केरल में 18 डंप साइट्स पर वर्षों से जमा कचरे का कर दिया गया है निपटान: रिपोर्ट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 11 November 2022
 
तस्वीर सिर्फ जमा कचरे को दर्शाने के लिए है, इसका केरल की डंप साइट से कोई सम्बन्ध नहीं है

केरल में कोई "लाइव डंप साइट" नहीं हैं। साथ ही राज्य के विभिन्न हिस्सों में सालों से जमा कचरे की 44 डंपसाइट की पहचान की गई है, जिनमें से 18 का निपटान कर दिया गया है। यह जानकारी केरल द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दायर स्थिति रिपोर्ट में सामने आई है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि शेष 26 डंप साइटों में वर्षों से जमा कचरे के निपटान के लिए जैव-खनन की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में आगे बढ़ रही है, जिनमें से 6 ऐसी साइट जहां बड़ी मात्रा में कचरा जमा है वहां उसका उपचार किया जा रहा है। केरल सरकार द्वारा 10 नवंबर, 2022 को सबमिट इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2.67 लाख टन कुल क्षमता वाली अन्य 20 छोटी डंपसाइट्स पर सुधार कार्य शुरू करने के लिए कार्रवाई की जा रही है।

इस रिपोर्ट में एनजीटी को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की ताजा स्थिति के बारे में सूचित किया गया है। साथ ही बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे के साथ, तरल अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक अपशिष्ट जल प्रबंधन और वर्षों से जमा कचरे के प्रबंधन के बारे में जानकारी साझा की गई है।

रिपोर्ट का कहना है कि राज्य में एक फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट की जरूरत है। लेकिन इसके लिए स्थान की कमी के कारण यह परियोजना अधर में अटकी है। विशेष रूप से स्थानीय आंदोलन और प्रतिरोध इसकी राह में रोड़ा हैं। इस बारे में यह निर्णय लिया गया है कि नए एफएसटीपी की स्थापना के लिए उन खदानों सहित बेकार भूमि का पता लगाया जाएगा, जो सड़क से जुड़ी हुईं हैं और उनके पास कोई इंसानी बस्ती नहीं है।

अपशिष्ट जल के वैज्ञानिक तरीके से उपचार के लिए 4,657 करोड़ रुपये की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगा मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश अपशिष्ट जल के वैज्ञानिक तरीके से उपचार के लिए 4,657 करोड़ रुपये की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगा। यह आश्वासन 10 नवंबर 2022 को मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा एनजीटी को दिया गया है। एनजीटी का कहना है कि राज्य ने वेस्ट वाटर के ट्रीटमेंट के लिए 9,688 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। ऐसे में अदालत ने निर्देश दिया कि मध्य प्रदेश को अगले छह महीने में इस मामले में सार्थक प्रगति करनी होगी।

इसके अलावा, इंदौर में स्पष्ट रूप से सफल अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल को देखते हुए, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को अन्य राज्यों इस बारे में प्रशिक्षित करने और क्षमता निर्माण में सहायता देने का का भी सुझाव दिया है।

मुख्य सचिव ने न्यायालय को जानकारी दी है कि मध्य प्रदेश शहरी विकास कंपनी को वर्ष 2014 में कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया है। यह कंपनी कचरे को संभालने के लिए ठेका देने की प्रक्रिया को पूरा करती है और इस पैटर्न को अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए जाने पर विचार किया जा सकता है।

अदालत ने आशा व्यक्त की है कि, “राज्य नवीन दृष्टिकोण और कड़ी निगरानी की मदद से मामले में और सार्थक कदम उठाएगा। साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि ठोस और तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार के बीच के अंतर को जल्द से जल्द पाटा जा सके। जहां भी व्यवहार्य हो इसकी प्रस्तावित समय-सीमा को छोटा किया जाए और वैकल्पिक/ अंतरिम उपायों को अपनाया जाए।“

पर्यावरण नियमों का पालन नहीं कर रही झारखंड में मोनेट डेनियल कोल वाशरी: रिपोर्ट 

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) द्वारा गठित संयुक्त समिति की रिपोर्ट से पता चला है कि मोनेट डेनियल कोल वाशरी पर्यावरण नियमों का उल्लंघन कर रही है। मामला झारखंड में रांची के खलारी ब्लॉक का है।

गौरतलब है कि संयुक्त समिति ने 26 सितंबर, 2022 को मोनेट डेनियल कोल वाशरी का दौरा किया था। समिति ने पाया कि परियोजना क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कोयले का भंडार है जबकि पर्यावरण मंजूरी में इस बात का उल्लेख किया गया है कि स्टॉकयार्ड में केवल एक दिन का स्टॉक रखा जाएगा।

परियोजना के उत्तर और उत्तर पूर्व दिशा में और वेटब्रिज क्षेत्र के पास परियोजना सीमा क्षेत्र के बाहर (कुछ स्थानों पर परियोजना सीमा क्षेत्र से 5 से 6 मीटर की दूरी पर) भी कोयले का भंडार देखा गया था। इसकी बाउंड्री वॉल टूटी हुई पाई गई और कोयला परियोजना की सीमा से 5 से 6 मीटर दूर पाया गया। इतना ही नहीं सड़क के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया गया है। सड़क पर कोयले की धूल और टूटा हुआ कोयला भी मिला है जो वायु प्रदूषण का एक संभावित स्रोत है।

इसके अलावा तुलाई क्षेत्र के पास ट्रकों का लंबा जाम देखा गया। वहीं खदानों से वाशरी तक कोयला लाने वाले कोयला ट्रकों पर तिरपाल नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया है कि सोनाडुबी नदी का तट कोयला अपशिष्ट रिजेक्ट क्षेत्र से 20 से 21 मीटर के भीतर था और सोनाडुबी नदी के सामने ढलान पर कोयले की बड़ी मात्रा देखी गई थी।

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