जिंक के साथ माइक्रोग्रीन्स का बायोफोर्टिफिकेशन कम कर सकता है भुखमरी: शोध

शोध के मुताबिक कृषि से संबंधित बायोफोर्टिफिकेशन तकनीकों का उपयोग करके पोषक तत्वों से भरपूर फसलों का उत्पादन एक स्थायी रणनीति है जो कुपोषण को दूर करने के लिए बेहद जरूरी है

By Dayanidhi

On: Friday 12 May 2023
 
फोटो साभार :आई-स्टॉक

एक नए शोध के मुताबिक, छोटे पौधों में मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक खनिजों को शामिल करने का सबसे प्रभावी तरीका बायोफोर्टिफिकेशन विधियों का उपयोग करना है। शोधकर्ताओं ने बताया कि, उनके द्वारा उत्पादित अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा पर भी इस तरीके से बुरा असर नहीं पड़ा। सब्जी फसल विज्ञान के सहायक प्रोफेसर फ्रांसिस्को डि गोइया के अनुसार, जिंक के साथ बायोफोर्टिफाइड माइक्रोग्रीन्स लोगों को भुखमरी के खतरे से बाहर निकाल सकता है

क्या होता है बायोफोर्टिफिकेशन?

बायोफोर्टिफिकेशन फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार करने की प्रक्रिया है। इसे कृषि संबंधी विधियों, पारंपरिक प्रजनन या जैव तकनीक जैसे जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीनोम एडिटिंग के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।

माइक्रोग्रीन्स क्या हैं?

माइक्रोग्रीन्स सब्जियों और जड़ी-बूटियों के अंकुर से पैदा होते हैं, जो लगभग दो से तीन इंच लंबे होते हैं। मूली, ब्रोकोली, शलजम, गाजर, चार्ड, लेट्यूस, पालक, अमरंथ, फूलगोभी, पत्तागोभी, चुकंदर, अजमोद और तुलसी समेत पौधों की कई किस्में हैं, जिन्हें माइक्रोग्रीन्स  के रूप में उगाया जा सकता है। इन्हें अपने रोजमर्रा के भोजन में  स्वस्थ और पौष्टिक आहार के रूप में शामिल किया जा सकता है, इन्हें घर पर आसानी से उगाया जा सकता है।

अध्ययन से पता चला है कि बीज पोषक-प्राइमिंग के माध्यम से जिंक बायोफोर्टिफिकेशन छोटे मटर और सूरजमुखी के पौधों में जिंक के आवश्यक स्तर को हासिल करता है। इन परिणामों का दुनिया भर में 'छिपी हुई भूख' और आपातकालीन या आपदा की तैयारी दोनों पर प्रभाव पड़ता है।

शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था के साथ या उसके बिना छोटे स्थानों में विभिन्न प्रकार के बिना मिट्टी के उत्पादन प्रणालियों में माइक्रोग्रीन्स उगाए जा सकते हैं। इसमें जिंक बायोफोर्टिफिकेशन घटक एक महत्वपूर्ण और नया नवाचार है।

डि गोइया ने बताया कि बायोफोर्टिफिकेशन बीज से पोषण को बढ़ाने के लिए फसलों को उगाने की प्रक्रिया है। यह खाद्य फोर्टिफिकेशन से अलग है, जिसमें कटाई के बाद के प्रसंस्करण के दौरान खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के गरीब क्षेत्रों में, या तबाही के बाद की परिस्थितियों में, जिंक के घोल में बस बीजों को भिगोना पोषक तत्वों से भरपूर माइक्रोग्रीन्स के उत्पादन के लिए एक व्यावहारिक और असरदार रणनीति है।

उन्होंने कहा, दशकों पहले अधिक महत्व वाले खाने-पीने की वस्तुओं के रूप में शुरू होने वाले माइक्रोग्रीन्स ने आज उपभोक्ताओं के बीच अपने पोषण और एंटीऑक्सीडेंट यौगिकों की उच्च सामग्री के लिए लोकप्रियता हासिल की है। हमारे काम से पता चलता है कि माइक्रोग्रीन्स लोगों को एक वैश्विक तबाही से बचने में मदद कर सकता है जैसे कि परमाणु युद्ध, एक बड़ा क्षुद्रग्रह का हमला या छोटी अवधि में होने वाला सुपर-वॉल्केनो विस्फोट, लेकिन लंबी अवधि में अतिरिक्त पोषण संसाधनों की आवश्यकता हो सकती है।

