बच्चों में मिले पोलियो जैसी बीमारी को पहचानने वाले दुर्लभ एंटीबॉडी

वैज्ञानिकों ने बच्चों में एक ऐसे एंटीबॉडी ढूंढ़ निकाला है, जिसकी मदद से पोलियो जैसी बीमारी को पहचाना जा सकेगा

By Dayanidhi

On: Tuesday 07 July 2020
 
कोविड-19 महामारी का पोलियो उन्मूलन सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। फोटो सीएसई

वैज्ञानिकों ने बच्चों में एक ऐसे एंटीबॉडी ढूंढ़ निकाला है, जिसकी मदद से पोलियो जैसी बीमारी को पहचाना जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने मानव मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को अलग कर दिया है जो एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक पोलियो जैसी बीमारी को रोक सकता है। यह बच्चों में श्वसन संक्रमण से जुड़ा हुआ है।

यह कारनामा वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, पर्ड्यू विश्वविद्यालय और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है। एक्यूट फ्लेसीस मायलिटिस (एएफएम) नामक बीमारी, इसमें बुखार या सांस की बीमारी के बाद हाथ और पैर में अचानक कमजोरी जाती है।

2014 में अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने इस बीमारी पर नजर रखना शुरू किया, इस दौरान 600 से अधिक मामलों की पहचान की गई। यह अध्ययन साइंस इम्यूनोलॉजी नामक पत्रिका प्रकाशित हुआ है।

एक्यूट फ्लेसीस मायलिटिस (एएफएम) का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। यह गर्मियों के शुरुआती दौर में प्रहार करता है और इसके कारण काफी मौतों भी हुई हैं। हालांकि, बीमारी को हाल ही में श्वसन वायरस के एक समूह से जोड़ा गया है, जिसे एंटरोवायरस डी-68 (ईवी-डी 68) कहा जाता है।

वेंडरबिल्ट वैक्सीन सेंटर के शोधकर्ताओं ने बच्चों के रक्त से एंटीबॉडी-उत्पादक रक्त कोशिकाओं को अलग किया, जो पहले से ईवी-डी 68 से संक्रमित थे। तेजी से बढ़ती मायलोमा कोशिकाओं में रक्त कोशिकाओं को अलग करने से, शोधकर्ता मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का एक पैनल उत्पन्न करने में सफल हुए जो प्रयोगशाला अध्ययनों में वायरस को बेअसर कर देते थे।

पर्ड्यू के सहकर्मियों ने एंटीबॉडी की संरचना निर्धारित की, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि ईवी-डी 68 को कैसे पहचानते हैं और उसे किस तरह बांधते हैं। एंटरोवायरस द्वारा संक्रमण से पहले या बाद में दिए जाने पर एंटीबॉडी में से एक ने श्वसन और तंत्रिका संबंधी रोग से चूहों को बचाया।

वेंडरबिल्ट वैक्सीन सेंटर के निदेशक डॉ. जेम्स क्रो ने कहा हम इस भयानक पोलियो जैसे वायरस को रोकने वाले शक्तिशाली मानव एंटीबॉडी को अलग करने के लिए उत्साहित थे। यह अध्ययन परीक्षणों को आगे ले जाने में मदद करेगा। डॉ. क्रो वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल रोग और पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर भी हैं।

पर्ड्यू के ट्रेंट और जुडिथ एंडरसन प्रतिष्ठित प्रोफेसर रिचर्ड कुह्न ने कहा कि यह एक बहुत ही बुनियादी स्तर से संक्रामक रोग का अध्ययन और परिणामों को पशु मॉडल में लागू करने का बहुत शक्तिशाली प्रयोग है। उम्मीद है, हमारा यह अध्ययन बच्चों में होने वाली इस बीमारी के लिए एक चिकित्सीय समाधान निकालेगा।

गौरतलब है कि हाल ही में डब्ल्यूएचओ समर्थित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (आईएचआर) के तहत पोलियो वायरस के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार पर आपातकालीन समिति की पच्चीसवीं बैठक हुई। बैठक में बताया गया कि अफ्रीका में पोलियो वायरस बड़ी तेजी से फैल रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने कहा अफ्रीका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पोलियो वायरस के संचरण को समाप्त करने के लिए अभी और बहुत काम करना बाकी है। कोविड-19 महामारी का पोलियो उन्मूलन सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है।

दुनिया भर में 2019 से 2020 में पोलियो वायरस डब्ल्यूपीवी1 के मामलों की बढ़ती संख्या काफी चिंताजनक है। इस वर्ष 16 जून 2020 तक पोलियो वायरस डब्ल्यूपीवी1 के 70 मामले सामने आए हैं, जबकि 2019 में इसी अवधि में केवल 57 मामले थे, अर्थात पोलियो के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

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