क्यों हुआ जोशीमठ भूधंसाव, भाग दो: पीडीएनए रिपोर्ट में एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट का जिक्र तक नहीं

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से 139 पेज की पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट रिपोर्ट तैयार की गई है

By Raju Sajwan

On: Friday 29 September 2023
 
एनटीपीसी द्वारा तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। फोटो: सन्नी गौतम

जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा तैयार की गई पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट (पीडीएनए) रिपोर्ट में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के हाइड्रो प्रोजेक्ट का कहीं जिक्र नहीं है, बल्कि आपदा के ठीक बाद जिला प्रशासन द्वारा बंद कराए गए हेलंग मारवाड़ी बाइपास का निर्माण शुरू करने की सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट में जोशीमठ में भूधंसाव के ढेर सारे कारण जरूर बताए गए हैं। साथ ही, कई ऐसी सिफारिशें की गई हैं, जो जोशीमठ के साथ-साथ पहाड़ी शहरों (हिल सिटीज) में लागू किए जा सकते हैं।

जोशीमठ भूधंसाव के कारणों की पड़ताल करने वाली एजेंसियों की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद डाउन टू अर्थ द्वारा हर रिपोर्ट के ‘सार’ को सीरीज के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। आज हम एनडीएमए की रिपोर्ट में उठाए गए प्रमुख मुद्दों के बारे में बता रहे हैं। 

निर्माण पर प्रतिबंध 

रिपोर्ट में कहा गया कि मॉनसून सीजन समाप्त होने तक पूरे जोशीमठ क्षेत्र में नये निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। मॉनसून के बाद जमीनी स्थितियों के पुनर्मूल्यांकन के बाद, तुलनात्मक रूप से सुरक्षित क्षेत्रों में प्रीफैब हल्के वजन संरचनाओं के साथ नए निर्माण पर कुछ छूट के बारे में सोचा जा सकता है।

हालांकि पुरानी इमारतों की रेट्रोफिटिंग की अनुमति दी जा सकती है। इसके अलावा पुलिस स्टेशन, फायर स्टेशन, अस्पताल, स्कूल भवनों आदि के लिए महत्वपूर्ण आपातकालीन सेवाओं के लिए प्रीफेब हल्के संरचनाओं वाले एकल मंजिला सार्वजनिक भवनों के निर्माण  की अनुमति दी जा सकती है।

अनिवार्य नहीं हैं भवन उपनियम  

जोशीमठ में भूधंसाव के बाद से यह बार-बार यह बात कही जा रही है कि पहाड़ों पर बसे शहरों में भवन उपनियमों की अनदेखी हो रही है। यही बात इस रिपोर्ट में भी कही गई है। पीडीएनए रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ में भवन उपनियम तो हैं, लेकिन आवासीय भवनों के लिए अनिवार्य नहीं हैं। लोग तब आवेदन करते हैं, जब उन्हें लोन लेना हो या किसी तरह की सरकारी सहायता की जरूरत है। जोशीमठ में बिल्डिंग परमिट सिस्टम ही नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि जोखिम आधारित भवन उपनियम होते और मौजूदा इमारतें उसका अनुपालन करतीं, तो क्षति की सीमा कम होती और रेट्रोफिटिंग की आवश्यकता कम खर्चीली होती।

टाउन प्लानिंग का अभाव

जोशीमठ में टाउन प्लानिंग और जोखिम आधारित लैंड यूज मैप का अभाव है। सड़कें संकरी हैं, सड़कों के दोनों ओर खुली जगह नहीं है। जो इमरजेंसी की स्थिति में बहुत ही असुरक्षित है। शहर को कंप्रिहेंसिव डेवलपमेंट प्लान की सख्त जरूरत है, जिसमें भवनों के लचीलापन, पानी, सफाई, ठोस एवं तरल कचरे का डिस्पोजल, बिजली, सड़क तक पहुंच और अन्य सुविधाएं जैसे स्कूल, अस्पताल,  बैंक, बिजनेस सेंटर आदि शामिल हों। इस समय ऐसे प्लान की सख्त जरूरत है, जो अगले 10-15 साल की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया जाए। 

