महाराष्ट्र की मुठा नदी के किनारे से 200 से अधिक पौधों की प्रजातियां हुई गायब: अध्ययन

साल 1958 में किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में, विट्ठलवाड़ी से यरवदा के बीच 12 किमी नदी के हिस्से पर 400 से अधिक पौधों की प्रजातियां दर्ज की गई थीं।

By Dayanidhi

On: Friday 23 February 2024
 
शोधकर्ताओं को मुठा नदी के किनारे 68 परिवारों से संबंधित 243 फूल वाले पौधों की प्रजातियां मिलीं। विकिमीडिया कॉमन्स, वीरश्री

बढ़ते शहरीकरण का जैव विविधता पर भारी असर देखा जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शहरीकरण न केवल शहर और पानी के परिदृश्य को बदलता है बल्कि पर्यावरणीय गिरावट के लिए भी जिम्मेवार है।

मुठा नदी महाराष्ट्र राज्य के पुणे से लगभग 45 किमी पश्चिम में पश्चिमी घाट में वेगारे नामक गांव से निकलती है। लगातार बढ़ते शहरीकरण ने नदी के किनारों की वनस्पति और पारिस्थितिकी पर बुरा प्रभाव डाला है। अध्ययन के मुताबिक, इसी के कारण यह वर्तमान अध्ययन मुठा नदी के किनारे पौधों की विविधता का दस्तावेजीकरण करने और मौजूदा विविधता को संरक्षित करने और बढ़ाने के रास्ते खोजने के लिए आयोजित किया गया।

शोधकर्ताओं के द्वारा खडकवासला और बंड गार्डन के बीच मुठा नदी के किनारे के 22 किलोमीटर के क्षेत्र में पौधों की विविधता का सर्वेक्षण किया। यहां शोधकर्ताओं को 68 परिवारों से संबंधित 243 फूल वाले पौधों की प्रजातियां मिलीं। हालांकि, वर्ष 1958 में किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में, विट्ठलवाड़ी से यरवदा के बीच 12 किमी नदी के हिस्से पर कम से कम 400 पौधों की प्रजातियां दर्ज की गई थीं।

जर्नल ऑफ इकोलॉजिकल सोसाइटी में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि पिछले 66 सालों में, मुठा नदी के किनारे पर 200 से अधिक पौधों की प्रजातियां गायब हो गई हैं और उनमें से अधिकांश स्वदेशी पौधे थे।

मुठा नदी तट पर पौधों की जैव विविधता को लेकर किए गए अध्ययन में नदी के चैनलाइजेशन के कारण दलदली भूमि में उल्लेखनीय कमी पर भी प्रकाश डाला गया, जिसके कारण इस इलाके में पौधों की जैव विविधता पर असर पड़ा।

प्रजातियों की अधिकतम संख्या विट्ठलवाड़ी (100 प्रजातियां) में दर्ज की गई, उसके बाद खडकवासला (93 प्रजातियां) दर्ज की गई। सबसे कम प्रजाति समृद्धि संभाजी उद्यान के पीछे के इलाके (60 प्रजातियां) में दर्ज की गई, जो सूक्ष्म आवास विविधता वाला एक अत्यधिक अशांत क्षेत्र है।

शोधकर्ता ने कहा, लगातार बढ़ता शहरीकरण जैव विविधता को बुरी तरह से प्रभावित करने वाले एक प्रमुख कारण के रूप में पहचाना गया है। शहरीकरण न केवल शहर और जल परिदृश्य को बदलता है बल्कि पर्यावरणीय गिरावट के लिए भी जिम्मेवार है।

शोधकर्ता ने आगे कहा, सूक्ष्म आवास का नुकसान, विखंडन और गिरावट, आवास परिवर्तन और सिकुड़न, कचरे की डंपिंग और सीवेज प्रदूषण इस शहरी पर्यावरणीय गिरावट के सामान्य संकेतक हैं। पुणे शहर ने हाल के दिनों में अपनी नदियों से संबंधित कई बदलाव देखे हैं।

इसमें बाढ़ क्षेत्र में निर्माण, नदियों का चैनलीकरण, मलबे का डंपिंग और अनुपचारित सीवेज का बहना शामिल है, जिसने प्राकृतिक नदी जल प्रवाह को गंभीर रूप से प्रभावित किया और बड़े पैमाने पर सूक्ष्म आवासों को नष्ट या परिवर्तित कर दिया। इस प्रकार, शहरीकरण से पहले और अब फूलों की विविधता के बीच बदलावों की तुलना करने का प्रयास किया गया।

