आहार संस्कृति: बहुत गुणकारी है लसोड़ा, ऐसे बनती है सब्जी
लसोड़े के पेड़ में बहुत से औषधीय गुण हैं। इस पौधे का हर हिस्सा उपयोग में लाया जाता है
On: Sunday 08 October 2023
मैं भोपाल की जिस कॉलोनी में रहता हूं, वह बहुत बड़ी और हरियाली से भरपूर है। यहां पाए जाने वाले बहुत से पेड़-पौधे चिड़ियों और चमगादड़ों की बदौलत हैं क्योंकि ये पक्षी पौधों के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर उनका कुदरती विस्तार करते हैं। लसोड़ा पेड़ों की एक ऐसी ही प्रजाति है जो बिना किसी बाहरी दखल के मेरे घर के पिछवाड़े में आसानी से फल फूल रही है।
अप्रैल माह के किसी दिन मैंने देखा कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र से आई मेरी कुक उसकी ताजा पत्तियों और नाजुक टहनियों को सब्जी बनाने के लिए तोड़ रही है। मैंने यह भी देखा कि कुछ छोटे गोलाकार हरे फल पेड़ पर लटके हैं। मई के मध्य तक यह फल ठीक ठाक बड़े हो गए और मैंने सब्जी बनाने के लिए उन्हें तोड़कर टोकरी में रख लिया।
लसोड़ा (कॉर्डिया डाइकोटोमा) पेड़ पर नाजुक छाल भी होती है जिनमें समय के साथ दरारें दिखाई देने लगती हैं। ये पेड़ 8 से 10 मीटर लंबे हो जाते हैं। इसका तना और शाखाएं इतनी लचीली होती हैं कि गर्मियों में जब चारे की कमी हो जाती है, इन्हें झुकाकर शाकाहारी पशुओं के लिए चारे का आसानी से इंतजाम कर लिया जाता है। दूसरी ओर इस पेड़ की लकड़ी इतनी सख्त व मजबूत होती है कि कृषि उपकरण और बहुत से घरेलू सामान का हैंडल बनाने में परंपरागत रूप से इस्तेमाल होती है।
इस पर्णपाती पेड़ के पत्ते चौड़े अंडाकार होते हैं और इसका अग्रभाग नुकीला होता है। इसके फूल छोटे होते हैं और रंग सफेद से हल्का गुलाबी है। शुरुआत में इसका फल हरा और आकार शंकु होता है। परिपक्व होने पर फल उसमें पीलापन आ जाता है। इसके साथ ही ये फल गूदेदार हो जाता है। पकने पर पक्षी या मानव इसे खा लेते हैं। मोटे गूदे में इसका अंडाकार बीज मौजूद रहता है।
हर हिस्सा उपयोगी
अध्ययन बताते हैं कि लसोड़ा की छाल और फल में बहुत से औषधीय गुण होते हैं। शारीरिक ताकत में सुधार के अलावा छाल के काढ़ा का इस्तेमाल घाव व डायरिया को ठीक करने और आंतों के कीड़ों को मारने में किया जाता है। लसोड़ा के हर हिस्से का प्रयोग स्थानीय समुदाय द्वारा परंपरागत रूप से किया जाता है। इसके फल से तैयार जूस सूजन में आराम देता है और अस्थमा समेत श्वसन संबंधी विकारों को दूर करने में मदद करता है। अधपके फल से बनी सब्जी अपच काे दुरुस्त करती है। इसकी पत्तियों का लेप माइग्रेन को कम करने में मददगार है।
ऐतिहासिक रूप से लसोड़ा का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता रहा है। संस्कृत में इसे श्लेष्मातक कहा जाता है। यह उन 16 पौधों में शामिल है जिनका इस्तेमाल गोजिह्वादि कषायम: नामक आयुर्वेदिक फॉर्मुलेशन में किया जाता है। इस फॉर्मुलेशन का प्रयोग खांसी, ब्रोंनकाइटिस और अस्थमा जैसे सांस के रोगों में किया जाता है। इसके अलावा फल का उपयोग कोफनिल कफ सिरप बनाने में किया जाता है जो एलर्जी और खांसी को ठीक करता है। इसकी छाल स्वाद में कड़वी होती है और यह पित्त व बलगम संबंधी विकारों को कम करने के लिए जानी जाती है।
हालांकि लसोड़ा बहुतायत में पाया जाता है और यह विलुप्तप्राय प्रजाति में भी शामिल नहीं है, फिर भी इसके पेड़ की संख्या घट रही है। बहुउपयोगी प्रजाति होने के कारण इस पर मानवजनित दबाव है। चारे के लिए इनके पत्ते तोड़ते वक्त शाखाएं झुका अथवा तोड़ ली जाती हैं। यह कुदरती रूप से फैले बीज के जरिए पनपता है।
इसके छोटे पौधों को जानवर चर जाते हैं। इसे बड़े स्तर पर फैलाने के लिए टहनी की कलम से लगाया जा सकता है। बड़े स्तर पर लगाकर न केवल इसे संरक्षित किया जा सकता है, बल्कि जीवनयापन के लिए इस पर निर्भर समुदायों की जरूरतें भी पूरी की जा सकती हैं।
व्यंजन : लसोड़ा सब्जीसामग्री:
पुस्तक द ऑलिव ओईल एन्थूजियास्ट : अ गाइड फ्रोम ट्री टू टेबल, विद रेसिपीज लेखक: स्काइलर मेप्स, गिसेप मोरिसनी प्रकाशक: टेन स्पीड ट्रीज मूल्य: £R1,564 पृष्ठ: £160 यह किताब जैतून तेल की दुनिया की सैर पर ले जाती है, जिसमें आप जैतून के जंगलों से होते हुए इसके पेड़ों को बढ़ते हुए, फूलते-फलते हुए देखते हैं और यह सैर जैतून की तुड़ाई से लेकर इससे तेल उत्पादन तक के बारे में आपका मार्गदर्शन करती है। इस किताब में जैतून के तेल की खरीदारी, चखने, उपयोग करने और भंडारण के लिए युक्तियों का भी समावेश किया गया है। इस किताब में लेखकद्वय ने जैतून के तेल से बनने वाले उन व्यंजनों को भी शामिल किया है, जो अनेक देशों में खाने के टेबल की शोभा बढ़ाते हैं। |