उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में झीलों और जल निकायों पर अतिक्रमण, जांच समिति गठित

यह मामला सिविल सोसाइटी में प्रकाशित एक समाचार "मैप एंड सेव वॉटर बॉडीज" के आधार पर उठाया गया है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Wednesday 13 March 2024
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में झीलों और जल निकायों पर अतिक्रमण और प्रदूषण के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। 11 मार्च 2024 को दिए इस निर्देश के मुताबिक इस समिति में लखनऊ में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के सदस्य सचिव और बहराइच के जिला मजिस्ट्रेट शामिल होंगे।

समिति राजस्व अभिलेखों के अनुसार बाघेल ताल झील का वास्तविक आकार निर्धारित करने के लिए स्थल का दौरा करेगी। साथ ही यह इस बात का भी आकलन करेगी कि झील के कितने क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है।

समिति पानी की गुणवत्ता का विश्लेषण करने और समाधान सुझाने के लिए झील से पानी के नमूने भी एकत्र करेगी। इस मामले में अगली सुनवाई 14 मई, 2024 को होनी है, ऐसे में समिति से अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले ट्रिब्यूनल को की गई कार्रवाइयों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि यह मामला सिविल सोसाइटी में प्रकाशित एक समाचार "मैप एंड सेव वॉटर बॉडीज" के आधार पर उठाया गया था। इस खबर में उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र की झीलों और जल निकायों पर अतिक्रमण और प्रदूषण के मुद्दे को उजागर किया गया था।

इस रिपोर्ट में करीब 42 किलोमीटर में फैले 'बघेल ताल' का जिक्र किया गया है। जो एक बड़ा जल निकाय है, हालांकि कई खेतों ने इसके किनारों पर अतिक्रमण कर लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस ताल का पानी खत्म हो गया है और इसके किनारों पर गहन खेती की जा रही है, जिसने महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खतरे में डाल दिया है।

इस खबर में यह भी कहा गया है कि बाघेल ताल के अलावा, क्षेत्र के अन्य जल निकाय भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। वहां डेवलपर्स और रियल एस्टेट एजेंसियां ​​तालाबों और झीलों को आवास परियोजनाओं और वाणिज्यिक क्षेत्रों में बदल रही हैं।

शिवालिक पहाड़ियों में अवैध खनन कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर जुर्माना क्यों नहीं: एनजीटी

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने अवैध खनन के खिलाफ की गई करवाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एनजीटी से समय मांगा था। पूरा मामला बीट क्षेत्र में शिवालिक पहाड़ियों पर हुए अवैध खनन से जुड़ा है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने इस क्षेत्र में अवैध खनन के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान की एवज में जिम्मेवार लोगों पर लगाए जुर्माने और की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था। बता दें कि एनजीटी ने 11 मार्च 2024 को निर्देश दिया कि है कि इस बाबत रिपोर्ट 14 मई 2024 को होने वाली अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले दाखिल की जानी चाहिए।

इस बारे में खान एवं भूतत्व विभाग द्वारा 11 जनवरी, 2024 को जारी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि अवैध खनन में शामिल लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं एडीसी, रूपनगर द्वारा गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि खेड़ा कल्मोट क्रशर जोन में क्रशरों के खिलाफ खनन उल्लंघन को लेकर 22 एफआईआर दर्ज की गई थी।

वहीं 2023 में खनन अपराधियों को कुल 27 डिमांड नोटिस जारी किए गए थी, जिनमें उन्हें 51.89 करोड़ रुपए के भुगतान का निर्देश दिया गया था। वहीं पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने छह मार्च, 2024 को खुलासा किया है कि उन्होंने 13 स्टोन क्रशरों के खिलाफ पर्यावरण मुआवजा (ईसी) लगाने की कार्रवाई की है।

आदेश में कहा गया है कि जहां पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने पर स्टोन क्रशरों के खिलाफ पर्यावरणीय मुआवजा (ईसी) लगाया है। वहीं जंगलों और पर्वतीय क्षेत्रों में अवैध खनन के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए उल्लंघनकर्ताओं पर कोई जुर्माना नहीं लगाया है।

मेरठ में हर दिन पैदा हो रहा है 420 टन बायोडिग्रेडेबल कचरा: रिपोर्ट

मेरठ में हर दिन करीब 420 टन बायोडिग्रेडेबल कचरा पैदा होता है, जिसका ट्रीटमेंट गवाड़ी में किया जाता है। वहां, पिट कंपोस्टिंग क्षमता 1,500 टन प्रतिदिन है। इसी तरह मेरठ नगर निगम की सीमा में हर दिन 280 टन नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा भी पैदा हो रहा है। यह जानकारी मेरठ नगर निगम ने अपनी नई रिपोर्ट में दी है।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि मेरठ में जो कचरा पैदा हो रहा है, मेरठ नगर निगम की उसको प्रोसेस करने की क्षमता करीब-करीब खत्म होने के कगार पर है। ऐसे में मेरठ नगर निगम ने प्रसंस्करण क्षमता में सुधार के साथ-साथ बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए एक नया संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है। इस इंटीग्रेटेड सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के लिए 10 करोड़ रुपए भी आबंटित किए गए हैं।

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