हर साल खाल के लिए मारे जा रहे 59 लाख गधे, तीन वर्षों में 14 फीसदी का हो सकता है इजाफा

इन गधों की हत्या के पीछे की सबसे बड़ी वजह चीन में 'एजियाओ' की बढ़ती मांग है, जिसका बड़े पैमाने पर उपयोग चीन की पारम्परिक दवाओं में किया जाता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 20 February 2024
 
भारत ही नहीं दुनिया के कई अन्य हिस्सों में भी लम्बे समय से गधों को सामान ढोने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है; फोटो: आईस्टॉक

विडम्बना देखिए कि जो गधे सदियों से इंसान के साथी रहे हैं, आज बड़ी तादाद में उनकी खाल के लिए उन्हें मारा जा रहा है। द डोंकी सैंक्चुअरी ने इस बारे में जारी अपनी नई रिपोर्ट “डोंकी इन ग्लोबल ट्रेड: वाइल्डलाइफ क्राइम, वेलफेयर, बायोसिक्योरिटी एंड द इम्पैक्ट ऑन वीमेन” में खुलासा किया है कि हर साल दुनिया भर में 59 लाख गधों को उनकी खाल के लिए मार दिया जाता है। बता दें कि द डोंकी सैंक्चुअरी, दुनिया भर में गधों और खच्चरों की बेहतरी के लिए काम करने वाली एक संस्था है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जिस तरह से गधों को उनकी खाल के लिए मारा जा रहा है, उसे अगर रोका न गया तो बूचड़खानों में भेजे जा रहे इन गधों का आंकड़ा 2027 तक 14 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 67 लाख तक पहुंच सकता है। बता दें कि रविवार को इथियोपिया में सम्पन्न हुए अफ्रीकन यूनियन के शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी नेताओं ने गधों की खाल के होते व्यापर पर प्रतिबंध को मंजूरी दे दी है।

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गौरतलब है कि इन गधों की हत्या और तस्करी के पीछे की सबसे बड़ी वजह 'एजियाओ' की बढ़ती मांग है। एजियाओ को ‘कोला कोरी असीनी’ या ‘डंकी हाइड ग्लू’ भी कहा जाता है, जिसका बड़े पैमाने पर उपयोग चीन की पारम्परिक दवाओं में किया जाता है। इतना ही नहीं चीन स्किन केयर और ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने की कई चीजों में भी इनका इस्तेमाल करता है। ऐसा माना जाता है कि 'एजियाओ' में कई औषधीय गुण होते हैं।

क्या है 'एजियाओ' जिसके लिए की जा रही गधों की हत्या?

'एजियाओ' गधे की खाल से निकाले गए कोलेजन से बनता है। रिपोर्ट के मुताबिक एक बार खाल से निकाले जाने के बाद इन्हें गोलियों, बार या तरल रूप में दूसरी चीजों के साथ मिलकर इनसे अनेक तरह के उत्पाद बनाए जाते है। चीन में इन उत्पादों की भारी मांग है। 

गौरतलब है कि जहां 2013 में  'एजियाओ' का उत्पादन 3,200 टन था, जिसके लिए कम से कम 12 लाख खालों की जरूरत पड़ी थी। वहीं 2021 में इसका उत्पादन बढ़कर 15,700 टन पर पहुंच गया। इतने एजियाओ के उत्पादन के लिए कम से कम 59 लाख गधों की खालों की जरूरत पड़ी होगी। यदि पिछले पांच वर्षों 2016 से 2021 के आंकड़ों को देखें तो इस दौरान 'एजियाओ' के उत्पादन में 160 फीसदी की वृद्धि हुई है। बता दें कि आज यह व्यापार बड़ी तेजी से ऑनलाइन और सोशल मीडिया के जरिए फैल रहा है।

गधों और इंसानों का साथ कितना पुराना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है मिस्र की राजधानी काहिरा से 500 किलोमीटर दक्षिण में नील नदी के किनारे एक शाही कब्रिस्तान की खुदाई कर रहे अमेरिकी पुरातत्वविदों को गधों के कंकाल मिले थे। यह इस बात का सबूत है कि पांच हजार साल पहले भी गधों को पाला जाता था। इसी तरह भारत में भी अकबर बीरबल की कथाओं में गधों का जिक्र आम है।

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आज भी भारत सहित अफ्रीका और दुनिया के कई अन्य देशों में बड़े पैमाने पर गधों को पाला जाता है। यह गधे सामान ढोने का काम करने में लगे समुदायों की आय का एक मुख्य साधन है। यह लोग काफी हद तक अपनी जीविका के लिए इन्हीं गधों पर निर्भर हैं।

'एजियाओ' इस बढ़ती मांग का असर खुद चीन में भी गधों की आबादी पर पड़ा है, जहां इनकी जो आबादी 1999 में 1.1 करोड़ दर्ज की गई थी वो 2019 में घटकर 26 लाख पर पहुंच गई है। इसी तरह पाकिस्तान, अफ्रीकी देशों में भी गधों की अच्छी खासी मांग है, जिन्हें चीन में बेचा जाता है।

