बायोमास वेस्ट से पूरी हो सकती हैं ऊर्जा और निर्माण संबंधी जरूरतें

वैज्ञानिकों ने बायोमास वेस्ट और उसको जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पर्यावरण के दृष्टिकोण से लाभदायक मार्ग सुझाया है 

By Lalit Maurya

On: Thursday 07 November 2019
 

Credit: Wikimedia Commons आज दुनिया की आबादी 774 करोड़ हो गई है। अनुमान है कि 2050 तक यह 980 करोड़ हो जाएगी। दुनिया में जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है, उसके चलते बुनियादी वस्तुओं की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। हम अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पूरी तरह से कृषि और उद्योगों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र हमारी बढ़ती मांग को तो पूरा कर रहे हैं पर उनसे निकलने वाला कचरा भी बढ़ता जा रहा है जो एक विकराल समस्या बनता जा रहा है। 

चूंकि दुनिया के बहुत से हिस्सों, विशेषकर विकासशील देशों में इनके उपयुक्त प्रबंधन के अभाव में इनका निपटान और उपयोग सही ढंग से नहीं किया जाता है, जिससे यह समस्या और गंभीर होती जा रही है। आज भी भारत जैसे विकासशील देशों में अधिकांशत: फसलों के बचे हुए भाग, जैसे पराली और अन्य प्रकार के बायोमास वेस्ट को विघटित होने के लिए या तो मैदान में छोड़ दिया जाता है या उन्हें खुले में जलाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है। 

दुनिया में कितना उत्सर्जित होता है बायोमास वेस्ट

यदि बायोमास वेस्ट की बात करें तो हमने आज तक उसकी उपयोगिता को पूरी तरह नहीं पहचाना है। यह न केवल हमारी ऊर्जा सम्बन्धी बल्कि निर्माण सामग्री सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकता है। हाल में अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययन में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। 

अध्ययन के अनुसार वैश्विक रूप से करीब 140 गीगाटन (14,00,00,00,00,00,000 किलोग्राम) बायोमास वेस्ट निकलता है। यह धरती पर मौजूद हम इंसानों के वजन से 443 गुना ज्यादा है। दुनिया भर में कृषि से निकले बायोमास वेस्ट का लगभग 66 फीसदी हिस्सा अनाज वाली फसलों का होता है जिसका करीब 60 फीसदी विकासशील देशों द्वारा उत्सर्जित होता है। 

कृषि से उपजे इस कचरे के बढ़ने से ने केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बढ़ता जा रहा है। यदि इस कचरे को खुले में छोड़ दिया जाता है तो यह भूमि और जल को प्रदूषित कर सकता है, अगर इस कचरे को मिट्टी में दबा दिया जाता है तो इससे नाइट्रोजन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें पैदा होती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए कार्बन डाइऑक्साइड से भी खतरनाक है। यदि इस कचरे को जला दिया जाता है तो वायु और अन्य प्रकार के प्रदूषण का कारण बनता है। हालांकि दुनिया भर में कई देशों में इस वेस्ट से ऊर्जा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

अनुमान है कि दुनियाभर में 10 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन बायोमास से किया जाता है। यह मुख्यतः विकासशील देशों में ईंधन और घरों को गर्म रखने के लिए उपयोग की जाती है।दुनिया भर में 2 गीगा टन से अधिक फसलों के बचे हिस्से को जला दिया जाता है जो वैश्विक रूप से कुल कार्बन डाइऑक्साइड के करीब 18 फीसदी हिस्से का उत्सर्जन करता है, साथ ही इससे ब्लैक कार्बन जैसे हानिकारक घटकों का भी उत्सर्जन होता है ।

वह यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में इनका प्रयोग उद्योगों और घरेलू ऊर्जा और इन्हें गर्म रखने के लिए किया जाता है। अमेरिका में अधिकतर कृषि सम्बन्धी बायोमास वेस्ट को उद्योगों में इस्तेमाल किया जाता है, बाकी बचे हुए को या तो जला दिया जाता है या फिर मिट्टी में दबा दिया जाता है। भारत, ब्राजील, चीन और अफ्रीका के विकासशील देशों में वैश्विक बायोमास वेस्ट के करीब 25 फीसदी हिस्से का उपयोग कर लिया जाता है। परन्तु इसके जयादातर हिस्से को आज भी पारम्परिक तरीके से प्रयोग किया जा रहा है, जिसमे ईंधन के रूप में इसका प्रयोग प्रमुख है। 

बायोमास वेस्ट से बना सकते हैं निर्माण सामग्री 

वैज्ञानिकों ने बायोमास वेस्ट और उसको जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पर्यावरण के दृष्टिकोण से लाभदायक मार्ग सुझाया है। उनके अनुसार, इस बायोमास वेस्ट का प्रयोग भवन निर्माण सामग्री के रूप में किया जा सकता है। इससे कचरे की समस्या को हल करने के साथ ही प्रदूषण और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को भी कम किया जा सकता है। उनके अनुसार, बायोमास वेस्ट को ठोस और गैसीय दोनों रूप से उपयोग करके निर्माण सामग्री का निर्माण किया जा सकता है।

हम जानते हैं कि पौधों से प्राप्त होने वाला ठोस कचरा जैसे फलों के छिलके, पौधों के रेशे और लकड़ी के रूप में कचरा कार्बन डाइऑक्साइड से प्रतिक्रिया करता है और उसे कार्बोनेशन की प्रक्रिया के दौरान प्रबंधित करके निर्माण सामग्री जैसे टाइल्स, ईंटे, बोर्ड बनाए जा सकते हैं।

दूसरी ओर बायोमास-आधारित बिजली संयंत्रों से उत्पन्न राख और वेस्ट टु एनर्जी प्लांट पर वेस्ट के जलने के स्थान से इकठ्ठा की गई कार्बन डाइऑक्साइड में मिलाकर उससे टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्री का निर्माण किया जा सकता है ।

वैज्ञानिकों के अनुसार सभी प्रकार की बायोमास राख कार्बोनेशन के जरिये पुनः प्रयोग नहीं की जा सकती। उस अवस्था में उनमें मौजूद मिनरल्स के गुणों के आधार पर उन्हें प्रयोग किया जा सकता है या फिर उन्हें उनके प्राकृतिक रूप में ही बायोमास राख में मिलाकर उनसे कम्पोजिट मटेरियल बनाया जा सकता है ।

वेस्ट प्रबंधन की यह रणनीति लैंडफिल पर बढ़ते दबाव को कम कर सकती है। साथ ही वातावरण में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को भी नियंत्रित कर सकती है। इससे ने केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य के खतरे को कम किया जा सकता है बल्कि बढ़ती आबादी और नगरीकरण की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्माण सामग्री की भी आपूर्ति की जा सकती है। 

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