फायर लाइन को बनाए रखने के लिए वन क्षेत्रों में हरे पेड़ों को काट सकती है सरकार

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 19 May 2023
 

उत्तराखंड सरकार वन क्षेत्रों में फायर लाइन को बनाए रखने के लिए हरे पेड़ों को काट सकती है। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई, 2023 को दिया है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पर्यावरण मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) द्वारा अनुमोदित कार्य योजनाओं के अनुसार पेड़ों की काट छांट और अन्य सांस्कृतिक कार्यों सहित सिल्वीकल्चर को करने की अनुमति दे दी है।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय से छह सप्ताह में जवाब मांगा है। यह जंगल में आग की रोकथाम और उसके बेहतर प्रबंधन से जुड़ा है। कोर्ट ने वन अनुसंधान के लिए भी फण्ड उपलब्ध कराए जाने की बात कही है जिसमें वन प्रबंधन के सभी विषय शामिल होंगे।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता के अनुसार कार्य योजनाओं की तैयारी के लिए प्रतिपूरक वनीकरण कोष नियम 2018 के नियम 5 और 6 के तहत राज्य ने केंद्र से आवश्यक धनराशि देने का अनुरोध किया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने बीएस VI उत्सर्जन मानकों का पालन करने वाले डीजल वाहनों के पंजीकरण को दी मंजूरी

सर्वोच्च न्यायालय ने 15 मई, 2023 को बीएस VI उत्सर्जन मानकों का पालन करने वाले डीजल वाहनों के पंजीकरण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने यह मंजूरी सात से ज्यादा लोगों की क्षमता वाली कोचों और बसों को दी है जिनका इस्तेमाल जी-20 शिखर सम्मलेन के लिए किया जाएगा।

अदालत को सूचित किया गया है कि इन वाहनों के पंजीकरण की आवश्यकता में कोई बाधा नहीं है क्योंकि एनजीटी द्वारा पूर्व में दिए निर्देश बीएस VI वाहनों से संबंधित नहीं थे।

पुरी के बलियापांडा डंपिंग एरिया में जलाया जा रहा है कचरा, एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

पुरी के बलियापांडा डंपिंग एरिया में कचरे को जलाने की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 15 मई 2023 को मामले की जांच और अधिकारियों को रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है। मामला ओडिशा में पुरी का है।

गौरतलब है कि अपनी शिकायत में आवेदक चिन्मय दास ने कचरे को जलाने से रोकने और प्लास्टिक के साथ पॉलीथीन के उचित निपटान और पुनर्चक्रण के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए दिशा-निर्देश मांगे थे।

आवेदन में आरोप लगाया है कि पुरी नगरपालिका के क्षेत्राधिकार में एक डंपिंग क्षेत्र है, जिसे बलियापांडा डंपिंग क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जो पुरी समुद्र तट से करीब 50 से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। अदालत को जानकारी दी गई है कि इस डंपिंग क्षेत्र का उपयोग मैटेरियल रिकवरी सुविधा के रूप में किया जाता है और वहां करीब नौ सूक्ष्म खाद केंद्र हैं।

यह भी कहा गया है कि पुरी शहर के कचरे की एक बड़ी मात्रा इस भूमि पर खाद के रूप में उपयोग करने के लिए डाली जाती है। हालांकि इसके बावजूद कचरे को जलाया जा रहा है, जिससे बालीसाही, गौरबतसाही, स्वर्गद्वार और बलियापांडा के आस-पास के इलाके पूरी तरह से दूषित हो रहे हैं।

टिकरी रेंज में 98.5 प्रतिशत सफल रहा वृक्षारोपण

हितधारकों के अनुसार उत्तर प्रदेश वन विभाग टिकरी रेंज में 2022 के दौरान लगाए पौधों की रक्षा के लिए अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहा है। मामला उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का है। जनप्रतिनिधियों का विचार था कि सामुदायिक एवं निजी क्षेत्रों में बांस, आंवला, कैथल , अमरूद और आम के जैसे उपयोगी एवं फलदार पौधे लगाने चाहिए।

यह बातें एनजीटी को सौंपी गई संयुक्त समिति की रिपोर्ट में कही गई हैं। गौरतलब है कि कोर्ट ने संयुक्त समिति को टीकरी रेंज से गायब हुए पौधों पर लाखों खर्च किए जाने की मीडिया रिपोर्ट पर गौर करने का निर्देश दिया था।

गोंडा के जिला वन अधिकारी का कहना है कि वृक्षारोपण 98.5 फीसदी तक सफल रहा है। ऐसे में मीडिया रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। एनजीटी के आदेश पर गठित संयुक्त समिति ने कहा है कि टिकरी रेंज उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन के 7416.87 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है।

समिति ने उन सभी 48 स्थानों के रिकॉर्ड का अध्ययन किया है जहां 2022 में बारिश के मौसम में पौधे लगाए थे। साथ ही समिति ने वृक्षारोपण के क्षेत्र में गड्ढे खोदने, वृक्षारोपण, निराई और सिंचाई आदि के परियोजना अनुमान पर चर्चा की है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिन क्षेत्रों में वृक्षारोपण किया गया है वो साल के पेड़ों और अन्य सम्बंधित प्रजातियों से ढंके थे। 

हालांकि जहां पेड़ नहीं थे वहां मुख्य रूप से सागौन के पेड़ लगाए गए हैं। साथ ही जामुन, करंज, इमली और आसन जैसी अन्य प्रजातियों को रोपा गया है। जानकारी मिली है कि बारिश के मौसम में लगाए पौधों में से 90 फीसदी जीवित हैं। जो निर्धारित मानकों के अनुरूप ही है। इस मामले में संयुक्त समिति ने हितधारकों के साथ चर्चा की है और एनजीटी को उसके बारे में जानकर दी है।

समिति ने पाया कि है कि अधिकांश प्रतिनिधि स्थानीय निकायों, पंचायतों से जुड़े थे और अपने क्षेत्र में किए गए वृक्षारोपण के बारे में जानते थे। साथ ही उगाए जाने के प्रारंभिक वर्ष में वृक्षारोपण अच्छी गुणवत्ता के हैं और वो भविष्य में फायदेमंद होगा। इतना ही नहीं वन विभाग द्वारा किए गए सभी वृक्षारोपण में सागौन की प्रधानता है।

पता चला है कि दशकों से जंगलों के अंदर आवारा मवेशियों मौजूद हैं। इन्हें ग्रामीणों ने 'वन गैया' का नाम दिया है। ग्रामीणों ने समिति को बताया कि वन गैया का व्यवहार सामान्य मवेशियों से अलग है। वे अधिक आक्रामक हैं, क्योंकि वो लोगों के संपर्क में कम आते हैं।

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