2100 तक प्रजातियों के 23 फीसदी आवास हो जाएंगे गायब

अध्ययन में सन 1700 से आज तक यहां रहने वाले लगभग 16,919 प्रजातियों के आवास अर्थात उनके रहने वाली सीमा/सरहद में आए बदलाव का विश्लेषण किया है।

By Dayanidhi

On: Monday 09 November 2020
 
Jungle burned for agriculture in southern Mexico

कोई भी प्रजाति सबसे अधिक विलुप्त होने के खतरे में तब होती है जब उनके प्राकृतिक तौर पर रहने वाली जगहों को नुकसान होता है। दुनिया भर में प्रजातियों के आवास, उनकी भौगोलिक सीमाएं अतीत में किस तरह बदल गई और वे भविष्य के परिदृश्यों के तहत कैसे बदलेंगे, इसी को लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंड्रिया मणिका की अगुवाई में एक अध्ययन किया गया है।

इस नए अध्ययन में पाया गया है कि दुनिया भर के स्तनधारियों, पक्षियों और उभयचरों के प्राकृतिक तौर पर रहने वाले आवासों को औसतन 18 फीसदी का नुकसान हुआ है। यह नुकसान अगले 80 वर्षों में लगभग 23 फीसदी तक बढ़ सकता है।

दुनिया भर में मानव द्वारा कृषि उपयोग के लिए वन भूमि को बदला गया है। अध्ययन में सन 1700 से आज तक यहां रहने वाले लगभग 16,919 प्रजातियों के आवास अर्थात उनके रहने वाली सीमा/सरहद में आए बदलाव का विश्लेषण किया है। आंकड़ों का इस्तेमाल 16 अलग-अलग जलवायु और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्यों के तहत वर्ष 2100 तक भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाने के लिए भी किया गया। यह अध्ययन जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

प्रजातियों का विलुप्त होना इस बात पर निर्भर करता है कि प्रजाति कितनी खतरे में है। प्रभावी संरक्षण रणनीतियों को तैयार करने के लिए बेहतर समझ की आवश्यकता होती है। जिसमें अतीत में प्रजातियों के रहने वाली जगहों की सीमाएं कैसे बदल गई थीं और वे भविष्य में किस तरह बदलेंगी इसके बारे में पता लगाना आदि शामिल है।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के डॉ. रॉबर्ट बेयर ने कहा लगभग सभी जानी पहचानी पक्षियों, स्तनधारियों और उभयचरों का निवास स्थान मुख्य रूप से मनुष्यों द्वारा भूमि के उपयोग में बदलाव के कारण सिकुड़ रही है।

कुछ प्रजातियां दूसरों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं। यह चिंताजनक है कि 16 फीसदी प्रजातियों को अपनी अनुमानित प्राकृतिक, ऐतिहासिक सीमा से आधी से अधिक का नुकसान हो गया है। यह आंकड़ा सदी के अंत तक 26 फीसदी तक बढ़ सकता है।

प्रजातियों की भौगोलिक सीमाएं हाल ही में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक सिकुड़ गई हैं। लगभग 50 साल पहले तक, अधिकांश कृषि विकास यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हुआ। तब से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कृषि के लिए भूमि के बड़े क्षेत्रों को परिवर्तित कर दिया गया। दक्षिण पूर्व एशिया में तेल के लिए ताड़ के बागानों को लगाने के लिए वर्षावनों का सफाया कर दिया गया। इसी तरह दक्षिण अमेरिका में चारागाह के लिए भूमि में बदलाव किया गया।

जैसे-जैसे मानव ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाया, इन क्षेत्रों में प्रजातियां अधिक होने के कारण उन पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा।

बेयर ने कहा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुत सी प्रजातियां रहती है जिससे यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए आकर्षण का एक केंद्र होता है। यदि उष्णकटिबंधीय वन का एक हेक्टेयर हिस्सा कृषि भूमि में बदल दिया जाता है, तो बहुत अधिक प्रजातियों के लिए उनके घरों के बड़े हिस्से का नुकसान होता है।

परिणामों में अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रजातियों की भौगोलिक सीमाओं पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा के पैटर्न आवासों को महत्वपूर्ण रूप से बदल देंगे, उदाहरण के लिए- अध्ययनों ने अनुमान लगया है कि जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाए बिना, अमेज़ॅन के बड़े हिस्से चंदवा के वर्षावन से सवाना-जैसे मिक्स वुडलैंड और खुले घास के मैदान अगले 100 वर्षों में बदल सकते हैं।

बेयर ने कहा कि अमेज़ॅन में प्रजातियों नें अपने आप को एक उष्णकटिबंधीय वर्षावन में रहने के लिए ढाल लिया है। यदि जलवायु परिवर्तन इस पारिस्थितिकी तंत्र को बदलता है, तो उन प्रजातियों में से कई का जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा, या वे अपने आप को बचे हुए शेष वर्षावन के छोटे क्षेत्रों में धकेल देंगे। उन्होंने कहा हमने पाया कि कार्बन उत्सर्जन जितना अधिक होता है, उतनी ही अधिकांश प्रजातियों को उनके रहने वाली जगहों से हाथ धोना पड़ता है।

परिणाम बताते है कि दुनिया भर में कृषि भूमि के क्षेत्र को सीमित करने के उद्देश्य से नीतिगत उपाय करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए खाद्य उत्पादन को बढ़ाकर, मांस कम खाने की ओर आहार में बदलाव को प्रोत्साहित करना और जनसंख्या वृद्धि को स्थिर करना।

कृषि और शहरी भूमि के लिए प्राकृतिक वनस्पति में बदलाव, जलवायु परिवर्तन के कारण उपयुक्त निवास स्थान का परिवर्तन और सीमा, आकार में गिरावट के प्रमुख कारण हैं। ये दुनिया भर में स्थलीय जैव विविधता के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण खतरे हैं।

उन्होंने कहा जबकि हमारा अध्ययन प्रजातियों की सीमाओं के लिए कठोर परिणामों को निर्धारित करता है, यदि दुनिया भर में भूमि का उपयोग और जलवायु परिवर्तन को अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है, तो इसके परिणाम भयावह होंगे। इनको रोकने के लिए समय पर ठोस नीतिगत, कार्रवाई की आवश्यकता है।

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