जानिए क्यों सांभर फेस्टिवल पर लटकी एनजीटी की तलवार

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Wednesday 15 February 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

17 से 19 फरवरी, 2023 के बीच जयपुर में आयोजित होने वाले सांभर उत्सव से जुड़ा एक मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने आया है। यह मामला प्रवासी पक्षियों पर उत्सव के कथित प्रभावों और सांभर झील के प्राकृतिक आवास पर पड़ने वाले असर से जुड़ा है। मामला राजस्थान के जयपुर का है।

गौरतलब है कि डॉक्टर आबिद अली खान ने एनजीटी को दी अपनी अर्जी में कहा है कि सांभर उत्सव में पतंगबाजी, पैराग्लाइडिंग, मोटरसाइकिल अभियान जैसी गतिविधियां शामिल होंगी। ऐसे में ट्रिब्यूनल ने त्योहार के दौरान आयोजित की जाने वाली गतिविधियों का प्रवासी पक्षियों और झील के प्राकृतिक आवास पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच का निर्देश दिया है।

इस जांच के लिए कोर्ट ने राजस्थान के मुख्य सचिव से वेटलैंड अथॉरिटी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, राजस्थान जिला मजिस्ट्रेट और जयपुर में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया है। जानकारी मिली है कि इस उत्सव में लाउडस्पीकरों के उपयोग से इस क्षेत्र पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ेगा, जोकि एक रामसर स्थल भी है।

15 फरवरी, 2023 को दिए अपने इस आदेश में एनजीटी न कहा है कि यदि यह पाया जाता है कि प्रस्तावित स्थल पर होने वाला यह उत्सव पक्षियों या झील के प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचाएगा, तो इस उत्सव को किसी दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां ऐसी समस्या न उत्पन्न हो।"

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अरुण कुमार त्यागी की बेंच का कहना है कि इस मामले पर फैसला 16 फरवरी शाम 5 बजे तक राजस्थान सरकार की वेबसाइट पर डालने का निर्देश दिया है। 

10,000 वर्ग मीटर या उससे बड़े विकसित भूखंडों के लिए ओपन स्पेस एरिया अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने उस नियम को बरकरार रखा है, जिसमें बिल्डरों को उनके द्वारा विकसित भूखंड पर 10 फीसदी हिस्से को खुली जगह के रूप में मनोरंजक उद्देश्यों के लिए आरक्षित रखना अनिवार्य किया गया था। गौरतलब है कि यह नियम वहीं लागू होता है जहां भूखंड का विस्तार 10,000 वर्ग मीटर या उससे ज्यादा है। देखा जाए तो अपने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया के लिए डेवलपमेंट कंट्रोल रूल्स के नियम 19 को बरकरार रखा है।

इस नियम के अनुसार 10,000 वर्ग मीटर या उससे अधिक क्षेत्रफल वाली किसी भी विकासात्मक योजना के क्षेत्र का 10 फीसदी हिस्सा सांप्रदायिक और मनोरंजक उपयोग के लिए खुली जगह के रूप में आरक्षित किया जाना अनिवार्य है। इस तरह के खुले क्षेत्र को रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड के माध्यम से स्थानीय प्राधिकरण को मुफ्त में हस्तांतरित किया जाना है।

पूरा मामला विकसित भूखंडों में 'ओपन स्पेस रेगुलेशन एरिया' (ओएसआर) से जुड़ा है। इस मामले में न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति पमिदिघंतम श्री नरसिम्हा ने कहा है कि ओएसआर के दायरे में आने वाले क्षेत्रों को किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं बदला जा सकता है। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि ओएसआर के लिए किसी भी क्षेत्र का उपयोग डंपिंग यार्ड या ओएसआर के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि नियम 19 संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत अनुचित होने या संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है। फैसले में कहा गया है कि "डीसीआर का नियम 19 वैधानिक है।" इस प्रकार, चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी को खुली जगह के क्षेत्र को बनाए रखने का अधिकार होगा।

होटल निर्माण दो जिलों में पर्यावरण को कर रहा प्रभावित, एनजीटी ने मांगा जवाब

उदयपुर और राजसमंद में हो रहा एक होटल निर्माण वहां की वनस्पति और जैवविविधता को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में इसका संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने प्रतिवादियों से जवाब मांगा है।

मामला राजस्थान के उदयपुर में गांव राया और राजसमंद के घाटी का मठ गांव से जुड़ा है। मामले में न्यायमूर्ति शिव कुमार सिंह की पीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है और उन्हें छह सप्ताह के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च 2023 को होगी।

गौरतलब है कि इस मामले में भगवत सिंह देवड़ा ने एनजीटी को दिए अपने आवेदन में कहा था कि होटल का निर्माण ईआईए अधिसूचना, 2006 के अनुसार आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त किए बिना और स्थापित करने की सहमति लिए बिना ही किया जा रहा है।

इस क्षेत्र में मलबे को फेंका गया है जो नाले के प्राकृतिक प्रवाह को रोक रहा है। साथ ही बिना आवश्यक अनुमति के बांध (एनीकट) की ऊंचाई को भी बढ़ा दिया गया है, जिससे गांधार सागर झील की आपूर्ति और पुनर्भरण प्रभावित हो सकता है। आवेदक ने यह भी जानकारी दी है कि नाले के जलग्रहण क्षेत्र पर निर्माण भी किया गया है।

Subscribe to our daily hindi newsletter