विश्व जल सप्ताह 2023: क्या 2024 तक हर घर नल जल की व्यवस्था कर पाएगा जल जीवन मिशन

योजना तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण भारत का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कवर किया जाना बाकी है

By Pradeep Kumar Mishra, Lalit Maurya

On: Monday 21 August 2023
 
अभी भी ग्रामीण भारत के 7.63 करोड़ यानी 47.3 फीसदी घर नल जल से दूर हैं। फोटो: आईस्टॉक

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को लाल किले के प्राचीर से जल जीवन मिशन की घोषणा की, जो आजादी के बाद से ग्रामीण भारत को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए इस तरह की सातवीं पहल है। इस मिशन का लक्ष्य 2024 तक सभी ग्रामीण घरों को नल जल का कनेक्शन प्रदान करना है। हालांकि, सवाल यह है कि क्या भारत ने अपने पिछले असफल प्रयासों से सीखा है?

भारत वर्षों से अपने गांवों में पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहा है। यही वजह है कि गांवों में पेयजल आपूर्ति के असफल प्रयासों का लंबा इतिहास रहा है। 1950 के भारतीय संविधान में सुरक्षित पेयजल को राज्यों का मसला माना और इसे सभी नागरिकों के अधिकार के रूप में मान्यता दी।

इसके बाद पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) में यह मुद्दा फोकस में रहा। इस योजना में राज्य सरकारों से ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी जल आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा विकसित करने का आग्रह किया गया। हालांकि 1960 के दशक के मध्य तक राज्य सरकारों ने मुख्य रूप से उन गांवों पर ध्यान केंद्रित किया जिन तक पहुंच आसान थी।

इसके बाद साल 1969 में, भारत ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम की शुरूआत की।  इस योजना के तहत सरकार ने यूनिसेफ की मदद से, देश में 12लाख बोरवेल खोदे और 17,000 नल जल कनेक्शन स्थापित किए।

वहीं 1972-73 के दौरान  ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल तक पहुंच बढ़ाने के लिए त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति योजना (एआरडब्ल्यूएस) शुरू की गई। एक साल बाद एआरडब्ल्यूएस को पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एमएनपी) से बदल दिया गया। इसका मकसद सभी के जीवन स्तर में सुधार करना था। हालांकि इसकी सुस्त रफ्तार के चलते केंद्र ने 1977-78 में त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति योजना को एक बार दोबारा शुरू कर दिया।

1986 में, राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना के साथ एआरडब्ल्यूएस को एक मिशन बना दिया गया। वहीं 1991 में इसका नाम बदलकर राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया। इसके तीन साल बाद, 1994 में संविधान में 73वें संशोधन के जरिए पंचायती राज संस्थाओं को पेयजल आपूर्ति की जिम्मेवारी सौंपी गई।

1996 में, योजना आयोग, जो अब सक्रिय नहीं है, ने एआरडब्ल्यूएस की प्रगति का आकलन करने के लिए 16 राज्यों के 87 जिलों में एक सैंपल सर्वे किया। सर्वेक्षण से पता चला कि योजना केवल 86 फीसदी चयनित गांवों तक ही पहुंची और वहां भी पानी की आपूर्ति अनियमित रही।

योजना आयोग ने पाया कि पानी में मौजूद अत्यधिक आयरन, फ्लोराइड और दुर्गन्ध के कारण कई राज्यों में पानी पीने लायक नहीं है। जांच से पता चला कि इसका मुख्य कारण जल की बहाली पर विचार किए बना बड़ी मात्रा में भूजल का किया जा रहा दोहन था। जैसे-जैसे भूजल का स्तर गिरा, योजना के तहत शुरू में "कवर" माने जाने वाले कई गांवों ने पानी की कमी के चलते अपना यह दर्जा खो दिया। इसके अलावा, 87 फीसदी जल निकासी प्रणालियां काम नहीं कर रही थीं, जो खराब रखरखाव का संकेत देती हैं।

1999 में, केंद्र सरकार ने "कवर नहीं किए गए" और "आंशिक रूप से कवर की गई" ग्रामीण बस्तियों तक एआरडब्ल्यूएस की पहुंच को बढ़ाने के लिए व्यापक कार्य योजना (सीएपी 99) शुरू की।

