कोरोना महामारी : ज्यादा हाथ धोने से भारत में पैदा हो सकता है जलसंकट

पांच व्यक्तियों के एक परिवार को केवल हाथ धोने के  लिए प्रतिदिन 100 से 200 लीटर पानी की आवश्यकता होगी

By Suresh Kumar Rohilla

On: Thursday 02 April 2020
 
Photo: Flickr

 

विशेषज्ञ इस बात को मानते  हैं कि साबुन और पानी से हाथ धोना नॉवेल  कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) को हराने का सबसे अच्छा तरीका है और ऐसा किया जाना विश्वभर में फैले कोविड-19 पर नियंत्रण पाने की दिशा में एक आवश्यक कदम है। हालांकि , देश  के विभिन्न शहरों में बसे स्लमों में रहनेवाली गरीब शहरी जनता या वैसे लोग , जिनके पास रहने को घर भी नहीं है , उनके लिए स्वछता बनाये रखना कोई आसान काम नहीं है। 

बिना पाइप वाले पानी के घरों में पानी के बर्तन भरने या हाथ धोने के लिए साबुन की व्यवस्था करने में ऊर्जा  संसाधनों की खपत होती है। इसकी वजह से लोगों में हाथ धोने की आदत विकसित नहीं हो पाती। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग के अलावा हाथ धोना इस वायरस के प्रसार को रोकने का सबसे अच्छा एवं आसान तरीका है। 

डब्लूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक प्रॉपर  हैंड वाश में कम से कम 20 सेकंड के लिए साबुन लगाना और दोनों तरफ हाथों को रगड़ना शामिल है।

खुले नल के नीचे तीस से चालीस सेकंड तक हाथ धोने में लगभग चार लीटर पानी प्रयोग में आएगा । वहीं हाथों को साबुन से रगड़ने के दौरान  अगर नल को बंद कर दिया जाए तो दो लीटर के आसपास पानी लगेगा।

अगर हम मान लें कि एक व्यक्ति दिन में दस बार हाथ धोता है , जोकि औसत का दोगुना है , तो प्रतिदिन 20 से 40 लीटर पानी की  खपत होगी । 

पांच सदस्यों के एक परिवार को इस तरह प्रतिदिन 100 से 200 लीटर पानी की जरूरत होती है।

इसके परिणामस्वरूप प्रति दिन लगभग 200 लीटर अपशिष्ट जल उत्पन्न होगा, पानी की मांग में 20 से 25 प्रतिशत की वृद्धि होगी और मानव बस्तियों से अपशिष्ट जल का उत्पादन होगा।

पांच व्यक्तियों के परिवार में पानी की  अनुमानित खपत 

समय की  अवधि 

प्रति 20 सेकंड में पानी की  खपत 

(लीटर में )

प्रति 15 सेकंड में बर्बाद हुआ पानी  (साबुन रसगड़ने के दौरान ) 

(लीटर में )

कुल अपशिष्ट जल 

(लीटर में )

प्रतिदिन प्रति परिवार 

(5 व्यक्ति )

100

150

225

प्रति महीने प्रति परिवार 

(5 व्यक्ति )

3100

4650

6975

नोट : पानी की  खपत की गणना दो लीटर प्रति व्यक्ति , 10 हैंडवाश प्रतिदिन के हिसाब से और 4 लीटर प्रति व्यक्ति के हिसाब से अगर साबुन रगड़ने के दौरान नल चलता रहे । 

अपशिष्ट जल की गणना 90 प्रतिशत पानी पर आधारित होती है, जिसमें साबुन रगड़ने  के दौरान नल के खुले रहने की वजह से बर्बाद हुए पानी की मात्रा भी शामिल होती है।

अतिरिक्त जल की इस  आवश्यकता - अपशिष्ट जल के उपचार सहित - के भारत के लिए बड़े निहितार्थ हैं,क्योंकि भारत की 1.3 बिलियन आबादी में से लगभग 160 मिलियन लोग साफ पानी की  उपलब्धता से वंचित हैं । 

शेष पहले से ही अपनी पानी की  जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं ।  आपूर्ति एवं मांग में अंतर और मौजूदा अपशिष्ट जल का   65 प्रतिशत अनुपचारित रहना पहले से ही प्रमुख स्वास्थ्य जोखिमों में से हैं।

मांग में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप जल के संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा - जिसमें जल बोर्ड, जल निगम और सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग शामिल हैं । 

इससे भूजल का और अधिक दोहन होगा और अनुपचारित अपशिष्ट जल की मात्रा बढ़ेगी। यह स्थिति गर्मियों में और बढ़ जाएगी, जब जल आपूर्ति स्रोत सूख जाएंगे।

उदाहरण कि बात करें तो अनुमानित है कि चेन्नई और शिमला में जल्द ही पानी पूरी तरह से खत्म हो सकता है । 

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि इन शहरों , और इनके अलावा कई  अन्य शहरों में पानी की लगातार बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जाएगा ? आखिर हाथ धोना इस वायरस को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है।

नलों से प्रति मिनट निकालने वाले पानी की  मात्रा कम करने पर मुख्य जोर होना चाहिए । स्वकछता और स्वास्थ्य दोनों एक ही सिक्के के अलग पहलू हैं। 

लोगों में पानी कि बचत के प्रति  जागरूकता फैलाए जाने की जरूरत है । हाथों को रगड़ने के दौरान नल बंद कर देने चाहिए या ऐसे नलों का इस्तेमाल हो जो हाथ हटा लेने पर खुद ब खुद बंद हो जाते हों ।

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