स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है कृषि में उपयोग हो रहा 1.25 करोड़ टन प्लास्टिक

कृषि से जुड़ी सप्लाई चेन में हर साल करीब एक करोड़ 25 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है जोकि स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 09 December 2021
 

कृषि से जुड़ी सप्लाई चेन में हर साल करीब एक करोड़ 25 लाख टन प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा 3 करोड़ 73 लाख टन प्लास्टिक का उपयोग हर वर्ष खाद्य उत्पादों के भण्डारण और पैकेजिंग के लिए किया जा रहा है। यह जानकारी खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में सामने आई है, जिसके अनुसार यह प्लास्टिक खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक जहां फसल उत्पादन और पशुधन प्रति वर्ष एक करोड़ 2 लाख टन प्लास्टिक उपयोग कर रहा है। वहीं मछली पालन और एक्वाकल्चर में करीब 21 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल हर साल किया जाता है जबकि जंगलों और वन सम्बन्धित गतिविधियों में हर साल 2 लाख टन प्लास्टिक का प्रयोग किया जा रहा है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में जिस तरह से समुद्र तटों और महासागरों में प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ रही है उसने पिछले कुछ वर्षों में सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, लेकिन एफएओ के अनुसार जिस भूमि का उपयोग हम अपने भोजन और फसलों को उगाने के लिए कर रहे हैं वो उससे कहीं ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक से दूषित हो रही है। 

इस बारे में जानकारी देते हुए एफएओ की उप महानिदेशक मारिया हेलेना सेमेडो ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि बड़ी मात्रा में कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जा रहा प्लास्टिक मिट्टी को दूषित कर रहा है। यही नहीं उनके अनुसार महासागरों की तुलना में कृषि क्षेत्र में उपयोग किए जा रहे प्लास्टिक के महीन कण जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक के रूप में भी जाना जाता है वो मिट्टी में मिल चुके हैं। रिपोर्ट की मानें तो कृषि क्षेत्र में प्लास्टिक का सबसे ज्यादा उपयोग एशिया में होता है जोकि विश्व स्तर पर कृषि के क्षेत्र में उपयोग किए जा रहे कुल प्लास्टिक का लगभग आधा है। 

माइक्रोप्लास्टिक से सुरक्षित नहीं कोई भी जगह

1950 के दशक में प्लास्टिक का उपयोग शुरु होने के बाद से अपनी अनगिनत विशेषताओं के चलते इसका उपयोग साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। 2015 तक के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में करीब 630 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका था, जिनमें से 80 फीसदी का निपटान सही तरीके से नहीं हुआ था। मतलब कि इस प्लास्टिक के कुछ न कुछ अंश आज भी हमारे वातावरण में मौजूद हैं जो जल, मृदा, वायु को दूषित कर रहे हैं। अपने गुणों के चलते कृषि क्षेत्र में भी प्लास्टिक का उपयोग बढ़ रहा है।  

इसके बने औजार और उपकरण जहां कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में मददगार रहे हैं। वहीं मौसम की मार, कीटों और खरपतवार से बचने के लिए किसान प्लास्टिक शीटस का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे उनकी फसल सुरक्षित रहे और पैदावार में वृद्धि हो सके। इतना ही नहीं फसलों को जंगली जानवरों और मवेशियों से बचाने के लिए खेत के चारों और जाल के रूप में भी प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। देखा जाए तो कृषि के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल मददगार रहा है पर जब इनसे पैदा होने वाले कचरे का ठीक तरह से निपटान नहीं किया जाता तो वो एक बड़ी समस्या बन जाता है, जो इंसानी स्वास्थ्य से लेकर वातावरण तक सभी के लिए खतरा पैदा कर रहा है। 

अनुमान है कि हर वर्ष करोड़ों टन प्लास्टिक बिना निपटान के ऐसे ही समुद्रों और धरती पर फेंक दिया जाता है जो छोटे टुकड़ों में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में टूटकर वापस हवाओं के जरिए समुद्रों और खेतों तक पहुंच रहा है| यदि 2018 के आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल करीब 35.9 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है।  यह माइक्रोप्लास्टिक हमारी सांस, पीने के पानी और भोजन के जरिए वापस हमारे शरीर में पहुंच रहा है और उसे नुकसान पहुंचा रहा है।

हाल ही में जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक शोध में पहली बार अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा (गर्भनाल) में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है, जोकि एक बड़ी चिंता का विषय है। इसी तरह एक अन्य शोध में सामने आया है कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर की कोशिकीय कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार एक बार जब माइक्रोप्लास्टिक सांस या किसी अन्य तरीके से शरीर में पहुंच जाती है, तो वो कुछ दिनों में ही फेफड़ों की कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म और विकास पर असर डाल सकती हैं और उसे धीमा कर सकती हैं। साथ ही उसके आकार में भी बदलाव कर सकती हैं।

क्या है समाधान

यूएन एजेंसी के अनुसार अब तक प्लास्टिक को लेकर किए गए ज्यादातर अध्ययन समुद्रों पर केंद्रित रहे हैं। पर चूंकि दुनिया भर में कृषि सम्बंधित 93 फीसदी गतिविधियां जमीन पर होती हैं, इसलिये, इस क्षेत्र में और अधिक जांच-पड़ताल करने की जरुरत है। एफएओ का यह भी मानना है कि बेहतर विकल्पों के आभाव में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में रिपोर्ट में इसके बढ़ते खतरे से निपटने के लिए कई समाधान प्रस्तुत किए गए हैं जिनमें इसके उपयोग में कमी करने से लेकर, इससे बने उत्पादों को पुनः उपयोग करना और खराब होने के बाद रीसायकल करना जैसे उपाय शामिल हैं।

साथ ही रिपोर्ट में खाद्य श्रंखला में प्लास्टिक के उपयोग को लेकर स्वैच्छिक तौर पर एक व्यापक आचार संहिता बनाने की भी सिफारिश की गई है। इतना ही नहीं प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों के स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को समझने के लिए कहीं ज्यादा शोध करने की बात कही गई है।   

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