उत्तर प्रदेश में चल रहे अवैध ईंट भट्ठों की जांच के लिए एनजीटी ने दिए संयुक्त समिति के गठन के निर्देश

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 22 November 2022
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 21 नवंबर, 2022 को उत्तर प्रदेश में चल रहे अवैध ईंट भट्ठों के मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है।

इस समिति में उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (पर्यावरण), केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भूगर्भ जल विभाग एवं सात जिलों  कासगंज, हाथरस, एटा, फिरोजाबाद, आगरा, इटावा और मैनपुरी के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस अधीक्षक के साथ आगरा मंडल के आयुक्त शामिल होंगें। 

गौरतलब है कि कोर्ट सुनतेरा सिंह यादव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इस मामले में आवेदक ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा उत्तर प्रदेश में ईंट भट्ठों की अनुपालन की स्थिति का उल्लेख किया है।

इस मामले में यूपीपीसीबी द्वारा 26 जुलाई, 2021 को 7 जिलों के डिफॉल्टर ईंट भट्ठों की सूची जारी की गई थी। इस लिस्ट में कासगंज, हाथरस, एटा, फिरोजाबाद, आगरा, इटावा और मैनपुरी जिलों के डिफॉल्टर ईंट भट्ठे शामिल थे।

मामले पर न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और अरुण कुमार त्यागी की पीठ ने कहा है कि ईंट भट्ठों की स्थिति पर जारी सूची से पता चलता है कि सात जिलों में चल रहे 1,254 ईंट भट्ठों में से एसपीसीबी ने 647 इकाइयों को संचालन की सहमति (सीटीओ) न होने के कारण बंद करने का आदेश जारी किया है, लेकिन उत्सर्जन मानकों के अनुपालन की स्थिति के बारे में इसमें जानकारी नहीं दी गई है।

सुंदरवन में डीजल और फ्लाई ऐश के रिसाव के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान पर कोर्ट ने सीपीसीबी से मांगी रिपोर्ट

एनजीटी ने 18 नवंबर 2022 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरणीय मुआवजे के निर्धारण के लिए नियमों और दिशानिर्देशों के साथ अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला सुंदरवन के खारे पानी में डीजल और फ्लाई ऐश के रिसाव के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान से जुड़ा है। इस मामले में अगली सुनवाई 17 जनवरी, 2023 को होगी।

गौरतलब है कि इस मामले में दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम ने एनजीटी, पूर्वी खंडपीठ, कोलकाता के समक्ष आवेदन दायर किया था। यह संगठन अपनी जीविका के लिए हुगली नदी और सुंदरबन पर निर्भर छोटे पैमाने पर मछली पकड़ने वाले समुदायों के कल्याण के लिए काम करने वाली एक संस्था है।

इस बारे में आवेदक ने कहा है कि भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट पर फ्लाई-ऐश ले जाने वाली नावों के बार-बार पलटने से, पश्चिम बंगाल में अत्यधिक पर्यावरण-संवेदनशील और नाजुक सुंदरबन से होकर बहने वाली नदी के पारिस्थितिकी को प्रभावित किया है।

सुरथकल तट के पास समुद्र में सीवेज और औद्योगिक कचरे के प्रवाह को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई करे एसपीसीबी: एनजीटी

एनजीटी ने 18 नवंबर 2022 को कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वो सुरथकल समुद्र तट के पास समुद्र में सीवेज और औद्योगिक कचरे के प्रवाह को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। मामला कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले का है। साथ ही कोर्ट ने एसपीसीबी को उल्लंघनकर्ताओं - संबंधित उद्योगों और मैंगलोर नगर निगम की जवाबदेही तय करने के लिए अगले दो महीने का समय दिया है।

गौरतलब है कि मीडिया में  सुरथकल तट के पास गंदे होते समुद्री जल और पर्यावरण को होते नुकसान के बारे में छपी ख़बरों के आधार पर इस मामले में कार्रवाई शुरू की गई थी। मीडिया रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई थी कि गंदे होते समुद्री जल के कारण समुद्री बास मछलियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

तनीरभवी और बंगराकुलुर क्षेत्रों में फाल्गुनी नदी में होती केज फार्मिंग का एक हिस्सा मृत पाया गया था, जिससे मछुआरों और पर्यावरणविदों में चिंता बढ़ गई है।  पता चला है कि समुद्र के बीच में जहाजों द्वारा फेंके गए तेल से टारबॉल बन रहे थे।

इस मामले में 3 अक्टूबर, 2022 को संयुक्त समिति द्वारा दाखिल की गई रिपोर्ट में सामने आया है कि मंगलुरु नगर निगम द्वारा समुद्र में डाले गए गंदे सीवेज के साथ-साथ औद्योगिक प्रदूषण के कारण मंगलुरु के तट के पास पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है।

वहीं समिति की राय थी कि 14 मई, 2022 को सुरथकल के पास समुद्र तट पर समुद्र का पानी काई के फैलने के कारण गंदा हुआ है। इस बारे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) की रिपोर्ट ने एल्गल ब्लूम को प्रेरित करने वाले लोहे की मात्रा पर चिंता जताई थी। देखा जाए तो यह मैंगलोर तट पर मौजूद एक आयरन पेलेटाइजेशन यूनिट से मेल खाता है।

समिति ने सिफारिश की है कि मैंगलोर नगर निगम को भूमिगत जल निकासी और टर्मिनल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के लापता लिंक को जोड़ने का काम करना है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि समुद्र में अनुपचारित सीवेज का कोई संभावित प्रवेश नहीं है। हालांकि वहां समुद्र के पानी में तेल और ग्रीस की उपस्थिति का पता नहीं चला है। 

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