दुनिया भर में खाद्य संकट से निपटने तथा बढ़ती कीमतों पर इस तरह लगाई जा सकती है लगाम: अध्ययन

जानवरों को ऐसी फसलें खिलाई जाती हैं जिन्हें लोग सीधे खा सकते हैं, सभी फसलों का 30 से 40 प्रतिशत जानवरों को खिलाया जाता है

By Dayanidhi

On: Wednesday 23 November 2022
 

वैश्विक खाद्य प्रणाली ने हाल के वर्षों में कई अभूतपूर्व खतरों और आपूर्ति की रुकावटों का सामना किया है, जिसमें कोविड-19, टिड्डियों का आक्रमण और चरम मौसम की घटनाएं शामिल हैं। कोविड-19 से पहले ही खाद्य प्रणाली दबाव में है और खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है, रूस-यूक्रेन युद्ध ने एक और झटका दिया, जिसके कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छूने लगी।

अब शोधकर्ताओं के खाद्य संकट से निपटने के लिए सुझाव सामने रखे हैं। जिसमें एक पौधा-आधारित भोजन प्रणाली हमारी खाद्य संकट में सुधार कर सकता है। दुनिया भर में खासकर यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम में इस तरह के आहार अपनाने से रूस और यूक्रेन से आने वाले लगभग सभी तरह के उत्पादन की कमी को पूरा किया जा सकता है। यह निष्कर्ष शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने निकाला है।

लीडेन के शोधकर्ता पॉल बेहरेंस ने कहा कि हम जानवरों को ऐसी फसल खिला रहे हैं जिसे हम खुद खा सकते हैं।

चाइना एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी और प्रमुख शोधकर्ता झोंगक्सियाओ सन ने कहा, संघर्ष, बाढ़ और सूखे जैसे कारणों से भोजन की कमी के अन्य कारण, दुनिया भर में खाद्य उत्पादन पर दबाव डाल रहे हैं। पौधों पर आधारित आहार में तेजी से बदलाव से हमें पानी के उपयोग को कम करने, उत्सर्जन को कम करने, हमारे स्वास्थ्य में सुधार करने तथा अधिक प्राकृतिक क्षेत्र प्रदान करने में मदद मिल सकती है।

यूक्रेन में युद्ध का वैश्विक खाद्य आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। रूस और यूक्रेन सूरजमुखी का तेल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों के प्रमुख उत्पादक हैं। कुछ समय से वैश्विक खाद्य असुरक्षा लगातार बढ़ रही थी, लेकिन संघर्ष ने खाद्य की कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।

घरेलू कीमतों को स्थिर करने के प्रयास में इंडोनेशिया ने पाम या ताड़ के तेल तथा भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारी झटके लगे अर्थात कीमतें आसमान छूने लगी।

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुमान के अनुसार 20 से अधिक देशों ने प्रतिक्रिया के रूप में खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। ये प्रतिबंध उन क्षेत्रों में लगाए गए जो पहले से ही अन्य दबावों का सामना कर रहे हैं, जैसे कि दक्षिण पूर्व एशिया और भारत।

दक्षिण पूर्व एशिया में, कोविड-19 महामारी के पहले दो वर्षों के दौरान प्रवासी श्रमिकों की कमी के कारण ताड़ के तेल का उत्पादन धीमा हो गया। भारत में, जलवायु परिवर्तन के चलते वसंत में अभूतपूर्व गर्मी तथा लू ने गेहूं के उत्पादन को कम कर दिया।

अधिक खपत को कम करना

शोधकर्ताओं ने यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के देशों में ईएटी-लांसेट ग्रहों के आहार में बदलाव से बचाई गई भूमि की जांच की। इस पौधे-आधारित आहार को अपनाने से यूक्रेन और रूस दोनों में लगभग समान मात्रा में भोजन की आवश्यकता कम हो जाएगी। यह इन प्रमुख खाद्य उत्पादकों के उत्पादन करने के बड़े झटके को सहन कर सकता है। इसके यह अतिरिक्त, अधिक आय वाले देशों में आहार पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर होगा।

लीडेन के शोधकर्ता पॉल बेहरेंस ने कहा, यह अवसर पैदा होता है क्योंकि ये देश पशु उत्पादों और शक्कर का अधिक सेवन करते हैं। जानवरों को ऐसी फसलें खिलाई जाती हैं जिन्हें लोग सीधे खा सकते हैं, सभी फसलों का 30 से 40 प्रतिशत जानवरों को खिलाया जाता है। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में, यह संख्या 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। पशु पालन भी सभी कृषि भूमि के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लेती है।

कृषि स्थान को मुक्त करना

शोधकर्ताओं ने पाया कि पूरे यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में पौधे आधारित आहार अपनाने से फ्रांस और ब्रिटेन के संयुक्त आकार की तुलना में थोड़ा बड़ा क्षेत्र मुक्त हो सकता है। इस भूमि में से कुछ का उपयोग दुनिया भर में उत्पादन के झटकों से नष्ट हुई फसलों को बदलने के लिए किया जा सकता है।

रूस और यूक्रेन से सभी निर्यात की जाने वाली फसलों को बदलने के लिए इस बचाई गई भूमि के लगभग 16 प्रतिशत की आवश्यकता होगी। यह कम पानी के उपयोग, कम उत्सर्जन और बेहतर जैव विविधता सहित कई पर्यावरणीय फायदे भी देगा, जो इस बात पर निर्भर करता है कि बचाई गई भूमि का उपयोग कैसे किया गया।

बेहरेंस ने कहा हम खाद्य प्रणाली में बढ़ते झटके की और बढ़ रहे हैं। हम जानते हैं कि पौधे-आधारित आहार नाटकीय रूप से पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हैं, लेकिन वे खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकते हैं। अवसर को देखते हुए, जानवरों की खपत में छोटी कटौती भी मदद करती है।

यदि हम इन आहारों में बदलाव नहीं करते हैं, तो जलवायु प्रभाव और कीमतों में वृद्धि होगी। संघर्ष बदतर होते हैं, जिससे पशु उत्पाद तेजी से महंगे हो जाते हैं। प्रकृति द्वारा हमारे लिए निर्णय लेने और नुकसान पहले ही हो जाने तक प्रतीक्षा करने के बजाय आज इन बदलावों को करना बेहतर है। यह अध्ययन नेचर फूड नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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