डाउन टू अर्थ खास: बिहार से विस्थापित मुंडा जनजाति के 42 परिवारों ने ओडिशा में बसाया एक जैविक गांव

साल 1980 में मुंडा जनजाति के 42 परिवारों का एक समूह बिहार से विस्थापित हो गया था, जिसने ओडिशा में शरण ली और अब गांव की दशा बदल दी

By Priya Ranjan Sahu

On: Wednesday 06 March 2024
 
ओडिशा के रंताल गांव के 42 परिवारों की किस्मत 2018 में सामूहिक रूप से जैविक खेती में स्थानांतरित होने के बाद बदल गई (फोटो: प्रिय रंजन साहू)

ओडिशा के संबलपुर जिले के जुजुमुरा जंगल के बफर क्षेत्र में स्थित रंताल गांव के 70 वर्षीय दासा बारला कहते हैं, “1980 में जब बिहार सरकार ने खनन और विकास परियोजनाओं के लिए हमारे जंगलों का अधिग्रहण कर लिया तब हमें अपने परिवारों के साथ पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा और हमने ओडिशा के खेतों में मजदूरी का काम शुरू किया। आज, हम एक संपन्न जैविक गांव हैं।”

झारखंड (2000 में बिहार से अलग होकर बना) की मुंडा जनजाति से आनेवाले रंताल के 42 परिवार अब एक सुरम्य वातावरण में रहते हैं। चारों ओर हरियाली और साफ-सुथरी सड़कों के अलावा कुएं, 4 जल संचयन संरचनाएं और 2 सौर ऊर्जा से संचालित पेयजल आपूर्ति प्रणालियां भी हैं।

हर घर में फलों के पेड़ों वाला एक किचन गार्डन होता है। यहां के निवासी जैविक खेती, बकरी पालन और मुर्गी पालन करते हैं। रेजिना कंडुलना कहती हैं, “4 दशक पहले जब हम रंताल आए थे उस वक्त हम यह सोच भी नहीं सकते थे।” वह कहती हैं कि 1980 के दशक में जुजुमुरा जंगल में पीने के पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना रहना आसान नहीं था। रेजिना बताती हैं, “पड़ोसी गांवों में किसानों के खेतों में मजदूरी के अलावा, हमने बारिश के मौसम में जंगल के छोटे-छोटे हिस्सों में बाजरा और सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिससे हमारे जीवन यापन में मदद हुई।”

वह बताती हैं कि पीने का पानी इकट्ठा करने के लिए उन्हें हर दिन 3 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती थी। परिवर्तन की शुरुआत 2009 में हुई, जब निवासियों ने पास की कृषि भूमि पर भूमि अधिकार का दावा करने के लिए जिला प्रशासन से संपर्क किया। उनकी याचिका शुरू में प्रशासनिक चक्रव्यूह में गुम हो गई। गांव के एक बुजुर्ग निवासी जेम्स कंडुलना कहते हैं, “ हमारा उद्देश्य खेतिहर मजदूर से किसान बनकर अपनी किस्मत बदलना था जिसके लिए हमें जमीन के कानूनी स्वामित्व की आवश्यकता थी क्योंकि सरकारी कर्मचारी अक्सर हमारे खेतों को अवैध बता हमें गिरफ्तार कर लेते थे।”

2012 में रंताल के निवासियों ने ओडिशा स्थित गैर-लाभकारी संस्था पतंग की मदद से अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (2006 जिसे आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम के रूप में जाना जाता है) के तहत व्यक्तिगत भूमि अधिकारों के लिए आवेदन किया। 4 साल के लंबे संघर्ष के बाद 2016 में सभी परिवारों को उनके घरों के अलावा लगभग दो हेक्टेयर भूमि पर खेती करने का अधिकार भी मिल गया।

गांव की प्रमिला टप्पो कहती हैं, “हालांकि हम घरेलू उपयोग के लिए बिना किसी कीटनाशक के पारंपरिक रूप से दालें और सब्जियां उगा रहे थे, लेकिन धान के बीजों के लिए हमने राज्य सरकार से मदद ली क्योंकि धान की खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती थी।”

2018 में ग्रामीणों ने पूरी तरह से जैविक खेती करने का फैसला किया। उन्होंने दो चरणों पर बदलाव किए, पतंग से जैविक खेती का प्रशिक्षण लेना और जैविक खेती का समर्थन करने वाली सामान्य संरचनाएं बनाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उपयोग करना। टप्पो कहती हैं, “प्रशिक्षण के दौरान, हमने सीखा कि नीम, गोमूत्र और गोबर का उपयोग करके जैविक कीटनाशक कैसे तैयार किए जाते हैं।”

गांव वालों ने उसी साल पास के नुआपाड़ा जिले से स्थानीय धान के बीज लाए और उन्हें अपने खेतों में लगाया और एक बीज बैंक बनाया, जिसमें अब राज्य के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त 25 स्वदेशी धान की किस्में हैं। रंताल निवासियों का कहना है कि सीड बैंक के धान की किस्में इलाके में उपयोग की जाने वाली संकर किस्मों की तुलना में जल कुशल और अधिक मजबूत हैं।

मनरेगा की मदद से गांव वालों ने खुले कुएं बनाए। व्यक्तिगत खेत तैयार करने के लिए श्रम किया और कृत्रिम तालाब और कटा (बड़ी जल संरचनाएं) बनाए, जिसमें होने वाली मछलियों पर सबका अधिकार था। उन्होंने अपनी फसलों के लिए जैविक खाद और कीटनाशकों का उत्पादन करने के लिए कम से कम 20 वर्मीकम्पोस्ट गड्ढे बनाए और गांव के अन्य क्षेत्रों में हजारों कटहल, अमरूद, आम, शरीफा, अनार और अन्य प्रकार के फलों के पेड़ लगाए हैं।

ग्रामीणों ने गांव में सड़कें ही नहीं, एक हॉकी स्टेडियम भी बनाया है जो बागवानी विभाग से मिले आम के पेड़ों से सुसज्जित है। गांव अब एक वार्षिक हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन करता है, जिसमें 45 से अधिक पड़ोसी गांव के बड़ी संख्या में खिलाड़ी भाग लेते हैं और यह ग्रामीणों की आय का एक प्रमुख स्रोत बन गया है।

रंताल निवासी और मेघपाल ग्राम पंचायत के नायब सरपंच अजय डांग कहते हैं, “हॉकी टूर्नामेंट का पैसा, फलों के पेड़ों, तालाबों और सामूहिक मछली पकड़ने जैसी सामुदायिक संपत्तियों से उत्पन्न आय के साथ, सामुदायिक निधि में रखा जाता है। यह पैसा गांव के विकास पर खर्च किया जाता है और स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे किसी भी परिवार को सहायता प्रदान करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।”

अपनी सफलता से प्रेरित होकर रंताल निवासियों ने संबलपुर के अन्य गांवों जैसे मगंगबहल, जारंग और तलझोरा को जैविक खेती करने में मदद की है।

डांग कहते हैं, “हम अन्य गांवों के किसानों को अपने स्वयं के बीज बैंक बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि जैविक खेती अपनाने के लिए बीजों पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है।” उन्होंने आगे कहा, “1980 में अपनी जमीन से उखाड़ फेंके जाने के बाद जैविक खेती ने आज हमें एक सामूहिक पहचान दी है।”

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