बिहार में गंगा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एनएमसीजी ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Dayanidhi

On: Wednesday 12 August 2020
 

जुलाई 2020 तक बिहार में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) / सीवरेज के बुनियादी ढांचे से संबंधित, विभिन्न परियोजनाओं की स्थिति पर 10 अगस्त, 2020 को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के दानापुर, फुलवारी, सहरिफ, हाजीपुर, फतुहा और मुंगेर में एसटीपी / सीवरेज परियोजनाओं के लिए निविदाओं (टेंडर) को अंतिम रूप देने में विलंब हो रहा है। एनएमसीजी / जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राज्य को सभी आवश्यक सहायता, निर्देश और बार-बार याद दिलाए जाने के बावजूद भी इसमें देरी हो रही है।

परियोजनाएं बिहार में गंगा नदी की सहायक नदियों में अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट और मल छोड़े जाने और इसे रोकने के संबंध में हैं। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए चुनी गई प्रमुख सहायक नदियां इस प्रकार से है : पुनपुन, रामरेखा, सिकरहना, सिरसिया, परमार, सोन, बुरही गंडक, गंडक, बागमती, कोसी, महानंदा और किउल नदी इसमें शामिल है।

जबकि 7 एमएलडी क्षमता वाले I & D और एसटीपी वाली परियोजना के लिए 35.49 करोड़ रुपये अनुमोदित किए गए थे। जिसमें पुनपुन नदी शामिल है। बाकी सहायक नदियों की परियोजना के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) अभी शुरुआती दौर में है। राज्य को इन परियोजनाओं के जून 2021 तक पूरा होने की उम्मीद थी।

परंतु अब ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है, क्योंकि राज्य को मंजूरी और कार्यान्वयन के लिए प्रक्रिया शुरू करने से पहले परियोजनाओं के लिए डीपीआर तैयार करना होगा। गंगा नदी में ई-प्रवाह के रखरखाव के संबंध में, राज्य द्वारा कहा गया कि राज्य में गंगा नदी के फैलाव पर कोई नियंत्रण संरचना मौजूद नहीं है, इसलिए इस पर राज्य द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।

नदी के बाढ़ क्षेत्र में जैव विविधता पार्कों के विकास के संबंध में, बिहार उपयुक्त भूमि के चयन और हस्तांतरण के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, राजस्व और भूमि सुधार और जिला प्रशासन विभागों के बीच तालमेल कर इसकी व्यवस्था में लगा है।


रोरो गांव में अभ्रक की पुरानी खदानों से उड़ रही धूल के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण को हो रहा है नुकसान

झारखंड सरकार द्वारा एनजीटी को रोरो अभ्रक खदान, चाईबासा जो कि पश्चिमी सिंहभूम जिले के अंतर्गत आता है, इस क्षेत्र की बहाली के लिए उठाए गए कदमों की सूची देने से पहले एक रिपोर्ट सौंपी गई। 

इस तरह की खदानों के लिए लीज हैदराबाद एस्बेस्टस सीमेंट प्रोडक्ट लिमिटेड (एचएसीपीएल) के पक्ष में दी गई थी। वर्ष 1983 में खदानों ने काम करना बंद कर दिया था। हालांकि, इस क्षेत्र में पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए, खदानों के पुनर्स्थापन के लिए सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे।

स्वास्थ्य को होने वाले खतरों, तालाबों और नदियों के प्रदूषण के परिणामस्वरूप एस्बेस्टस धूल आधारित प्रदूषण का उत्सर्जन लगातार जारी रहा।

ट्रिब्यूनल को झारखंड राज्य द्वारा सूचित किया गया था कि रोरो गांव की छोड़ी गई अभ्रक की खदानों के पुनर्निर्माण और पुनर्वास से संबंधित कई योजनाएं लागू की गई थीं।

योजनाओं में 'बड़ा लागिया पंचायत के अंदर रोरो गांव के मुंडसई' में एक जल मीनार का निर्माण शामिल है। 565 स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य जांच (1,50,000 रुपये की लागत से प्रारंभिक जांच) की गई थी। 565 स्थानीय निवासियों में से 164 में एस्बेस्टोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए थे। 164 स्थानीय निवासियों में से 126 का पीपीटी और एक्स-रे परीक्षण किया गया था।

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