जानवरों की जान ले रहा है पीपीई वेस्ट

यह कचरा न केवल जमीन पर रहने वाले जीवों बल्कि पानी में रहने वाले जीवों को भी प्रभावित कर रहा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 25 March 2021
 

पीपीई वेस्ट दुनिया भर में जीव-जंतुओं की जान ले रहा है। यह जानकारी लीडेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जोकि 24 मार्च 2021 को जर्नल एनिमल बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

दुनिया भर में कोरोना महामारी से बचने के लिए बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) जैसे दस्ताने और मास्क का प्रयोग किया जा रहा है। इसने जहां एक तरफ लोगों की इस महामारी से सुरक्षा की है वहीं साथ ही इस बढ़ते कचरे के रूप में एक नई समस्या को भी जन्म दे दिया है। आज इससे पैदा हुआ कचरा दुनिया भर के लिए समस्या बन चुका है। शोध से पता चला है कि यह कचरा न केवल जमीन पर रहने वाले जीवों बल्कि पानी में रहने वाले जीवों को भी प्रभावित कर रहा है। जमीन और पानी में रहने वाले जीव न केवल इसमें उलझे पाए गए बल्कि कई बार इनकों निगलने के मामले भी सामने आए हैं।

यह तब शुरु हुआ जब शोधकर्ताओं ने पहली बार लीडेन की नहर में एक मछली को लेटेक्स से बने दस्ताने में उलझा पाया। यह पहला मामला था जब नीदरलैंडस में कोई जीव कोरोना के कचरे में उलझा पाया गया था। इसके बाद तो जब वैज्ञानिकों ने इस बारे में जानकारी एकत्र करना शुरु कि तो उनके पास इसके कई सबूत सामने आए। उन्होंने ब्राजील से लेकर मलेशिया तक कई देशों में और सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय अखबारों और अंतर्राष्ट्रीय समाचार वेबसाइटों तक का अवलोकन किया जिससे इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त हो सके। उन्हें पता चला कि यूके में लोमड़ी, कनाडा में पक्षी, हेजहॉग, सीगल, केकड़े और चमगादड़ तक कई तरह के जीव इन मास्क में उलझे पाए गए थे।

जहां बंदरों के इन मास्क को चबाने के मामले सामने आए वहीं पेंगुइन के शरीर में भी फेस मास्क मिले थे। यही नहीं पालतू जानवर विशेषकर कुत्तों के भी मास्क को निगलने के मामले सामने आए थे। इस शोध से जुड़े शोधकर्ता लिसलोटे रेमबोनेट ने बताया कि जीवों के पेट में प्लास्टिक फंसने के कारण वो भूखे रह जाते हैं और कमजोर पड़ जाते हैं। वहीं बायोलॉजिस्ट ऑक-फ्लोरियन हैम्स्ट्रा के अनुसार कोरोना के कचरे से प्रभावित जीवों में काफी विविधता पाई गई है। न केवल धरती पर रहने वाले जीव बल्कि पानी में रहने वाले जीव भी इस कचरे में उलझे पाए गए थे।

वहीं कई बार पक्षियों को इस वेस्ट को अपने घोसले के लिए भी इस्तेमाल करते हुए पाया गया था। उदाहरण के लिए नीदरलैंड्स में कूट्स पक्षियों को अपने घोसले के लिए फेस मास्क और दस्ताने का उपयोग करते पाया गया था। वहीं कई बार पक्षियों को इस वेस्ट को अपने घोसले के लिए भी इस्तेमाल करते हुए पाया गया था। उदाहरण के लिए नीदरलैंड्स में कूट्स पक्षियों को अपने घोसले के लिए फेस मास्क और दस्ताने का उपयोग करते पाया गया था। हैम्स्ट्रा के अनुसार यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि कई जानवरों में भी कोविड-19 के लक्षण सामने आए हैं।

हाल ही में किए गए एक अन्य शोध से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर हर वर्ष औसतन 12,900 करोड़ फेस मास्क और 6500 करोड़ दस्तानों का उपयोग किया जा रहा है, जिसका मतलब है कि हर मिनट में 30 लाख फेस मास्क उपयोग किए जा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर मास्क प्लास्टिक माइक्रोफाइबर से बने होते हैं जिन्हें एक बार इस्तेमाल करके फेंक देने के लिए बनाया गया है। ऐसे में इस कचरे का ठीक तरह से निपटान बहुत मायने रखता है।

हाल ही में हांगकांग के सोको आइलैंड पर सिर्फ 100 मीटर की दूरी में 70 मास्क पाए गए थे, जबकि यह एक निर्जन स्थान है। आप अनुमान लगा सकते हैं कि दुनियाभर में इसका कितना कचरा फैला हुआ है। यदि इन्हें ऐसे ही खुले में फेंक दिया जाता है तो यह न केवल स्वास्थ्य अपितु अन्य जीवों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है।

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