि जगह-जगह से निकल रहा पानी तपोवन-विष्णुगाड़ जल संयंत्र का है, जो पिछले साल आई बाढ़ के कारण सुरंग में घुस गया था।

लाइडर तकनीक अपनाने की सलाह
वाडिया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी है कि चूंकि जोशीमठ एक तीव्र ढलान पर स्थित है, जहां काफी सघन कंक्रीट का निर्माण हुआ है, साथ ही कुछ हिस्सों में घने जंगल हैं, इसलिए क्षेत्र के मानचित्रण के लिए ऊंचाई मॉडल की एयरबोर्न लाइडर LiDAR तकनीक सबसे उपयुक्त और व्यवहार्य विकल्प प्रतीत होती है।

रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि चूंकि उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है और अक्सर पर्वतीय आपदाओं का सामना करना पड़ता है, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि राज्य के लिए लाइडर स्थलाकृतिक मानचित्रण किया जाए। ताकि योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं के लिए प्रबंधन और शमन की योजना बनाते वक्तजमीनी स्थलाकृति और सतह मॉडल उपलब्ध हों।

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड ही नहीं, हिमालय के अन्य स्थानों पर भी सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी और डेटा को नियमित रूप से अपग्रेड किया जाना चाहिए।

आगे पढ़ें : क्या कहती है एनडीएमए की पीडीएनए रिपोर्ट 

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