नदियों के प्रवाह पर असर डाल रहा है जलवायु परिवर्तन

शोध से पता चला है कि उत्तरी यूरोप में नदियों के प्रवाह में वृद्धि हुई है जबकि दक्षिण यूरोप, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में प्रवाह में कमी दर्ज की गई है

By Lalit Maurya

On: Friday 12 March 2021
 

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते नदियों के प्रवाह में बदलाव आ रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो कुछ क्षेत्रों में नदियों के प्रवाह पहले के मुकाबले बढ़ गया है, जबकि कुछ क्षेत्रों में कम हो गया है। इसका असर बाढ़ और सूखे के रूप में सामने आ रहा है। जिन क्षेत्रों में प्रवाह बढ़ा है वहां बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हो गई है जबकि इसके विपरीत जहां प्रवाह में कमी आई है वहां सूखे में इजाफा हुआ है।

शोध से पता चला है कि उत्तरी यूरोप में नदियों के प्रवाह में वृद्धि हुई है जबकि दक्षिण यूरोप, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में प्रवाह में कमी दर्ज की गई है। ईटीएच ज्यूरिख के नेतृत्व में किया गया यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है।

जलवायु परिवर्तन हमारी पृथ्वी के जल संतुलन को प्रभावित कर रहा है। यह प्रभाव कितना होगा वह स्थान और समय के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। किसी नदी का प्रवाह कितना है यह बताता है कि मनुष्य के लिए कितना जल उपलब्ध है। इसके साथ ही उपलब्ध पानी की मात्रा अन्य कारकों जैसे भूमि उपयोग में परिवर्तन और जल चक्र के साथ की गई छेड़छाड़ पर भी निर्भर करती है। उदाहरण के लिए यदि नदियों के जल को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, या फिर जलाशयों में इकठ्ठा किया जाता है या जंगलों को काटा जाता है और उनके स्थान पर कृषि की जाती है तो यह सभी नदी के प्रवाह पर असर डाल सकते हैं।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

हालांकि हाल के कुछ वर्षों में किस वजह से नदियों के प्रवाह में अंतर आ रहा था उसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता था। इसी को देखते हुए शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में करीब 7,250 स्टेशनों पर इन सभी कारकों और नदी जल के प्रवाह में आए बदलाव से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया था। जिससे पता चला है कि 1971 से 2010 के बीच नदियों का प्रवाह में व्यवस्थित रूप से बदलाव आया था।

अब शोधकर्ताओं को यह जानना था कि यह किस वजह से हो रहा है और क्या इसके लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने क्लाइमेट मॉडल्स की मदद ली थी। उन्होंने 1971 से 2010 के बीच उपलब्ध जलवायु सम्बन्धी आंकड़ों को ग्लोबल हाइड्रोलॉजिकल मॉडल की मदद से उसके कई कंप्यूटर सिमुलेशन तैयार किए थे। इन सिमुलेशन से प्राप्त निष्कर्षों को बारीकी के साथ नदी प्रवाह सम्बन्धी आंकड़ों से मिलान किया गया। इस सिमुलेशन से प्राप्त निष्कर्ष प्रवाह में आए बदलाव से मेल खाते थे।  

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने अन्य कारकों जैसे भूमि उपयोग और जल प्रबंधन में परिवर्तन का भी अध्ययन किया था, जिससे इनके नदी प्रवाह पर पड़ने वाले असर को भी समझा जा सके, लेकिन इनके चलते निष्कर्ष में कोई अंतर नहीं आया था। ईटीएच ज्यूरिख के जलवायु वैज्ञानिक और इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता लुकास गुडमुंडसन ने बताया कि स्पष्ट रूप से जल और भूमि प्रबंधन में आया बदलाव, नदियों के प्रवाह में आए वैश्विक परिवर्तन के लिए जिम्मेवार नहीं था। हालांकि जल प्रबंधन और भूमि उपयोग में आया बदलाव स्थानीय स्तर पर प्रवाह में बदलाव कर सकता है, पर वैश्विक स्तर पर प्रवाह में आए बदलाव में इसकी कोई भूमिका नहीं थी। इसका मतलब है कि वैश्विक रूप से नदियों के प्रवाह में आया अंतर जलवायु में आ रहे बदलावों का ही नतीजा था।

साथ ही शोधकर्ताओं ने इसमें ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका को समझने के लिए भी सिमुलेशन तैयार किए थे। इसमें उन्होंने पहले सेट के सिमुलेशन में आज के परिप्रेक्ष्य में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और ज्वालामुखी आदि से उत्सर्जित होने वाली गैसों के नदी प्रवाह पर पड़ने वाले असर को देखा था, जबकि दूसरा सेट औद्योगिक काल से पहले जब उत्सर्जन नहीं हो रहा था तब के समय को दर्शाता था। वैज्ञानिकों को पता चला कि जो पहला सेट वर्तमान में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को दर्शाता था उसी में नदियों के प्रवाह में वैश्विक रूप सेअंतर देखा गया था। 

शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन कई तरह से नदियों के प्रवाह पर असर डाल रहा है इसमें वैश्विक रूप से वर्षा के पैटर्न में आने वाला बदलाव शामिल है। साथ ही मिटटी के सूखने के चलते भी इसपर असर पड़ रहा है। जो नदियों में पहुंचने वाली नमी की मात्रा को प्रभावित कर सकता है।

इस तरह से नदियों के प्रवाह में आने वाला यह अंतर बाढ़ और सूखे के रूप में दोहरी मार कर रहा है। ऐसे में यह शोध ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तत्काल कमी करने पर जोर देता है, जिससे भविष्य में आने वाली चरम आपदाओं के खतरे को कम किया जा सके।

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