एच3एन2 का प्रकोप: भारत में दो महामारियों का कारण बन चुका है यह वायरस

इन्फ्लुएंजा ए वायरस एकमात्र इन्फ्लूएंजा वायरस है जो फ्लू महामारी का कारण बनता है  

By DTE Staff

On: Tuesday 07 March 2023
 

दिसंबर 2022 के अंत और जनवरी 2023 की शुरुआत से पूरे भारत में सांस की बीमारी का प्रकोप देखा गया है - जिसमें सर्दी, गले में खराश और बुखार के लक्षण हैं। मार्च तक, दिल्ली जैसे शहरों में इस बीमारी के व्यापक मामले सामने आ चुके हैं। इस बीमारी का क्या कारण है?

4 मार्च को, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पुष्टि की कि इन्फ्लुएंजा सब-टाइप एच3एन2 की वजह से यह बीमारी फैल रही है। आईसीएमआर के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 के पहले नौ हफ्तों में एच3एन2 के मामले बढ़ रहे हैं। आईसीएमआर के मुताबिक, 15 दिसंबर से यह वायरस सबसे ज्यादा फैल रहा है।

आईसीएमआर ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, “अस्पतालों में गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण से पीड़ित जो रोगी भर्ती हैं, उनमें से कम से कम 92 प्रतिशत मरीजों को एच3एन2 वायरस की वजह से बुखार आया था, जबकि 86 प्रतिशत को खांसी हो रही थी। इसके अतिरिक्त, 27 प्रतिशत को सांस लेने में तकलीफ और 16 प्रतिशत में सांस में घरघराहट के लक्षण थे। साथ ही, 16 प्रतिशत में निमोनिया के लक्षण थे और 6 प्रतिशत मरीजों को दौरे आ रहे थे।

आईसीएमआर ने चेतावनी दी, "अन्य इन्फ्लुएंजा सब-टाइपों की तुलना में इस वायरस से पीड़ित मरीज अधिक संख्या में अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं।"

लेकिन हम इस वायरस के बारे में क्या जानते हैं? अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पूर्व प्रमुख रणदीप गुलेरिया ने एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा: “एच1एन1 के कारण कई साल पहले हमारे पास एक महामारी आई थी। उस वायरस का सर्कुलेटिंग स्ट्रेन अब एच3एन2 है और इसलिए, यह एक सामान्य इन्फ्लूएंजा स्ट्रेन है।

जून 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच1एन1 महामारी घोषित की थी। इसे स्वाइन फ्लू महामारी के नाम से ज्यादा जाना जाता है। इसका पहला मामला अप्रैल 2009 में उत्तरी अमेरिका में पाया गया था, लेकिन जब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित किया, तब तक यह 74 देशों में फैल चुका था।

उस समय डब्ल्यूएचओ ने कहा, “2009 में एच1एन1 महामारी से पहले इन्फ्लूएंजा ए(एच1एन1) वायरस की पहचान लोगों में संक्रमण के कारण के रूप में कभी नहीं की गई थी।" इस वायरस के आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला कि यह पशु इन्फ्लूएंजा वायरस से उत्पन्न हुआ और यह 1977 से प्रचलित सामान्य मौसमी एच1एन1 वायरस से संबंधित नहीं था।

अगस्त 2010 में, डब्ल्यूएचओ ने स्वाइन फ्लू महामारी के अंत की घोषणा की, जिसे सबसे छोटी महामारी में से एक माना जाता है। महामारी के अंत की आधिकारिका घोषणा के बाद से नोवल वायरस कई उत्परिवर्तनों (म्युटेशंस) से गुजरा।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, "चार प्रकार के मौसमी इन्फ्लूएंजा वायरस हैं, टाइप ए, बी, सी और डी। इन्फ्लुएंजा ए और बी वायरस प्रसारित होते हैं और मौसमी महामारी का कारण बनते हैं।" 2009 की महामारी का कारण बनने वाला नोवल वायरस एक प्रकार का है और इसे ए(एच1एन1) पीडीएम09 नाम दिया गया। एच1एन1 (2009) वायरस एक मौसमी वायरस के रूप में फैलता रहता है।

यूएस नोडल एजेंसी सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, "इन्फ्लुएंजा ए वायरस एकमात्र इन्फ्लूएंजा वायरस है जो फ्लू महामारी का कारण बनता है। (यानी, फ्लू रोग की वैश्विक महामारी)।

इन्फ्लुएंजा ए (एच3एन2) वायरस 1968 की महामारी का भी कारण बना, जिसने दस लाख से अधिक लोगों की जान ली। ब्रिटानिका के अनुसार, "1968 फ्लू महामारी, जिसे 1968 का हांगकांग फ्लू महामारी या 1968 का हांगकांग फ्लू भी कहा जाता है, का वैश्विक प्रकोप जुलाई 1968 में चीन में उत्पन्न हुआ और 1969-70 तक चला। जो 20वीं शताब्दी में होने वाली तीसरी इन्फ्लुएंजा महामारी थी। इसने 1957 की फ्लू महामारी और 1918-19 की इन्फ्लूएंजा महामारी का अनुसरण किया। "

लेकिन अब फिर से यह प्रकोप इतना बड़ा क्यों है? गुलेरिया ने एएनआई को बताया, "हम अधिक मामले इसलिए देख रहे हैं क्योंकि जैसे ही वायरस थोड़ा सा उत्परिवर्तित (म्यूटेंट) होता है, वायरस के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) थोड़ी कम हो जाती है और इसलिए अतिसंवेदनशील लोगों को आसानी से संक्रमण हो जाता है।"

2013 में भारत में स्वाइन फ्लू का व्यापक प्रकोप देखा गया। जिसे डाउन टू अर्थ ने रिपोर्ट किया, “फरवरी के अंत तक इसने 310 लोगों की जान ले ली थी। यह भयावह है क्योंकि 2012 में 405 लोगों की फ्लू से मृत्यु हो गई थी। हालांकि सरकार मामलों की संख्या को कम करने के प्रयास करती रही। दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि घबराने की जरूरत नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि स्वाइन फ्लू वायरस स्ट्रेन का व्यवहार मौसमी इन्फ्लूएंजा जैसा हो गया है।

इन्फ्लुएंजा ने 6,000 से अधिक वर्षों से मनुष्यों को प्रभावित किया है, जिससे नियमित अंतराल पर महामारी होती है। द कन्वर्सेशन पर एक लेख के अनुसार, 1918 के स्पेनिश फ्लू के दौरान इसे एक बैक्टीरिया माना जाता था, इसके बाद एक अमेरिकी चिकित्सक रिचर्ड शोप ने 1931 में सबसे पहले वायरस की पहचान की थी।

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