इस तरह की आपदाजनक घटना सूर्य के प्रकाश और तापमान को कम करके, वर्षा के पैटर्न को बाधित करके और जल आपूर्ति को दूषित करके कृषि उत्पादकता को खतरे में डाल देगी। इस तरह की शुरुआती घटनाओं से बचे लोगों के लिए भुखमरी का एक बड़ा खतरा होगा। शुरुआत में, बायोफोर्टिफाइड माइक्रोग्रीन उत्पादन इन परिस्थितियों में लोगों के जीवित रहने की संभावना में सुधार कर सकता है।

शोधकर्ता प्रदीप पौडेल ने सुझाव दिया कि कृषि से संबंधित बायोफोर्टिफिकेशन तकनीकों का उपयोग करके पोषक तत्वों से भरपूर फसलों का उत्पादन एक स्थायी रणनीति है जो कुपोषण को दूर करने के लिए बेहद जरूरी है।

पॉडेल ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन "छिपी हुई भूख" को विटामिन और खनिजों की कमी के रूप में परिभाषित करता है, जो तब होता है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता उनके विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दो अरब लोग विटामिन और खनिज की कमी से पीड़ित हैं।

उन्होंने कहा, हम माइक्रोग्रीन्स में जिंक की मात्रा कैसे बढ़ा सकते हैं, एक बहुत ही सरल तरीका विकसित कर रहे हैं जिससे लोग 'माइक्रोग्रीन्स ग्रोइंग किट' का  घर पर उपयोग कर सकते हैं जिसे आपातकालीन स्थिति में बांटा जा सकता है। हम जानते हैं कि जस्ते के लिए एक उर्वरक स्रोत को शामिल करना महत्वपूर्ण होगा, इसलिए लोगों को, बीजों को अंकुरण में डालने से पहले भिगोना होगा, एक बहुत ही सरल प्रक्रिया है जो कोई भी अपने सब्जियों या साग में जस्ते की मात्रा को बढ़ा सकते हैं।

फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस में हाल ही में प्रकाशित निष्कर्षों में, शोधकर्ताओं ने बताया कि जिंक सल्फेट, जिसे कभी-कभी जिंक की कमी के उपचार के लिए या स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए सप्लीमेंट के रूप में लिया जाता है, जो सबसे प्रभावी जिंक स्रोत था। जिंक सल्फेट के 200 भाग प्रति मिलियन घोल में भिगोए गए बीजों के परिणामस्वरूप मटर 126 फीसदी और सूरजमुखी माइक्रोग्रीन्स 230 फीसदी दोनों में जस्ते की काफी मात्रा पाई गई।

शोधकर्ताओं ने जस्ते के अलग-अलग स्रोतों के प्रभाव की जांच की और माइक्रोग्रीन-उपज घटकों जैसे खनिज सामग्री को भिगोना, फाइटोकेमिकल जैसे क्लोरोफिल, कैरोटेनॉयड्स, फ्लेवोनोइड्स, एंथोसायनिन और फेनोलिक यौगिक, प्रति उपचारक गतिविधि और फाइटिक एसिड जैसे एंटी न्यूट्रिएंट आदि।

शोधकर्ताओं ने बताया कि बहुत अधिक मात्रा में जिंक सल्फेट और जिंक ऑक्साइड के घोल में बीजों को भिगोने से मटर और सूरजमुखी के माइक्रोग्रीन्स दोनों में फाइटिक एसिड कम हो जाता है जो एक अच्छा विकास है। क्योंकि फाइटिक एसिड को पोषक की कमी वाले तत्व के रूप में जाना जाता है, इसके कम स्तर से पता चलता है कि जिंक उपभोक्ताओं के लिए अधिक पोषक रूप से उपलब्ध हो सकता है।

पॉडेल ने कहा जबकि माइक्रोग्रीन्स और स्प्राउट्स या अंकुरित बीज के समान हैं, वे एक समान नहीं हैं। दोनों पौधे छोटे हैं, दोनों को घर के अंदर उगाया जा सकता है और दोनों को एक ही प्रकार के बीजों से उगाया जा सकता है, लेकिन यहीं से समानताएं खत्म हो जाती हैं।

बीज अंकुरित होने के बाद पौधे के जीवन चक्र में अंकुरण पहला चरण होता है। जब पौधा छोटा होता है वह अपनी पहली टहनी और जड़ से आगे बढ़ता है, तो यह माइक्रोग्रीन अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। माइक्रोग्रीन्स अनिवार्य रूप से पत्तियों, तनों और जड़ों के साथ छोटे में ही परिपक्व पौधा बन जाता है। तने के तीन से पांच इंच लंबे होने और पत्तियों का पहला समूह दिखाई देने के बाद उन्हें आमतौर पर काटा जाता है।

उन्होंने कहा, माइक्रोग्रीन पोषक तत्वों, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण वे जल्द ही परिपक्व पौधों की पत्तियों, फूलों और फलों में फैल जाएंगे। 

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