शोधकर्ताओं ने बताया उन्हें आठ स्थानीय प्रजातियों का पता चला, जिनमें एसएसई जो भारत के प्रायद्वीप के लिए स्थानीय है, रेडर्मचेरा जाइलोकार्पा जो पूर्वी और पश्चिमी घाट के लिए स्थानिय है, एरीओकौलॉन डेल्जेल्ली जो पश्चिमी घाट के लिए स्थानीय है, फिकस अर्नोटियाना वेर कोर्टालेंसिस जो भारत के प्रायद्वीप लिए स्थानीय है, सिज़ीगियम सैलिसिफोलियम जो पश्चिमी घाटों के लिए स्थानीय हैं। मधुका लॉन्गीफोलिया वेर.लैटिफोलिया जो भारत के लिए स्थानीय है, टिनोस्प्रा कॉर्डिफोलिया वेर कंजेस्टा जो मध्य भारत के लिए स्थानीय है।

शोधकर्ताओं ने बताया उन्हें अध्ययन के दौरान एरीओकॉलोन डेल्जेली भी मिली, एक ऐसी प्रजाति जिसे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की लाल सूची के अनुसार लुप्तप्राय माना गया है। यह खडकवासला वाले इलाके से दर्ज किया गया था।

अध्ययन के मुताबिक, 1958 में, प्रख्यात वनस्पतिशास्त्री वीडी वर्तक ने विट्ठलवाड़ी और यरवदा के बीच पौधों की विविधता का अध्ययन किया। उन्होंने 400 पौधों की प्रजातियों को दर्ज किया।

शोधकर्ताओं ने बताया कि इस अध्ययन से तुलना करने पर नाजाडेसी, मोलुगिनेसी, कैंपानुलेसी, जेंटियानेसी, निक्टागिनेसी, चेनोपोडियासी, ऑर्किडेसी और अमेरीलिडेसी जैसे परिवारों से संबंधित कई पौधों की प्रजातियों के गायब होने का पता चला।

कुछ प्रजातियां जो पहले दुर्लभ थीं, उन्हें इस अध्ययन के दौरान बहुत सामान्य रूप से देखा गया। इसमें इचोर्निया क्रेसिप्स (जलपार्नी), पार्थेनियम हिस्टियोफोरस (कांग्रेस), ऐमारैंथस स्पिनोसस, पिस्टिया स्ट्रैटियोट्स, कमेलिना हैस्करली, अल्टरनेंथरा सेसिलिस, अल्टरनेंथरा फिलोक्सेरोइड्स, लैंटाना कैमारा, इपोमिया कार्निया, ल्यूकेना ल्यूकोसेफला (सुबाभुल) आदि जैसी आक्रामक प्रजातियां शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने मुथा नदी पर पौधों की विविधता बढ़ाने के लिए सुझाव दिए हैं -

पेड़ों को काटे जाने, कचरा डंपिंग और निर्माण संबंधी मलबे की डंपिंग जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा प्रदान करना और मानवीय हस्तक्षेप को कम करना।

प्राकृतिक तौर पर पुनर्जनन को सुविधाजनक बनाने और सूक्ष्म आवास विविधता को बनाए रखने के लिए नदी तट की पारिस्थितिकी योजना।

नदी के किनारे सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना करना।

सीमेंट सामग्री के उपयोग से बचना क्योंकि यह तटवर्ती सूक्ष्म आवासों को नष्ट कर देता है। सबसे टिकाऊ देशी पेड़ों, घासों और आर्द्रभूमि पौधों की प्रजातियों जैसी वनस्पति लगाना।

सीमेंट की दीवारों को हटाना और घास के मैदान, आर्द्रभूमि, झाड़ियों या देशी पेड़ों से युक्त बफर स्ट्रिप्स विकसित करना फायदेमंद हो सकता है।

ऊपरी वन क्षेत्र की रक्षा से निचले इलाकों में वनस्पति के संरक्षण में मदद मिलेगी। जैसे खडकवासला और नांदेड़ शहर क्षेत्र में कुछ प्राकृतिक वनस्पति क्षेत्र अभी भी मौजूद हैं।

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