वियतनाम में खोजी गई परजीवी ततैया की 16 नई अनोखी प्रजातियां, व्यवहार दिखा असामान्य

वियतनाम में परजीवी ततैयों के दुर्लभ समूह 'लोबोसेलिडिया' की खोज में किए क्षेत्रीय सर्वेक्षण ने दुनिया भर में इनकी प्रजातियों में 30 फीसदी की वृद्धि कर दी है

By Lalit Maurya

On: Friday 22 September 2023
 
अपनी अनोखी भौतिक विशेषताओं के आधार पर वियतनाम में खोजी गई 'लोबोसेलिडिया' समूह से सम्बन्ध रखने वाली परजीवी ततैयों की 16 नई प्रजातियां; फोटो: यू हिसासु एट ऑल/ यूरोपियन जर्नल ऑफ टैक्सोनॉमी, 2023

क्यूशू विश्वविद्यालय और वियतनाम के नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचर से जुड़े वैज्ञानिकों ने वियतनाम में 16 प्रकार के नए परजीवी ततैयों की खोज की है। यह सभी, परजीवी ततैयों के एक दुर्लभ समूह 'लोबोसेलिडिया' से सम्बन्ध रखते हैं, जोकि ततैयों का एक असामान्य और दुर्लभ समूह है।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने लोबोसेलिडिया स्क्वैमोसा नामक मादा ततैया के परजीवी व्यवहार के बारे में भी एक अनोखी खोज की है। उन्होंने पहली बार देखा है कि वो किसी दूसरे कीट, जिसके सहारे वो जीवित रह सकती है, उसके अंडे को छिपाने के लिए जमीन में गड्ढा खोद रही थी। इस अध्ययन के नतीजे यूरोपियन जर्नल ऑफ टैक्सोनॉमी में प्रकाशित हुए हैं।

आप में से बहुत से लोग येलोजैकेट जैसी शिकारी ततैया से परिचित होंगें। जो अपने आकर्षक काले और पीले रंग के पैटर्न के लिए जानी जाती हैं। इनका डंक बेहद दर्दनाक होता है। देखा जाए तो अधिकांश ततैया प्रजातियां वास्तव में परजीवी होती हैं।

आमतौर पर यह परजीवी ततैया बहुत छोटी होती हैं। यदि लोबोसेलिडिया समूह की बात करें तो यह ततैया दो से पांच मिलीमीटर लंबे होते हैं। हालांकि हम में से बहुत से लोग अक्सर इन ततैयों पर ध्यान नहीं देते, लेकिन यह पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  

इस बारे में क्यूशू विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता तोशीहारू मीता ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "परजीवी ततैया अन्य कीड़ों के परजीवी के रूप में कार्य करते हैं। वे अपने अंडे अपने मेजबान के शरीर या अंडों पर देते हैं, जिससे अंततः उन कीड़ों की मृत्यु हो जाती है।"

देखा जाए तो पारिस्थितिक महत्व के बावजूद, लोबोसेलिडिया सहित परजीवी ततैयों के कई अन्य समूहों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। पिछले शोध से पता चला है कि ये ततैया स्टिक इंसेक्ट्स के अंडों पर परजीवीकरण करते हैं, जिन्हें वॉकिंग स्टिक भी कहा जाता है।

इस बारे  में अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता डॉक्टर यू हिसासु का कहना है कि 'लोबोसेलिडिया' की खोज पहली बार करीब डेढ़ सौ साल पहले की गई थी लेकिन अभी भी हमारे पास इनके बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है।" उनके मुताबिक यह पहला मौका है जब हम उनके परजीवी व्यवहार की जांच करने में कामयाब रहे हैं।  

अब तक 67 प्रजातियों की हो चुकी है खोज

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पूरे वियतनाम में छह स्थानों पर क्षेत्रीय सर्वेक्षण किया है। ऐसे ही एक सर्वेक्षण में वो लोबोसेलिडिया स्क्वैमोसा नामक ततैया की नई प्रजाति को खोजने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने इसकी जीवित मादा को पकड़ा, और उसे एक प्लास्टिक कंटेनर में रख दिया जिसमें मिट्टी भी मौजूद थी। साथ ही उन्होंने इस कंटेनर में वॉकिंग स्टिक नामक एक कीट का अंडा भी रख दिया।

शोधकर्ताओं ने देखा कि इस मादा ततैया ने न केवल उस कीट के अंडे में छेद किया और उसमें अपना अंडा रख दिया। इसके बाद उसने अपने सिर से मिट्टी में एक छेद किया जिसमें उसने वॉकिंग स्टिक के अंडे को दबा दिया और अंत में उसने इस छेद को मिट्टी से ढक दिया।

देखा जाए तो इनका परजीवी व्यवहार काफी उन्नत है, जो अकेले शिकार करने वाले ततैया में देखे गए घोंसले के निर्माण के व्यवहार जैसा दिखता है। नतीजतन, शोधकर्ताओं का मानना है कि इसपर किए आगे के अध्ययनों से यह पता चल सकता है कि अन्य ततैया में यह व्यवहार कैसे विकसित हुए हैं। साथ ही यह लोबोसेलिडिया के सिर की अद्वितीय संरचना के बारे में भी जानकारी प्रदान कर सकता है, जो मिट्टी में गड्ढा करने के लिए उपयुक्त है।

कुल मिलाकर इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को ततैयों की 16 नई प्रजातियों का पता चला है। इस तरह दुनिया भर में 'लोबोसेलिडिया' समूह से जुड़ी ततैयों की ज्ञात कुल प्रजातियों की संख्या 67 हो गई है। इस बारे में मीता का कहना है कि, "लोबोसेलिडिया ततैया को केवल कुछ ज्ञात प्रजातियों के साथ दुर्लभ माना जाता था, लेकिन अब हमने प्रजातियों की संख्या में 30 फीसदी का इजाफा कर दिया है।"

शोध के मुताबिक महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक प्रजाति आम तौर पर बहुत सीमित विशिष्ट क्षेत्र में ही पाई जाती है, जिससे पता चलता है कि अगर हम तलाश करते रहे तो और भी अनदेखी प्रजातियों को खोजा जा सकता है। हालांकि, इसका यह भी मतलब है कि प्रत्येक प्रजाति असुरक्षित है। हिसासु का कहना है कि, चूंकि हर प्रजाति एक छोटे से क्षेत्र में ही पाई जाती है तो उनके आवास क्षेत्रों में आया कोई भी बदलाव या नुकसान इन प्रजातियों के अस्तित्व को हमेशा के लिए मिटा सकता है। 

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