केंद्र ने सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से 26 राज्यों के 67 जिलों को पीने के पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पायलट आधार पर सेक्टर सुधार कार्यक्रम (1999-2000) की शुरूआत की। 2002 में इस कार्यक्रम में बदलाव करके इसे स्वजलधारा के रूप में "गांवों, पंचायतों, ब्लॉकों में लागू किया गया। इसके तहत लोग स्वेच्छा से अपने जल स्रोतों का प्रबंधन और रखरखाव कर सकते थे।

इस योजना के तहत समुदायों को इसके पूंजीगत खर्चे में 10 फीसदी का योगदान करना था। वहीं ससी/एसटी-बहुल गांवों के लिए यह लागत केवल पांच फीसदी ही तय की गई थी। इसके बाद 2007 में इस सामुदायिक योगदान को वैकल्पिक कर दिया गया। वहीं 2004 में, सभी पेयजल कार्यक्रमों को राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन के तहत जोड़ दिया गया।

इसके अतिरिक्त, 2005 में शुरू किए गए भारत निर्माण कार्यक्रम में सीएपी 99 के तहत कवर नहीं की गई बस्तियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक ग्रामीण पेयजल आपूर्ति घटक शामिल किया गया। हालांकि भारत निर्माण कार्यक्रम को भी पिछडते गांवो की समस्या को हल करने में सीमित सफलता ही हाथ लगी। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2002 से 2007 के बीच मौजूदा योजनाएं लक्षित बस्तियों का केवल 50 फीसदी हिस्सा ही कवर कर सकीं।

इसके बाद 2018 में, सीएजी ने 2012 से 2017 की अवधि के लिए 27 राज्यों में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम की प्रदर्शन रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट से पता चला है कि करीब 480,000 बस्तियां "पूरी तरह से कवर" से "आंशिक रूप से कवर" कैटेगरी में फिसल गई। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण गहरे ट्यूबवेलों की संख्या में हुई वृद्धि थी। पता चला है कि  2006-07 से 2013-14 के बीच ग्रामीण भारत में गहरे ट्यूबवेलों की संख्या में 80 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।

2017 में, सरकार ने सभी घरों तक पाइप के जरिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 'हर घर जल कार्यक्रम' की शुरूआत की। पेयजल और स्वच्छता विभाग के आंकड़ों से पता चला है कि एक अप्रैल, 2018 तक केवल 20 फीसदी ग्रामीण घर ही पाइप वाटर से जुड़े थे।

हालांकि इस योजना के तहत प्रत्येक घर के लिए बेहतर जल पहुंच प्रदान करते हुए 2018-19 में 35 फीसदी ग्रामीण परिवारों को शामिल करने का लक्ष्य था। हर घर जल मिशन के साथ, मंत्रालय का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति को प्रति व्यक्ति हर दिन 55 लीटर तक बढ़ाने का भी था। 2019 में, जल जीवन मिशन ने पहले के एआरडब्ल्यूएस की जगह ले ली।

पिछली गलतियों से सीखने की है जरूरत

पिछली योजनाओं के विश्लेषण से पता चला है कि उनकी विफलता के चार मुख्य कारण रहे। सबसे पहले, भूजल पर उनकी भारी निर्भरता के चलते, वे एक स्थाई जल स्रोत सुनिश्चित करने में विफल रहे। दूसरा, यह कार्यक्रम पेयजल आपूर्ति बनाए रखने के लिए समुदायों के भीतर जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए संघर्ष करते रहे। यही वजह है कि इन पिछली योजनाओं द्वारा निर्मित बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा अब खराब रखरखाव के कारण बेकार हो गया है।

तीसरा, पिछली परियोजनाओं की प्रगति को शायद ही कभी जनता के साथ साझा किया गया, जो लोगों को जागरूक करने का एक अच्छा तरीका है। चौथा, धन का कुप्रबंधन था। भारत ने ग्रामीण जल आपूर्ति पर करीब 200 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, इसके बावजूद समस्या अभी भी बरकरार है।

जल जीवन मिशन पहले के दृष्टिकोण से हटकर है। इसका उद्देश्य उन मुद्दों से निपटना है जो पिछली योजनाओं की विफलता की वजह बने थे। उदाहरण के लिए, यह कार्यक्रम गांवों को उपलब्धता के आधार पर सतही जल स्रोतों या भूजल के दोहन की अनुमति देता है, साथ ही यह इन जल स्रोतों को रिचार्ज करने और उन्हें सुरक्षित रखने के महत्व पर भी जोर देता है।

