लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने में मदद कर सकते हैं तकनीक और अर्थनीति, लेकिन कैसे?

शोध के मुताबिक, लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के लिए तकनीक से आंकड़ों को जोड़ने, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने, लोगों को प्रकृति से जोड़ने और लोगों को लोगों से जोड़ने की आवश्यकता है।

By Dayanidhi

On: Tuesday 26 December 2023
 
फोटो साभार : जर्नल साइंस, गेरिट वीएन/एनपीएल/माइंडन पिक्चर्स

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के दो शोधकर्ताओं ने इस बात का विश्लेषण किया है कि लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (ईएसए) कैसे विकसित हुआ है और आगे इसका भविष्य क्या हो सकता है। जबकि, 50 साल पहले दिसंबर 1973 में लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (ईएसए) लागू होने के बाद से दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है।

ओहियो राज्य के ट्रांसलेशनल डेटा एनालिटिक्स इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर तान्या बर्जर-वुल्फ की अगुवाई वाली टीम ने टिकाऊ, भरोसेमंद, मानव-प्रौद्योगिकी साझेदारी पर एक लेख के द्वारा जानकारी दी। वहीं, विश्वविद्यालय के कृषि, पर्यावरण और विकास अर्थशास्त्र विभाग की प्रोफेसर एमी एंडो ने लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने में प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अर्थशास्त्र का उपयोग विषय पर लेख के माध्यम से विचार साझा किए।

जर्नल साइंस में प्रकाशित शोध के हवाले से प्रोफेसर बर्जर-वुल्फ और उनके सहयोगियों ने लिखा, हम भारी संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने के बीच में हैं, बिना यह जाने कि हम क्या और कितनी तेजी से इन्हें खो रहे हैं, लेकिन तकनीक इस समस्या से निपटने में मदद कर सकती है।

उदाहरण के लिए, वे जानवरों की प्रजातियों का सर्वेक्षण करने वाले कैमरा ट्रैप और स्मार्टफोन ऐप जैसे उपकरणों के महत्व को उजागर करते हैं जो सिटीजन साइंटिस्ट को कीटों की गिनती करने, पक्षियों के गीतों की पहचान करने और पौधों के अवलोकन करने की रिपोर्ट साझा करने में मदद करते हैं।

प्रोफेसर बर्जर-वुल्फ ने कहा कि नई तकनीक ने वैज्ञानिकों को पहली बार बड़ी संख्या में जानवरों और पौधों की निगरानी करने में मदद की है। वहीं इसको लेकर एक चुनौती भी सामने आई है जो कि आंकड़ों के इन नए स्रोतों से सारी जानकारी निकालने के नए तरीकों को ढूंढना है।

उन्होंने कहा, इन सारे आंकड़ों के होते हुए भी, हम अभी भी दुनिया में जैव विविधता के केवल एक छोटे से हिस्से की निगरानी कर रहे हैं। उस जानकारी के बिना, हम नहीं जानते कि हमारे पास क्या है, विभिन्न प्रजातियां कैसे काम कर रही हैं और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए हमारी नीतियां काम कर भी रही हैं या नहीं।

प्रोफेसर बर्जर-वुल्फ ने कहा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह सुनिश्चित करना है कि इस प्रक्रिया में इंसानों को शामिल किया जाए। उन्होंने कहा, तकनीक से आंकड़ों को जोड़ने, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने, लोगों को प्रकृति से जोड़ने और लोगों को लोगों से जोड़ने की आवश्यकता है।

शोध के हवाले से प्रोफेसर बर्जर-वुल्फ ने कहा हम लोगों और प्रकृति के बीच संबंध को खत्म नहीं करना चाहते, हम इसे मजबूत करना चाहते हैं। हम दुनिया की जैव विविधता को बचाने के लिए केवल तकनीक पर ही भरोसा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा मानव, तकनीक और एआई के बीच एक मजबूत साझेदारी होनी चाहिए।

प्रोफेसर एंडो ने कहा, लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने की लड़ाई में अर्थशास्त्र को एक और भागीदार होना चाहिए। उन्होंने कहा, अक्सर यह माना जाता है कि लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करना जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी के अंतर्गत आता है। लेकिन अर्थशास्त्र के विभिन्न उपकरण यह सुनिश्चित करने में बहुत सहायक हैं कि लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम को लागू करने के लिए हम जो काम करते हैं वह सफल है। यह हमेशा लोगों के लिए स्पष्ट नहीं होता है।

उदाहरण के लिए, जैव-आर्थिक शोध अर्थशास्त्रियों और जीव विज्ञानियों के बीच एक बहु-विषयक प्रयास है जो यह देखने के लिए मिलकर काम करता है कि मानव व्यवहार पारिस्थितिक प्रक्रियाओं और प्रणालियों के साथ कैसे संपर्क करता है।

उन्होंने कहा, हमें विभिन्न अवलोकनों को ध्यान में रखना होगा। लोग कार्रवाई करते हैं और इससे पारिस्थितिकी तंत्र बदल जाता है और लोग क्या करते हैं की वह बदल जाता है। हमें उन प्रभावों को जानने की जरूरत है। लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए नए तरीके हो सकते हैं, जैसे निवास स्थान में बदलाव।

उदाहरण के लिए, प्रवास के दौरान पशुपालक बाड़ को अस्थायी रूप से हटा सकते हैं ताकि एल्क या गोजन स्वतंत्र रूप से घूम सकें। यहां बताते चलें कि एल्क या गोजन दुनिया में हिरण परिवार में पाई जाने वाली सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक हैं।

तटीय पक्षी प्रवास के दौरान चावल के खेतों में इनकी अस्थायी रूप से बाढ़ जैसी आ सकती है ताकि उन्हें आराम करने और अपनी यात्रा के दौरान भोजन करने की जगह मिल सके।

प्रोफेसर एंडो के मुताबिक, हम समाज को उनके फायदों को बढ़ाने के लिए अस्थायी कार्यों के समय, स्थान और सीमा को अनुकूलित करने के लिए अर्थशास्त्र का सहारा ले सकते हैं।

एक और तरीका जिससे अर्थशास्त्र मदद कर सकता है वह ऐसी नीतियां विकसित करना है जो प्रजातियों को इतना खतरा होने से पहले ही सुरक्षित कर दें कि उन्हें लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (ईएसए) सुरक्षा की जरूरत पड़े। एक सामान्य मुद्दा यह है कि खतरे में पड़ी प्रजातियों के आवास की रक्षा के लिए कई भू-स्वामियों को मिलकर काम करने की जरूरत पड़ेगी।

लेकिन अक्सर, अगर कुछ जमीन मालिक किसी प्रजाति की रक्षा के लिए कार्रवाई करते हैं, तो अन्य जमीन मालिक सोचेंगे कि उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

प्रोफेसर एंडो ने कहा, अर्थशास्त्री यह समझने के लिए काम कर रहे हैं कि हम भूमि मालिकों के साथ कैसे तालमेल बैठा सकते हैं जहां हमें कठोर भूमि उपयोग नियमों को लागू न करना पड़े और जीवों के निवास स्थान की रक्षा भी हो जाए। यह एक बहुत ही आशाजनक रणनीति है जो प्रजातियों की रक्षा कर सकती है और ऐसा करने में लोगों की लागत भी कम कर सकती है।

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