पर्यटन का बढ़ता बोझ 

रिपोर्ट के मुताबिक  2022 में जोशीमठ में 8,44,362 यात्री आए और 101.32 करोड़ रुपए का राजस्व मिला था, लेकिन जनवरी 2023 आई इस आपदा से यहां का पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुआ। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जोशीमठ के जोखिम और वहन क्षमता को ध्यान में रखते हुए आजीविका के नुकसान की भरपाई के लिए स्थायी पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए और एक वैकल्पिक टिकाऊ आजीविका रणनीति बनाई जाए। जोशीमठ पर पर्यटन के बोझ को कम करने के लिए वैकल्पिक पर्यटन आवास क्षेत्रों और स्थानों को बढ़ावा दिया जाए। 

ऊंचे भवनों पर रोक

आपदा के दौरान जोशीमठ में कई मंजिला भवन चर्चा का विषय बन गए थे। एनडीएमए की इस रिपोर्ट में भवन निर्माण को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि जोशीमठ शहर भूकंपीय क्षेत्र पांच के अंतर्गत आता है और भूकंप के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है, इसलिए इस क्षेत्र के भवन उपनियमों में सुनिश्चित किया जाए कि 40 वर्ग मीटर क्षेत्र से कम जगह पर आवासीय भवन न बनाया जाए। इमारत की ऊंचाई 7.5 मीटर से अधिक न हो। आवासीय भवन तक पहुंचने के लिए कम से कम 4.5 मीटर चौड़ा मार्ग हो। आवास के लिए फ्लोर एरिया रेश्यो 1.7 से अधिक न हो। जबकि 10 वर्ग मीटर से कम जगह पर कॉमर्शियल भवन बनाने की इजाजत न दी जाए। 

इसके अलावा रिपोर्ट में राज्य के भूस्खलन जोखिम क्षेत्र मानचित्र के अंतर्गत दर्शाए गए भूस्खलन क्षेत्रों के आसपास लगभग 250 मीटर के भीतर किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं दी जाए। ऊपरी और निचले ढलान क्षेत्र से 15 मीटर की दूरी के बाद 30 डिग्री या अधिक ढाल वाले भूखंड के निर्माण की अनुमति दी जाएगी, जिसे सेटबैक में शामिल किया जाएगा।

साथ ही, 15 डिग्री से 30 डिग्री तक ढलान वाले भूखंड के ऊपरी और निचले ढलान क्षेत्र में 10 मीटर की दूरी के बाद निर्माण की अनुमति होगी, जो सेटबैक में शामिल होगा। भूकंपीय दोष रेखा के दोनों ओर 50 मीटर की दूरी तक निर्माण की अनुमति नहीं दी जाए। पहाड़ी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत भवनों में ढलान वाली छत अनिवार्य होगी

भूधंसाव के लिए जल निकासी दोषी 

जोशीमठ में भूधंसाव के लिए पानी की निकासी न होने के कारण बड़ा कारण माना जा रहा है। पीडीएनए रिपोर्ट बताती है कि जोशीमठ में पीने का पानी तो रिस ही रहा है, बल्कि नालों, सीवर और बारिश का पानी भी जमीन के भीतर पहुंच रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ में 6 मुख्य नालों द्वारा जल निकासी होती है जो रखरखाव की खराब स्थिति में है। 17,854 मीटर लंबे नाले का केवल 48 प्रतिशत भाग ही मेन लाइन से जुड़ा है।  कई स्थानों पर इसका डिजाइन जर्जर, अतिक्रमित और अवैज्ञानिक है। 

सोक पिट्स

शहर के 90 प्रतिशत से अधिक घर गंदे पानी और मल-मूत्र के  प्रबंधन के लिए अवैज्ञानिक रूप से निर्मित मिट्टी में बने गड्ढों (सोक पिट) पर निर्भर हैं। जिसका गंदा पानी रिसता रहता है और मिट्टी की सहन शक्ति कम कर देता है, इस वजह से इन घरों का ढलान की ओर खिसकने, भूमि धंसने या अचानक आई बाढ़ में ढहने का खतरा बन जाता है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दीर्घकालिक उपाय के तौर पर सभी अवैज्ञानिक रूप से निर्मित सोक पिट्स को नष्ट कर दिया जाना चाहिए और सतह पर बहने वाले हर तरह के पानी के रिसाव को रोकने के लिए पर्याप्त सुधार किया जाना चाहिए।

