मांगी-तुंगी में मूर्ति स्थापना के लिए किया गया पर्यावरण का विनाश

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 02 December 2022
 

जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ की मूर्ति स्थापना के लिए काटी गई चट्टानों के मलबे और उसकी डंपिंग से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इस प्रतिमा को महाराष्ट्र, नासिक के तहराबाद की मांगी-तुंगी पहाड़ियों में उकेरा गया है। इस बारे में जिला स्तरीय समिति द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र के अनुसार 7.310 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित है। इसके अलावा, मलबे को हटाना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह ढलान पर फेंका गया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में 30 नवंबर, 2022 को दायर संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि, “अगर इस क्षेत्र से उस मलबे को हटाया जाता है, तो वो निकटवर्ती वन क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जिससे आगे विनाश की संभावना है।“

पता चला है कि इस 7.310 हेक्टेयर क्षेत्र का उपयोग मलबा डंप करने के लिए किया गया है। ऐसे में इस क्षेत्र का एनपीवी प्रयोक्ता एजेंसी से वसूल किया जाना चाहिए। वहां ढलानों पर जंगल में ढीला मलबा पड़ा है, जिसकी वजह से बारिश के मौसम में, ढीले बोल्डर नीचे की ओर लुढ़कते हैं। इससे आसपास के वन क्षेत्र के प्रभावित होने की संभावना है।

ऐसे में समिति ने मलबा क्षेत्र के निचले हिस्से में गैबियन संरचनाओं का निर्माण करके बोल्डर को रोकने का सुझाव दिया है।  वन क्षेत्र पर पड़े बोल्डर के कारण उस क्षेत्र के मौजूदा वनस्पतियों का भी विनाश हो रहा है। साथ ही समिति ने सिफारिश की है कि वन विभाग को इस 7.310 हेक्टेयर क्षेत्र के बराबर हिस्से में पेड़ लगाने चाहिए और वन विभाग के मौजूदा मानदंडों के अनुसार इस वृक्षारोपण की लागत उपयोगकर्ता एजेंसी से वसूल की जानी चाहिए।

अमजेर में दूषित हो रही आनासागर झील, रिपोर्ट में आया सामने

जानकारी मिली है कि अजमेर की आवासीय कॉलोनियों से पैदा हो रहे दूषित जल के उपचार के लिए 2014 में 13 एमएलडी का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया था। सितंबर 2022 में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों द्वारा किए दौरे में यह देखा गया कि वहां 11 में से केवल दो नाले आनासागर झील पर स्थित एसटीपी से जुड़े हैं। दूसरी ओर, नौ नाले अनासागर झील में बिना किसी उपचार के सीधे अपशिष्ट जल को डाल रहे हैं। यह जानकारी 1 दिसंबर, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दायर रिपोर्ट में सामने आई है।

गौरतलब है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 30 अप्रैल, 2019 को एनजीटी के आदेश पर अजमेर नगर निगम को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को बेहतर बनाने के लिए कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

वहीं अजमेर नगर निगम के अधिकारियों ने बताया कि 10 फीसदी घरेलू सीवर कनेक्शन लंबित हैं, जिनका काम मार्च 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद नौ नालों की मदद से पैदा हो रहे अपशिष्ट जल का निर्वहन बंद कर दिया जाएगा।

पर्यावरण मानदंडों का पालन कर रहा है शादी लाल इंटरप्राइज

शादी लाल इंटरप्राइजेज ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सूचित किया है कि मियावाकी प्रोजेक्ट के मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशों के अनुसार अलग-अलग प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाए गए हैं। मामला उत्तर प्रदेश के शामली का है। जहां शादी लाल इंटरप्राइजेज चीनी उत्पादन में लगा हुआ है।

जानकारी दी गई है कि डिस्टिलरी यूनिट के एनारोबिक रिएक्टर द्वारा उत्पन्न बायोगैस के भंडारण और जलने के संबंध में  कंपनी ने फ्लेयर सिस्टम के माध्यम से उत्पन्न बायोगैस को स्टोर करने और जलाने की व्यवस्था की है। साथ ही फ्लाई ऐश का डंपिंग यार्ड चारदीवारी के भीतर मौजूद है, जिसकी ऊंचाई लगभग 12 फीट है। वहीं डिस्टिलरी यूनिट की चिमनी 72 मीटर ऊंची है जो यूपीपीसीबी के मानदंडों के अनुरूप है।

बताया गया है कि उद्योग से डंपिंग यार्ड तक फ्लाई ऐश को ले जाने के दौरान, सभी ट्रॉलियों को अल्काथीन शीट या तिरपाल से पूरी तरह से ढक दिया जाता है। इस तरह परिवहन के दौरान इसके फैलने की कोई संभावना नहीं रहती है। फ्लाई ऐश को डंप करने के बाद, राख को हवा में फैलने से रोकने के लिए डंपिंग यार्ड में पानी का छिड़काव किया जाता है।

जानकारी मिली है कि स्थानीय किसानों और जिन अन्य व्यक्तियों को जमीन को बराबर करने, गड्ढों को भरने, सड़क निर्माण के लिए राख की जरूरत होती है, वो सर शादी लाल इंटरप्राइजेज द्वारा निर्देशित शर्तों का पालन करने के बाद आवेदन जमा करके डंपिंग यार्ड से फ्लाई ऐश ले जाते हैं।

 

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