कोविड काल में महिला समूहों ने खाद्य सुरक्षा में निभाई अहम भूमिका

विश्व खाद्य कार्यक्रम सांख्यिकी के अनुसार, गंभीर खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त या इसके खतरे वाले लोगों की संख्या, जो कि कोविड-19 महामारी से पहले 53 देशों में 13.5 करोड़ थी, 2023 में 79 देशों में 34.5 करोड़ हो गई है।

By Dayanidhi

On: Friday 15 December 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, मैके सैवेज

साल 2020 के मार्च के महीने में, कोरोना महामारी के चलते, भारत सरकार ने केवल चार घंटे के नोटिस पर सख्त लॉकडाउन की घोषणा की। जिसमें अनौपचारिक और पारंपरिक भोजन की दुकानों पर प्रतिबंध भी शामिल था, जिस पर 80 से 90 प्रतिशत भारतीय अपने भोजन के मुख्य स्रोत के रूप में भरोसा करते हैं।

वर्ल्ड डेवलपमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन जिसका शीर्षक "भारत में कोविड ​​-19 लॉकडाउन के दौरान स्वयं सहायता समूहों द्वारा अपनाए गए ताजे फल और सब्जी संबंधी कार्यक्रम की जांच के लिए छह-आयामी खाद्य सुरक्षा ढांचे को लागू करना" है।

बायोवर्सिटी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सीआईएटी) ने भारत के ओडिशा राज्य में सरकार से सहायता प्राप्त महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम के प्रभावों को देखा और इसमें खाद्य सुरक्षा के छह आयामों को शामिल किया गया। इनमें भोजन की उपलब्धता, पहुंच, उपयोग, स्थिरता, एजेंसी की गतिविधि और स्थिरता को कैसे प्रभावित किया ये सारी चीजों को शामिल किया गया था।

अलायंस ऑफ बायोवर्सिटी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सीआईएटी) के कृषि अर्थशास्त्री और प्रमुख अध्ययनकर्ता जोनाथन मॉकशेल बताते हैं कि समूह ने किसानों से ताजे फल और सब्जियां खरीदी और ट्रक, गाड़ी या मोटरसाइकिल के माध्यम से स्थानीय और शहरी बाजारों में लोगों को बेचा।

अध्ययन के मुताबिक, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ने लॉकडाउन के दौरान ताजे फल और सब्जी मूल्य श्रृंखला में उतार-चढ़ाव को रोकने में अहम भूमिका निभाई।

अध्ययन के हवाले से, मॉकशेल कहते हैं, एसएचजी प्रणाली खाद्य प्रणालियों में लचीलापन बनाने के लिए मौजूदा संस्थानों और जमीनी स्तर के नेटवर्क का लाभ उठाकर वर्तमान विकास मॉडल पर पुनर्विचार के लिए एक तीसरी शक्ति प्रदान करती है।

एलायंस ऑफ बायोवर्सिटी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सीआईएटी) की कृषि अर्थशास्त्री और सह-अध्ययनकर्ता थिया रिटर बताती हैं कि ये महिलाएं अपने घर के मौजूदा खर्चों के अलावा स्वयं सहायता समूहों की जिम्मेदारियां "वेज ऑन व्हील्स" नामक कार्यक्रम चला रही थीं। 

रिटर बताती हैं समूह की महिलाएं हर रात मिलते थे, इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं जो स्वयं सब्जी और फलों का उत्पादन कर रही थी, इनका समूह के बाहर दूसरों के साथ अच्छे संबंध थे, इससे भारी मदद मिली क्योंकि वे आपूर्ति श्रृंखला से अच्छी तरह से परिचित थीं।

रिटर ने कहा कि कुछ समूहों को लेखांकन जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण के लिए सरकारी धन प्राप्त हुआ, जिसका उपयोग कुछ सदस्यों ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए किया।

'छह आयामी' खाद्य सुरक्षा

विश्व खाद्य कार्यक्रम सांख्यिकी के अनुसार, गंभीर खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त या इसके खतरे वाले लोगों की संख्या, जो कि कोविड-19 महामारी से पहले 53 देशों में 13.5 करोड़ थी, 2023 में 79 देशों में 34.5 करोड़ हो गई है।

साल 2009 में, खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने खाद्य सुरक्षा को लेकर एक परिभाषा दी, जिसमें कहा गया जब सभी लोगों को, हर समय, पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक पहुंच हासिल हो, जो एक सक्रिय व्यक्ति के लिए उनके स्वस्थ जीवन के लिए आहार संबंधी आवश्यकताओं और खाद्य प्राथमिकताओं को पूरा करता हो।

हालांकि, एलायंस ऑफ बायोवर्सिटी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सीआईएटी) के शोधकर्ताओं ने खाद्य सुरक्षा के दो और महत्वपूर्ण आयामों पर जोर दिया, जो कार्यक्रम में सामने आए, उन्होंने एजेंसी और स्थिरता पर गौर किया।

रिटर कहती हैं, मूल्य श्रृंखला के संदर्भ में, एजेंसी का मतलब, अपने फल और सब्जियां बेचने में सक्षम होना और नीतियों और कानूनों में अपनी बात रखना है। शोधकर्ताओं ने लचीलापन- यानी, सौदा करने की क्षमता पर भी गौर किया। 

रिटर कहती हैं, जब हमने आंकड़े एकत्रित किए तो हमारे दिमाग में खाद्य सुरक्षा का यह छह-आयामी दृष्टिकोण नहीं था, लेकिन अध्ययन में यह सामने आया।

भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव

मॉकशेल और रिटर बताते हैं कि रोटेटिंग क्रेडिट और सेविंग एसोसिएशन  समूह के एक अरब से अधिक सदस्य हैं, खासकर अफ्रीका और दक्षिण एशिया में।

यह देखते हुए कि ये समूह कितने बड़े हैं, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस मॉडल का दुनिया भर में प्रयोग किया गया है। अधूरे आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्निर्माण के लिए पहले से मौजूद संगठनों का उपयोग करने से अन्य सरकारों को संकट के समय मदद मिल सकती है, जैसे कि चरम जलवायु घटनाएं और संघर्ष के समय जब ग्रामीण और शहरी दोनों आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो जाती हैं।

रिटर कहती हैं, यह समाधान विशेष रूप से कोविड-19 या केवल भारत के लिए नहीं है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ, आपदाएं और संघर्ष आम होते जा रहे हैं। अगर भविष्य में कोई प्राकृतिक आपदा होती है, तो सरकार इन समूहों का लाभ उठा सकती है।

मॉकशेल ने बताया कि हालांकि, शोधकर्ताओं ने इसे खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा, पहले से मौजूद समूहों का उपयोग उन स्थितियों में अन्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुचारू करने के लिए किया जा सकता है जहां निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति सीमित है। उदाहरण के लिए, उनका उपयोग चिकित्सा संबंधी चीजों की आपूर्ति को वितरित करने के लिए किया जा सकता है।

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