ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023: 125 देशों में 111वें स्थान पर भारत, कुपोषण की बेहद गंभीर है स्थिति

देश में कुपोषण की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में 18.7 फीसदी बच्चे बेहद पतले हैं। वहीं 15 से 24 वर्ष की 58.1 फीसदी बच्चियां खून की कमी का शिकार हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 13 October 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

इस साल का ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 जारी कर दिया गया है, जिसमें 125 देशों की सूची में भारत को 111वें पायदान पर रखा गया है, जो देश में बढ़ती भुखमरी और कुपोषण की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

इस मामले में देश की स्थिति कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत अपने पडोसी देशों जैसे बांग्लादेश (81) , पाकिस्तान (102) , नेपाल (69), श्रीलंका (60) से भी काफी पीछे है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 28.7 अंक दिए गए हैं जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाने के लिए काफी हैं।

देखा जाए तो पिछले वर्ष 2022 में भारत को इस इंडेक्स में 107वें पायदान पर रखा गया था। मतलब की पिछले साल की तुलना में देश में स्थिति कहीं ज्यादा खराब हुई है, जिसकी वजह से वो चार पायदान गिरकर 111 पर आ गया है। हालांकि भारत को इस लिस्ट में मोजांबिक, अफगानिस्तान, चाड, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक से ऊपर रखा गया है। सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में तो कुपोषण की दर 48.7 फीसदी तक पहुंच गई है। 

इस बारे में जो रिपोर्ट जारी की गई है उसके मुताबिक भारत में कुपोषण की स्थिति बेहद गंभीर है। बच्चों में वेस्टिंग दर 18.7 फीसदी रिपोर्ट की गई है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। यह वो बच्चे हैं जो अपनी ऊंचाई के लिहाज से बहुत पतले हैं। इसी तरह देश 15 से 24 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 58.1 फीसदी दर्ज किया गया है। मतलब की इस आयु वर्ग की आधी से ज्यादा महिलाएं खून की कमी का शिकार हैं।

कुपोषण से जूझती 16.6 फीसदी आबादी, 58 फीसदी महिलाओं में खून की है कमी 

इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार देश में 16.6 फीसदी आबादी कुपोषण का शिकार है। वहीं पांच वर्ष से कम आयु के 35.5 फीसदी बच्चे  स्टंटिंग यानी अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं। इसी तरह पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु दर 3.1 फीसदी दर्ज की गई है। कहीं न कहीं यह आंकड़े देश में व्याप्त कुपोषण की गंभीर स्थिति को दर्शाते हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।

हालांकि पिछले दो वर्षों से भारत सरकार इस रिपोर्ट को नकारती रही है। सरकार के अनुसार इस रिपोर्ट में जिस माप यानी मैट्रिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है वो इसे संदेह के घेरे में लाता है। लेकिन सरकार जो भी कहे इस रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता और यह कहीं न कहीं देश में कुपोषण की बेहद गंभीर स्थिति की ओर इशारा करते हैं।

गौरतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स देश-दुनिया में भुखमरी और कुपोषण को मापने और ट्रक करने का एक टूल है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो इंडेक्स के मुताबिक नौ देशों में भूख और भुखमरी की स्थिति बेहद चिंताजनक है, इनमें बुरुंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कांगो रिपब्लिक, लेसोथो, मेडागास्कर, नाइजर, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन शामिल हैं। वहीं भारत सहित अन्य 34 देशों में यह स्थिति गंभीर बनी हुई है। 

रिपोर्ट के अनुसार भारत ही नहीं कई अन्य देशों में भी भूख और भुखमरी की स्थिति बदतर हुई है। 2015 के बाद से देखें तो मध्यम, गंभीर या चिंताजनक स्थिति वाले 18 देशों में इस साल स्थिति कहीं ज्यादा खराब हुई है। 

देखा जाए तो हाल के कुछ वर्षों में एक के बाद एक आपदाएं आई हैं उनसे स्थिति कहीं ज्यादा खराब हुई है। पहले महामारी, इसके बाद रूस-यूक्रेन में जारी संघर्ष ने स्थिति और ज्यादा खराब की है। वहीं जलवायु में आते बदलाव और उनसे जुड़ी चरम मौसमी आपदाओं ने तो जैसे लोगों की कमर ही तोड़ दी। इन आपदाओं ने जहां कृषि पर व्यापक असर डाला है साथ ही खाद्य असुरक्षा को भी बढ़ाया है। इसकी वजह से कई देशों में खाद्य संकट कहीं ज्यादा गहरा गया है। 

लेकिन इसके बावजूद किसानों के हौसले कमजोर नहीं हुए हैं। इस बारे में पेशे से किसान 31 वर्षीय चेतन कुमार का कहना है कि, “हमारे माता-पिता किसान हैं, हमारे पूर्वज भी किसान थे, और हम छोटे किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझते हैं। अगर हम अपनी समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे तो कौन करेगा?”

सोमालिया के 20 वर्ष मोहम्मद अली मोहम्मद का कहना है कि लोग पहले ही संघर्ष की आग में जल रहे थे, फिर कोरोना महामारी आई इसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध, इसकी वजह से कीमतों में काफी ज्यादा असर पड़ा है। इनकी वजह से स्थिति कहीं ज्यादा खराब हो गई है। इस संकट के समय दिन में तीन जून की रोटी मिलना मुश्किल हो गया है। कई लोगों को तो एक वक्त के खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। 

देखा जाए तो भूख और कुपोषण अपने साथ दूसरी समस्याएं भी साथ लाते हैं। इनकी वजह से न केवल स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है बल्कि लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी खराब होती है। उदाहरण के लिए इसकी वजह से बच्चों की शिक्षा पर भी असर पड़ रहा है। बुरुंडी के 43 वर्षीय क्लेमेंस क्विजेरा का कहना है कि, "हमारा स्कूल उस क्षेत्र में स्थित है, जो लगातार खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है। जलवायु परिवर्तन के चलते यह असुरक्षा बढ़ गई है। इसने बच्चों की शिक्षा पर भी बुरा असर डाला है। इसके कारण स्कूल में बच्चों की उपस्थिति घट गई है।”

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