साहित्य में पर्यावरण: विक्षति की तुरपाई

डाउन टू अर्थ, हिंदी का छठा वार्षिकांक पर्यावरण में साहित्य विषय पर समर्पित था। इस अंक में प्रकाशित अशोक वाजपेयी की कविता

By Ashok Vajpeyi

On: Friday 08 October 2021
 

एक युवा जंगल


एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी पत्तियों से बुलाता है।
मेरी शिराओं में हरा रक्त बहने लगा है
आंखों में हरी परछाइयां फिसलती हैं
कंधों पर एक हरा आकाश ठहरा है
होंठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं :
मैं नहीं हूं और कुछ
बस एक हरा पेड़ हूं
– हरी पत्तियों की एक दीप्त रचना!
ओ युवा जंगल
बुलाते हो
आता हूं
एक हरे बसंत में डूबा हुआ
आऽ ताऽ हूँ...।

अशोक वाजपेयी

 

आगे पढ़ें, अशोक वाजपेशी जी का आलेख  - फिर से प्रकृति की ओर लौटने का अवसर

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