आयरन फोर्टिफाइड चावल पर क्यों नहीं स्वास्थ्य चेतावनी: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

आयरन का सेवन थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीड़ित मरीजों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे अंग तक विफल हो सकते हैं

By Shagun, Lalit Maurya

On: Wednesday 18 October 2023
 
Photo: iStock

सर्वोच्च न्यायालय ने 14 अक्टूबर, 2023 को केंद्र सरकार से आयरन-फोर्टिफाइड चावल के वितरण को लेकर शुरू की गई पहल के बारे में उपजी चिंताओं को दूर करने का निर्देश दिया है। मामला इस कार्यक्रम के तहत थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीड़ित लोगों को भी आयरन-फोर्टिफाइड चावल के अंधाधुंध वितरण से जुड़ा है।

गौरतलब है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने भी इसके लिए नियम जारी किए हैं, जिनमें ऐसी स्थिति वाले लोगों को आयरन-फोर्टिफाइड आहार का सेवन करने को लेकर आगाह किया है। साथ ही यह सुझाव दिया है कि उन्हें ऐसा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए और केवल चिकित्सक की सलाह और देखरेख में ऐसा करना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियमन, 2018 के खंड 7 (4) के अनुसार, थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग जैसे रक्त संबंधी विकारों से पीड़ित लोगों आयरन खाने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसी स्थिति वाले लोगों के आयरन का सेवन करने से अंगों की विफलता जैसे गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं, जिसके वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

इसका मतलब है कि ऐसे मरीजों को बिना किसी जांच के आयरन-फोर्टिफाइड चावल वितरित करना सरकार की अपनी चेतावनियों के विरुद्ध है, जो नियमों का उल्लंघन भी है।

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की बेंच ने सरकार को चार सप्ताह के भीतर यह सूचित करने का निर्देश दिया है कि वे इस नियम का पालन कैसे कर रहे हैं कि फोर्टिफाइड चावल के बैग पर लेबल में यह चेतावनी शामिल होनी चाहिए कि यह थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया वाले लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है।

2018 के नियमों में यह प्रावधान किया गया है कि आयरन-फोर्टिफाइड भोजन के प्रत्येक पैकेज पर एक चेतावनी लिखी होना चाहिए कि, "थैलेसीमिया से पीड़ित लोग चिकित्सकीय देखरेख में इसका सेवन कर सकते हैं, और सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित लोगों को आयरन-फोर्टिफाइड खाद्य-उत्पादों के सेवन से बचना चाहिए।"

कोर्ट का यह निर्देश राजेश कृष्णन और अन्य द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में दिया गया है, जिसमें सरकार के आयरन फोर्टिफाइड चावल कार्यक्रम को चुनौती दी गई थी।

अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर और एंड राइट टू फूड कैम्पेन द्वारा छत्तीसगढ़ और झारखंड में की गई हालिया जांच में पता चला कि लेबलिंग के नियमों और दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन खाद्य योजनाओं में भोजन का वितरण बिना पैकेजिंग के किया जाता है या पकाया जाता है, वहां कोई लिखित या मौखिक चेतावनी नहीं दी जाती है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि फूड फोर्टिफिकेशन का मतलब उन खाद्य पदार्थों में मानव निर्मित विटामिन और खनिज (जैसे आयरन, फोलिक एसिड, आयोडीन, जिंक, विटामिन बी12, ए, डी) को जोड़ना है, जिनमें ये प्राकृतिक रूप से नहीं होते हैं। इसका उपयोग भारत में कुपोषण की रणनीति के रूप में किया जाता है।

15 राज्यों में वितरित किया जा रहा है आयरन-फोर्टिफाइड चावल

सरकार ने अगस्त 2022 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत सभी सरकारी खाद्य योजनाओं में प्राथमिक खाद्य पदार्थ चावल में आवश्यक पोषक तत्वों  को जोड़ने (फोर्टिफिकेशन) के लिए हरी झंडी दे दी थी। तब से, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आंगनवाड़ियों, मिड डे मील जैसे सार्वजनिक सुरक्षा कार्यक्रमों की मदद से आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश सहित 15 राज्यों में पायलट कार्यक्रम के रूप में आयरन-फोर्टिफाइड चावल की आपूर्ति की जा रही है। इससे लाखों लोगों को लाभ हुआ है।

आयरन-फोर्टिफाइड चावल बिना किसी जांच या चिकित्सा निरीक्षण के अंधाधुंध तरीके से लोगों में वितरित किया जा रहा है। रक्त विकार (हीमोग्लोबिनोपैथी) वाले रोगियों को यह पता भी नहीं कि यह चावल उनके लिए हानिकारक है। वहीं राज्य सरकारों को भी इस चेतावनी के संबंध में केंद्र सरकार से कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं।

जांच के दौरान यह देखा गया कि, “मध्याह्न भोजन जैसी कुछ योजनाओं में चावल को ऐसे ही या पकाकर वितरित किया जा रहा है, लेकिन वहां कोई स्पष्ट लिखित या मौखिक चेतावनियां नहीं दी गई हैं। जो बोरियों पर भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। इसके अतिरिक्त, ऐसे रोगियों को कोई वैकल्पिक आयरन-मुक्त चावल उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।“

यह भी पाया गया कि चावल का फोर्टिफिकेशन अनिवार्य बनता जा रहा है क्योंकि इन सभी योजनाओं में आपूर्ति किए जाने वाले चावल में केवल फोर्टिफाइड राइस की पेशकश की सम्भावना है, जिससे कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा।

उनका कहना है कि, "राज्य की खाद्य योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लोग, जो कृत्रिम रूप से फोर्टिफाइड चावल का उपभोग करते हैं, मुख्य रूप से गरीब तबके से जुड़े हैं। जो सरकार द्वारा दिए जा रहे सब्सिडी वाले आहार पर निर्भर हैं। उनके लिए, आयरन-फोर्टिफाइड चावल का उपयोग करना अनिवार्य है क्योंकि वे बाजार फोर्टिफाइड रहित चावल को खरीदने में सक्षम नहीं हैं।"

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि ऐसे मरीजों को जिन्हें फोर्टिफाइड चावल का सेवन नहीं करना चाहिए, उन्हें अतिरिक्त पोषक तत्वों के बिना सादा चावल उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

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