चिंताजनक: मानव के अंडकोष में पाया गया हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक: अध्ययन

अध्ययन में कहा गया है कि मनुष्य के अंडकोष के ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक की औसत मात्रा 329.44 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम पाई गई

By Dayanidhi

On: Wednesday 22 May 2024
 
एक नए अध्ययन में मानव अंडकोष में 12 प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक

न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में मानव अंडकोष में 12 प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। अध्ययन में पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर माइक्रोप्लास्टिक के कारण पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। विश्लेषण किए गए अंडकोष 2016 में पोस्टमॉर्टम से हासिल किए गए थे, इनमें वे लोग शामिल थे जिनकी मृत्यु 16 से 88 वर्ष की उम्र के बीच हुई थी।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि उन्हें कुत्तों के अंडकोष में भी माइक्रोप्लास्टिक मिला है। कुत्तों के अंडकोष के ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक की औसत मात्रा 122.63 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम ऊतक थी (एक माइक्रोग्राम एक ग्राम का दस लाखवां हिस्सा होता है)। मनुष्य के ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक की औसत मात्रा 329.44 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम थी। कुत्तों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक और प्लेसेंटल ऊतक में पाए जाने वाले कणों की औसत से काफी ज्यादा थी।

माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से कम आकार के छोटे प्लास्टिक कण होते हैं। वे बड़े प्लास्टिक के मलबे के टूटने से उत्पन्न होते हैं और सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स जैसे छोटे कणों के रूप में भी निर्मित होते हैं। ये प्रदूषक पर्यावरण में भारी मात्रा में पाए जाते हैं और ये महासागरों, नदियों और मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं।

टॉक्सिकोलॉजिकल साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों द्वारा निगला जा सकता है और इसके माध्यम से या खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकता है। जो लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। उनका छोटा आकार जल उपचार प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें फिल्टर करना मुश्किल बना देता है, जो भारी मात्रा में फैल जाते हैं। माइक्रोप्लास्टिक के जमा होने और उनके लंबे समय तक पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण चिंताएं बढ़ जाती हैं।

माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में कैसे प्रवेश करता है?

माइक्रोप्लास्टिक विभिन्न मार्गों से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, मुख्य रूप से निगलने और सांस के माध्यम से। दूषित भोजन और पानी इसके सबसे बड़े स्रोत हैं। प्रदूषित वातावरण के कारण समुद्री भोजन, नमक, बोतलबंद पानी और यहां तक ​​कि कुछ फलों और सब्जियों में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाते हैं। मछली और शंख जैसे समुद्री जीव माइक्रोप्लास्टिक को निगल सकते हैं, जो फिर खाद्य श्रृंखला में मनुष्यों तक पहुंच जाता है।

सांस लेना एक अन्य मार्ग है, जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होते हैं। ये कण सिंथेटिक कपड़ों, टायरों और अन्य रोजमर्रा के उत्पादों से उत्पन्न हो सकते हैं, जो घर्षण और टूट-फूट के माध्यम से हवा में फैल जाते हैं। घर के अंदर के वातावरण, विशेष रूप से खराब वेंटिलेशन और प्लास्टिक उत्पादों के भारी उपयोग के साथ, वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक का स्तर बढ़ सकता है।

एक बार निगलने या सांस लेने के बाद, माइक्रोप्लास्टिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट और फेफड़ों में जमा हो सकता है। जबकि मानव स्वास्थ्य पर पूर्ण प्रभाव का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है, इससे संबंधित चिंताओं में प्लास्टिक और संबंधित रसायनों से होने वाले विषाक्त प्रभाव शामिल हैं।

अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि पॉलीथीन, जो आमतौर पर प्लास्टिक की थैलियों और बोतलों में उपयोग किया जाता है, सबसे आम माइक्रोप्लास्टिक पाया गया, इसके बाद पीवीसी था।

माइक्रोप्लास्टिक किस तरह मनुष्य के शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है?

माइक्रोप्लास्टिक, छोटे प्लास्टिक कण, निगले जाने और सांस के माध्यम से मानव शरीर में घुसपैठ कर सकते हैं। ये कण अंगों में जमा हो जाते हैं, जिससे संभावित रूप से सूजन और कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक्स अंतःस्रावी कार्यों को बाधित कर सकता है, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। उनमें बिस्फेनॉल ए (बीपीए) और फ़ेथलेट्स जैसे हानिकारक रसायन भी हो सकते हैं, जो कैंसर, प्रजनन संबंधी समस्याओं और विकास संबंधी समस्याओं से जुड़े होते हैं।

इसके अलावा माइक्रोप्लास्टिक आंत के माइक्रोबायोटा में गड़बड़ी कर सकता है, पाचन और प्रतिरक्षा को खराब कर सकता है। लंबे समय तक संपर्क में रहने से हृदय संबंधी बीमारियों और तंत्रिका संबंधी विकारों सहित पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं, जो प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से अपने निष्कर्षों के आधार पर कहा कि वे नहीं चाहते हैं कि कोई घबराए। उन्होंने कहा, हम लोगों को डराना नहीं चाहते। हम वैज्ञानिक रूप से आकड़ों के माध्यम से सच्चाई सामने रखना चाहते हैं और लोगों को जागरूक करना चाहते हैं कि वे बहुत सारे माइक्रोप्लास्टिक के सम्पर्क में हैं। हम माइक्रोप्लास्टिक से बेहतर तरीके से बचने के लिए अपनी जीवन शैली और व्यवहार को बदल सकते हैं।

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