जैसे-जैसे चीन में गधों की आबादी तेजी से घट रही है, इसकी खाल के व्यापार में शामिल एजेंट अफ्रीकी देशों के साथ-साथ दुनिया भर में इन गधों पर निर्भर कमजोर समुदायों को निशाना बना रहे हैं। आलम यह है कि पाकिस्तान और अफ्रीका के कई देशों में तो इन्हें इनकी सामान्य कीमत के मुकाबले दोगुनी कीमत देकर भी खरीदा जा रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया में कई जगह ऐसी हैं, जहां गधों की संख्या तेजी से घटी है। इन देशों में सैकड़ो अवैध बूचड़खाने खुल गए हैं, जहां सिर्फ गधों को मारा जा रहा है। इसके बाद इनकी खाल और दूसरी चीजों को अवैध तरीके से चीन को भेज दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है पैसों के लिए इन बूचड़खानों में बीमार और बुजुर्ग गधों तक को मारा जा रहा है।

देखा जाए तो इन गधों को पकड़े जाने से लेकर बूचड़खाने तक हर पल पीड़ा सहनी पड़ती है। इस दौरान इन गधों को कई-कई दिनों तक बेहद बुरे हालातों में एक से दूसरी जगह भेजा जाता है। इस दौरान इन्हें ना तो खाना मिलता है और ना पानी। ऐसे में इनमें से कई तो रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।

अपने गधों पर मंडराते इस खतरे से निपटने के लिए अफ्रीकी नेता पूरे अफ्रीका में गधों की हत्या पर रोक लगाने सम्बन्धी कानूनों को मंजूरी देने की कोशिश कर रहे हैं। देखा जाए तो उनके यह कदम इस क्रूर और अमानवीय व्यापार को रोकने के लिए चल रहे प्रयासों में एक मील का पत्थर साबित होगा।

दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह ब्राजील में भी गधों की तस्करी की जाती है और उनकी खाल के लिए उन्हें मार दिया जाता है। वहां गधों सहित सभी घोड़ों के वध पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को 2024 में राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अनुमोदित किए जाने की उम्मीद है।

ब्राजील और अफ्रीका के यह कानून इस अनैतिक व्यापार में दो प्रमुख बाजारों से इसकी आपूर्ति को काफी कम कर देंगे। उनके इस कदम से एजियाओ उद्योग को बेहतर और क्रूरता मुक्त विकल्प तलाशने के लिए प्रोत्साहित करने की उम्मीद है।

भारत में भी घटी है गधों की आबादी

भारत में भी गधों की आबादी तेजी से कम हुई है। ब्रुक इंडिया (बीआई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'द हिडन हाईड' के मुताबिक 2012 से 2019 के बीच गधों की आबादी में 61.2 फीसदी की कमी आई है। गौरतलब है कि जहां भारत में 2012 की गई पशुधन गणना में इनकी कुल संख्या 3.2 लाख थी, वो 2019 की गणना में घटकर महज 1.2 लाख रह गई थी। यानी पिछले आठ वर्षों में इनकी संख्या में दो लाख की गिरावट आई है। 

इस रिपोर्ट के मुताबिक जहां इन आठ वर्षों के दौरान महाराष्ट्र में गधों की संख्या में 39.7 फीसदी की कमी आई है, वहीं उत्तरप्रदेश में यह आंकड़ा 71.7 फीसदी दर्ज किया गया है। इसी तरह राजस्थान में भी 71 फीसदी की कमी दर्ज की गई। गौरतलब है कि जहां 2012 की गणना में राजस्थान में मौजूद गधों की आबादी देश में सबसे ज्यादा 81,000  दर्ज की गई थी, वो 2019 में घटकर महज 23,000 रह गई।

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ऐसे में भारत में भी गधों को खाल और मीट के लिए मारा जा रहा है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) 2011 के मुताबिक गधे को 'खाद्य पशु' के रूप में पंजीकृत नहीं किया गया है, ऐसे में खाने के लिए मारना देश में अवैध और गैर कानूनी है। 

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इनके व्यापार के साथ-साथ ज़ूनोटिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है, क्योंकि जब भी जीवों को देशों और उसकी सीमाओं के परे भेजा जाता है तो उनके साथ-साथ इस तरह की जूनोटिक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बना रहता है।

इस बारे में द डोंकी सैंक्चुअरी की सीईओ मैरिएन स्टील का कहना है कि, “हर साल की जा रही 60 लाख गधों की हत्या, पशु कल्याण के लिए एक बड़ी आपदा है।“ उनके मुताबिक यह गधे धरती पर सबसे चुनौती भर वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए किसी जीवन रेखा से कम नहीं। जहां एक भी गधे को खोना उनकी जीविका और अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

उनका आगे कहना है कि लम्बे समय से राजनीतिक चर्चाओं में गधों को नजरअंदाज किया जाता रहा है। लेकिन अब यह मुद्दा अफ्रीका और ब्राजील में निर्णायक दौर में पहुंच गया है। जो दुनिया भर इनकी खाल के लिए किए जा रहे व्यापार की गंभीरता और क्रूरता के साथ-साथ गधों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करता है।

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