वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन से शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में मिलेगी मदद: सरकार

केंद्र सरकार का लक्ष्य वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव करके शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है

By Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

On: Friday 21 July 2023
 

केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने और उसमें प्रस्तावना को जोड़ने के लिए शुद्ध शून्य उत्सर्जन को आधार बनाया है। केंद्र सरकार के अनुसार उसका लक्ष्य वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव करके शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है। गौरतलब है कि इस वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद के मौजूदा माॅनसून सत्र के दौरान चर्चा के लिए पेश किया जाना है।

डाउन टू अर्थ (डीटीई) को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जो रिपोर्ट मिली है, उसके मुताबिक यदि भारत को 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है, तो उसके लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इस अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता है। जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में कार्बन स्टॉक को बनाए रखने या बढ़ाने के दौरान जंगलों के संतुलित और सतत विकास को भी सुनिश्चित करने के लिए भी इस संशोधन का प्रस्ताव दिया है। 

समिति ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के लक्ष्यों के तहत 2030 तक 250 से 300 करोड़ टन के बराबर कार्बन सिंक बनाने की आवश्यकता का भी हवाला दिया है। साथ ही जीपीसी ने देश में भू क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से में वन क्षेत्र और वृक्षों के आवरण को बढ़ाने के लक्ष्य पर जोर दिया है।

वहीं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) का इस बारे में कहना है कि देश के उभरते पारिस्थितिक, रणनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों के कारण इस बिल में बदलाव की जरूरत है। इसका उद्देश्य जंगलों के संरक्षण, बहाली, प्रतिपूरक तंत्र, शमन उपायों और अन्य उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाना है।

समिति ने स्थिति की समीक्षा करने के बाद यह प्रस्ताव दिया है कि यदि प्रस्तावना में दिए लक्ष्य तय वर्ष तक हासिल नहीं होते हैं, तो अधिनियम में फिर से संशोधन किया जाना चाहिए। इसी तरह, भले ही लक्ष्य निर्धारित वर्ष से पहले हासिल हो जाएं, फिर भी संशोधन की जरूरत होगी। समिति ने सुझाव दिया है कि प्रस्तावना में लक्ष्य के वर्ष का उल्लेख करना आवश्यक नहीं है।

हालांकि, सुझावों पर आपत्ति जताते हुए हितधारकों ने प्रस्तावना को हटाने का सुझाव दिया है। उनका मानना है कि प्रस्तावना अनावश्यक है, क्योंकि अधिनियम का शीर्षक अपने आप में स्पष्ट और स्व-व्याख्यात्मक है। ऐसे में उन्होंने प्रस्तावना को हटाने की सिफारिश की है, क्योंकि यह एक ऐसा खंड है जो अधिनियमन के कारणों की व्याख्या करता है।

हालांकि, सुझावों पर आपत्ति जताते हुए हितधारकों ने प्रस्तावना को हटाने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि प्रस्तावना शुरुआत में अधिनियमन के कारणों की व्याख्या करने वाला एक खंड है। उनका तर्क है कि वर्तमान अधिनियम में प्रस्तावना नहीं है क्योंकि अधिनियम का शीर्षक अपने आप में स्पष्ट और स्व-व्याख्यात्मक है।

प्रस्तावित 'प्रस्तावना' को हटाने की मांग करते हितधारकों ने बताया, "प्रस्तावित संशोधन वन संरक्षण अधिनियम के प्राथमिक उद्देश्यों के खिलाफ है। इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य “वनों का संरक्षण करना” और "आगे वनों की कटाई" को रोकना है।

उनका तर्क है कि सुझाए गए संशोधन अधिनियम में मौजूदा प्रावधानों को कमजोर कर देंगे। साथ ही यह बदलाव वृक्षारोपण के बहाने जंगलों के बड़े हिस्से का निजीकरण करने की अनुमति देकर उसका दायरा सीमित कर देंगे। उनके मुताबिक मौजूदा कानून में बदलाव की जरूरत नहीं है, बल्कि इसके उद्देश्यों को हासिल करने के लिए इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।

हालांकि केंद्र सरकार ने देखा है कि लोग, संगठन और अधिकारी गैर-वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण करने से झिझकते हैं, क्योंकि इस वृक्षारोपण को व्याख्या में गलतियों और वृक्षारोपण की प्रवृत्ति को कम करने के लिए वनों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनकी इस गलतफहमी को दूर करने के साथ शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने और पेड़ों के आवरण को बढ़ाने के लिए, सरकार ने इस संशोधन का प्रस्ताव किया है।

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