काटली नदी अवैध खनन और अतिक्रमण मामले में एनजीटी ने समिति से तलब की रिपोर्ट

आरोप है कि नदी तल में हो रहे अवैध खनन के चलते काटली नदी बुरी तरह प्रभावित है। इसकी वजह से नदी तल में गहरे गड्ढे बन गए हैं, जिससे नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो रहा है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 19 March 2024
 
राजस्थान के सीकर, झुंझुनू, नीम का थाना और चुरू से होकर बहने वाली काटली नदी; फोटो: विकिपीडिया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पांच सदस्यीय समिति को काटली नदी के किनारे अवैध खनन और गैरकानूनी अतिक्रमण के संबंध में की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह मामला राजस्थान का है, जहां आवेदन में काटली नदी के किनारे हुए अवैध खनन और अतिक्रमण का मुद्दा उठाया था। काटली नदी का उद्गम स्थल राजस्थान के सीकर में गणेश्वर की पहाड़ियां हैं। यह नदी सीकर, झुंझुनू, नीम का थाना और चुरू से होकर बहती है।

गौरतलब है कि नदी तल में हो रहे अवैध खनन के चलते काटली बुरी तरह प्रभावित है। अवैध खनन के चलते नदी तल में गहरे गड्ढे बन गए हैं, जिससे नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है। इसके अतिरिक्त, नदी के किनारे अनधिकृत निर्माण इसके प्राकृतिक प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है।

इसके अलावा, कई स्थानों पर नदी के आसपास के किसानों ने खेती के लिए नदी तल पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर लिया है, जिससे बारिश के पानी का प्रवाह बाधित हो गया है। आवेदन में यह भी कहा गया है, काटली नदी में इस गिरावट से पानी की कमी और भूजल में गिरावट की समस्या भी पैदा हो गई है।

इसकी वजह से स्थानीय लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। भूजल में भी गिरावट आ रही है, नतीजन लोगों को पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए ऐसे तरीकों की मदद लेनी पड़ रही है जो पर्यावरण के लिहाज से सही नहीं है।

डंपिंग स्थल पर कचरे के कुप्रबंधन की जांच के लिए संयुक्त समिति गठित, दार्जिलिंग के अमोर ज्योति ग्राम का है मामला

दार्जिलिंग के अमोर ज्योति ग्राम में डंपिंग स्थल पर कचरे के कुप्रबंधन की शिकायत मिलने के बाद, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिम बंगाल सरकार, पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दार्जिलिंग नगर पालिका, शहरी विकास और नगरपालिका मामलों के विभाग को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने इन सभी को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को भी कहा है।

इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने आवेदन में लगाए आरोपों की सत्यता की जांच के लिए एक समिति के गठन का भी आदेश दिया है। इस समिति में पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, शहरी विकास और नगरपालिका मामलों के विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार और दार्जिलिंग के जिला मजिस्ट्रेट के साथ कलेक्टर के भी प्रतिनिधि शामिल होंगे। कोर्ट ने इस समिति साइट का दौरा करने के बाद चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

बता दें कि इस मामले में 18 मार्च, 2024 को सुभाष दत्ता द्वारा एनजीटी के समक्ष आवेदन दायर किया गया था। इस आवेदन में उन्होंने दार्जिलिंग शहर में पहाड़ियों के नीचे फेंके जा रहे ठोस कचरे की समस्या पर प्रकाश है। आरोप है कि यह कचरा अंततः भूमिगत जल प्रणाली में मिल रहा है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

इसके अतिरिक्त, आवेदन में 28 जनवरी, 2024 को अमोर ज्योति ग्राम में कचरा डंपिंग स्थल पर आग लगने का भी उल्लेख किया है। इस आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को बुलाना पड़ा था, यह आग कम से कम 15 दिनों तक जलती रही थी।

आवेदक ने आसपास के झरनों और नदी में प्रदूषण को रोकने के लिए पहाड़ी ढलान पर ठोस कचरे की डंपिंग को रोकने के उपाय करने का अनुरोध किया है। यह प्रदूषण स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। उन्होंने दार्जिलिंग डंपिंग साइट पर आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने की भी बात कही है। साथ ही आवेदन में अधिकारियों से ठोस कचरे के निपटान के लिए तुरंत वैकल्पिक स्थान खोजने का भी आग्रह किया है।

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