इसके अलावा, मिशन समुदायों के भीतर जागरूकता बढ़ाने और सभी स्तरों पर अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने के महत्व पर भी जोर देता है। इसके उद्देश्यों को इस प्रकार रेखांकित किया गया है: "सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी), प्रशिक्षण, उपयोगिता विकास, जल गुणवत्ता प्रयोगशालाओं की स्थापना, जल गुणवत्ता परीक्षण और निगरानी, ​​अनुसंधान उन्नति, ज्ञान केंद्र और समुदाय जैसी विभिन्न सहायक गतिविधियां करना। साथ ही मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अन्य बातों के अलावा क्षमता निर्माण पर भी जोर दिया गया है।

वर्तमान में, इसके फण्ड का अधिकांश हिस्सा बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए उपयोग किया जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 22 फीसदी गांवों में अभी तक ग्राम जल स्वच्छता समिति की स्थापना नहीं हुई है, जो जल आपूर्ति के चल रहे रखरखाव और पर्यवेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, ग्राम स्तर पर समिति के सदस्यों के कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।

इस पहल में एक सशक्त डैशबोर्ड है जो जनता को योजना की प्रगति के बारे में अवगत कराता है। यह पारदर्शिता महत्वपूर्ण है, जो गांवों को यह समझने में मदद करता है कि अन्य गांव कैसे प्रगति कर रहे हैं। इस तरह यह गांवों को कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

डैशबोर्ड हर गांव के जल स्रोतों, उपचार और शुद्धिकरण संयंत्रों, भंडारण सुविधाओं, वितरण नेटवर्क और सामुदायिक स्वच्छता परिसरों को व्यापक रूप मैप की मदद से प्रदर्शित करता है। हालांकि यह वर्तमान में वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण प्रणालियों जैसी संरचनाओं के स्थान का संकेत नहीं देता है।

इसके अलावा, कार्यक्रम के दायरे में "प्राकृतिक आपदाओं या अप्रत्याशित चुनौतियों" का सामना करना आता है। इसके तहत गांवों में हर मामले आधार पर बड़े पैमाने पर जल हस्तांतरण लागू करना और उपचार संयंत्र और वितरण प्रणाली स्थापित करना भी शामिल है। यह ग्रेवाटर प्रबंधन को संबोधित करने के साथ-साथ उन क्षेत्रों में तकनीकी समाधान शामिल करने की योजना से जुड़ी रूपरेखा भी तैयार करता है जहां पानी की गुणवत्ता मुद्दा है।

अभी भी अधूरी है कहानी

भारत में कुल 19.36 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं। इनमें से जल जीवन मिशन की शुरूआत में केवल 3.24 करोड़ परिवारों यानी केवल 16.7 फीसदी के पास नल जल का कनेक्शन है। हालांकि तीन जनवरी, 2023 तक, डैशबोर्ड में जारी आंकड़ों के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 10.87 करोड़ पर पहुंच गया था, जो 56.14 फीसदी घरों तक नल जल की पहुंच को दर्शाता है। इसका मतलब है कि इस मिशन को अगले दो वर्षों में 7.63 करोड़ यानी 47.3 फीसदी घरों तक नल जल की व्यवस्था करनी होगी।

अब तक, केवल पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों - हरियाणा, गोवा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, पुडुचेरी, दमन और दीव के साथ दादरा नगर हवेली ने हर घर तक नल जल की व्यवस्था करने में सफलता हासिल की है। इसके साथ ही दो अन्य राज्यों तेलंगाना और गुजरात ने भी हर घर तक नल जल की व्यवस्था करने का दावा किया है। योजना के तहत उनके दावों का सत्यापन किया जा रहा है।

जल जीवन मिशन पर बहुत कुछ निर्भर है। इसकी सफलता यह सुनिश्चित करेगी कि भारत ने खुले में शौच-मुक्त स्थिति को बनाए रखने के साथ पानी और स्वच्छता से जुड़े सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल किया है। यह योजना तेजी से प्रगति कर रही है, लेकिन ग्रामीण भारत का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कवर किया जाना बाकी है। 

यह लेख पहली बार 23 मार्च, 2023 को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट और डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा जारी स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2023 में प्रकाशित हुआ था।

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