बच्चों के शरीर में कितना जमा हो रहा है माइक्रोप्लास्टिक, पता लगाएंगे वैज्ञानिक

18 वर्ष की आयु तक बच्चे अपने टिश्यू में औसतन माइक्रोप्लास्टिक के 8,300 कणों को जमा कर सकते हैं 

By Lalit Maurya

On: Thursday 01 April 2021
 

एक 18 वर्ष की आयु तक बच्चे अपने टिश्यू में औसतन माइक्रोप्लास्टिक के 8,300 कणों को जमा कर सकते हैं जिनका वजन करीब 6.4 नैनोग्राम तक हो सकता है, जबकि 70 वर्ष की आयु तक एक वयस्क औसतन 50,100 माइक्रोप्लास्टिक कणों को जमा कर सकता है जिनका वजन करीब 40.7 नैनोग्राम तक हो सकता है| इसके साथ ही शोधकर्ताओं को यह भी पता चला है कि इन कणों के साथ शरीर में गए 4 केमिकल्स की मात्रा इन कणों की तुलना में काफी कम थी|

हर दिन हम माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं| यह हमारी रोजमर्रा की चीजों जैसे टूथपेस्ट, क्रीम आदि से लेकर हमारे भोजन, हवा और पीने के पानी तक में मौजूद हो सकते हैं। हालांकि प्लास्टिक के यह अति सूक्ष्म कण कितनी मात्रा में, कैसे हमारे शरीर में पहुंचते है| साथ ही यह सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य के लिए कितने नुकसानदेह हैं, इस बारे में अभी भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।

हालांकि मानव मल में मिले इसके कण इस बात का पक्का सबूत हैं कि यह हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं| हाल ही में छपे एक शोध में अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा (गर्भनाल) में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला था, जोकि एक बड़ी चिंता का विषय है। शरीर के लिए यह माइक्रोप्लास्टिक कितने नुकसानदेह हैं इस बारे में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, पर इतना जरूर है कि यह कण टिश्यू को नुकसान पहुंचा सकते हैं और सूजन का कारण बन सकते हैं| साथ ही यह कण विषाक्त पदार्थों के वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। इनमें पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम जैसे जहरीले भारी धातु और कार्बनिक यौगिक शामिल हैं। लम्बी अवधि के दौरान यह विषाक्त पदार्थ स्वास्थ्य के लिए काफी गंभीर हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने एक नया मॉडल विकसित किया है जो बताता है कि जीवन भर में हम कितने माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं| यह मॉडल दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग स्रोतों से माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने का अनुमान लगा सकता है| इससे जुड़ा शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के जर्नल एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है|

हालांकि इससे पहले भी शोधकर्ताओं ने मनुष्य के इन कणों और इसमें मौजूद रसायनों के संपर्क में आने और इससे जुड़े जोखिमों को जानने का प्रयास किया है, लेकिन उनकी अपनी सीमाएं हैं| शोधकर्ताओं ने बच्चों और वयस्कों के उनके जीवनकाल में इन माइक्रोप्लास्टिक और उनसे जुड़े केमिकल्स के संपर्क में आने का अनुमान लगाने के लिए इस नए मॉडल को विकसित किया है|

क्या कुछ निकल कर आया अध्ययन में सामने

इस मॉडल के लिए शोधकर्ताओं ने 134 अध्ययनों की मदद ली है, जिनसे मछली, घोंघे, क्रसटेशियन, नल या बोतलबंद पानी, बीयर, दूध, नमक और हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा का पता लग सके। उन्होंने इन शोधों के आंकड़ों में सुधार किया है जिससे उनकी तुलना की जा सके| इसके बाद टीम ने विभिन्न देशों में विभिन्न आयु वर्ग के हिसाब से भोजन की खपत के आंकड़ों का विश्लेषण किया है जिससे यह पता लग सके कि वो कितनी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक को निगल रहे हैं|

इस सूचना के आधार पर उन्होंने यह जानने की कोशिश की है कि कितनी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक को आंतो द्वारा पचाया जा रहा है और लीवर द्वारा शरीर से बाहर निकाला जा रहा है| साथ ही इसकी मदद से उन्होंने आंत और ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक के वितरण का अनुमान लगाने का प्रयास किया है|

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर जब छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  सामान्यतः प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जिस तरह से दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका पर्यावरण पर क्या असर होगा, इसे अब तक बहुत कम करके आंका गया है, जबकि माइक्रोप्लास्टिक्स के बारे में तो बहुत ही सीमित जानकारी उपलब्ध है।

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