सीवेज 

जोशीमठ में मौजूदा 14.94 किमी लंबी सीवेज मुख्य लाइन परसारी और रविग्राम के वार्डों को कवर नहीं करती है। पेयजल निगम के अनुसार इन दोनों वार्डों में 291 कनेक्शन देने की अनुमानित लागत 150 करोड़ रुपये यानी प्रति कनेक्शन 25 लाख रुपये है। जो घरेलू सीवेज कनेक्शन प्रदान करने के लिए बहुत अधिक है। इसलिए पीडीएनए में जोशीमठ के लिए एक शहरी स्वच्छता योजना विकसित करने की सिफारिश की गई है जिसमें वार्डों और घरों के लिए विकेन्द्रीकृत सीवेज सुविधाएं शामिल होंगी, जिसके लिए वर्तमान की 14.94 किमी की मौजूदा सीवर लाइन पर्याप्त नहीं होगी। 

पीने का पानी

जोशीमठ में जल आपूर्ति नेटवर्क 47 साल पुराना है, पुराने पाइपों में जंग लग चुका है और भंडारण का नेटवर्क भी खराब हो चुका है, जिसके कारण पानी का भूमिगत रिसाव होता है, जिसे बंद करना मुश्किल होता है।

रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि रोजाना लगभग 10 लाख लीटर पानी में से लगभग 40 से 50 प्रतिशत पानी सिस्टम में रिसाव के कारण नष्ट हो जाता है और अंतिम उपयोगकर्ता तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे सतह में नमी बढ़ रही है, जो भूधंसाव की घटनाओं को बढ़ा सकता है। 

हेलंग बाइपास जरूरी

हालांकि रिपोर्ट में विवादित हेलंग-मारवाड़ी  बाइपास रोड बनाने की सिफारिश की गई है। यह बाइपास लगभग 21 किलोमीटर लंबा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बाइपास बनने से जोशीमठ शहर में यातायात का बोझ कम होगा।

जोशीमठ में भूधंसाव होते ही हेलंग-मारवाड़ी बाइपास रोड का निर्माण कार्य रोक दिया गया था। फोटो: सन्नी गौतम  

जमीनी हलचल की निगरानी जरूरी

रिपोर्ट में जमीनी हलचल को समझने के लिए क्षेत्र की निगरानी करने की अत्यधिक अनुशंसा की गई है, अधिमानतः कुल स्टेशन द्वारा, लंबी अवधि के लिए जमीनी नियंत्रण बिंदुओं की स्थापना करके, जमीन आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की सिफारिश की गई है।

हाइड्रो पावर पर निर्भर जोशीमठ

रिपोर्ट में बेशक एनटीपीसी द्वारा बनाए जा रहे तपोवन-विष्णुगाड़ हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का कहीं जिक्र नहीं है, लेकिन रिपोर्ट यह जरूर बताती है कि जोशीमठ ही नहीं, बल्कि आसपास के ज्यादातर इलाके बिजली के लिए हाइड्रो पावर पर ही निर्भर है। हालांकि यह पावर प्लांट बहुत कम क्षमता वाले हैं ।

रिपोर्ट कहती है कि जोशीमठ स्वयं 4.375 मेगावाट बिजली पैदा करता है। जोशीमठ शहर में बिजली की अधिकतम मांग 5.86 मेगावाट है, जबकि औसत मांग 3.78 मेगावाट है। जोशीमठ ही नहीं, बल्कि  हेलंग से बद्रीनाथ तक पूरी आबादी को तीन हाइड्रो पावर प्लांट से बिजली दी जाती है। इनमें  3 मेगावाट वाला उर्गम उत्पादन संयंत्र, उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा प्रबंधित किया जाता है। जो मुख्य रूप से जोशीमठ शहर में कार्य करता है। 

इसके अलावा पांडुकेश्वर और बद्रीनाथ में दो छोटी हाइड्रो पावर उत्पादन इकाइयां, क्रमशः 0.75 मेगावाट और 0.625 मेगावाट की क्षमता की हैं, जिनसे पांडुकेश्वर और बद्रीनाथ को बिजली मिलती है।

 

कल पढ़ें एक और एजेंसी की रिपोर्ट का सार 

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