आखिर क्यों 300 किलोमीटर पैदल चल पड़े हैं आदिवासी?

हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के विरोध में आदिवासियों ने 300 किमी की पैदल यात्रा शुरू की। जो 10 दिन में मदनपुर से चलकर रायपुर पहुंचेंगे

By Avdhesh Mallick

On: Monday 04 October 2021
 
4 अक्टूबर 2021 से आदिवासियों ने 300 किलोमीटर का सफर पैदल शुरू किया। फोटो: अवधेश मलिक

जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से आदिवासियों ने कमर कस ली है। अपनी बातों को राज्य और केंद्र सरकार के पहुंचाने के लिए, सीमित संसाधन होने के बावजूद खदान प्रभावित आदिवासियों ने 300 किलोमीटर तक की पैदल यात्रा करने की ठानी है।

हसदेव अरण्य क्षेत्र में दस्तावेज के मुताबिक अडानी कंपनी को एमडीओ के तहत कोयला खनन करने की अनुमति मिली है जबकि खनन के लिए लीज राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आवंटित है। आदिवासी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं।

हसदेव अरण्य क्षेत्र जो सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर आदि जिलों में फैला हुआ है और इसमें करीब 1,70,000 हेक्टेयर में जंगल है और इसमें 23 कोयला खदान प्रस्तावित है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नामक सामाजिक संस्था के मुताबिक कोयला खनन के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र का पांच गांव सीधे तौर पर और 15 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। अगर ये सभी खदानें संचालित हो गई तो सबसे पहले 17 हजार हेक्टेयर का जंगल समाप्त होगा फिर धीरे-धीरे सभी जंगल समाप्त हो जाएंगें।

2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर एक बार फिर से हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहने वाले खदान प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों ने अवैध खनन, और कोयला खदान के लिए जबरिया जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आखरी सांस तक शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई जारी रखने का संकल्प को दोहराया एवं 4 अक्टूबर से हसदेव बचाओ पदयात्रा की शुरुआत की। दस दिनों में यह पदयात्रा 300 किलोमीटर पैदल चलते हुए 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी।

पैदल यात्रा में भाग ले रही सुनीता पोर्ते कहती है कि हम रायपुर जाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पूछेंगे कि कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए हमारी जमीन को क्यों छीना जा रहा है?

हसदेव बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े हुए सोशल एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला कहते हैं - मदनपुर से यात्रा प्रारम्भ करने से पहले ग्रामीणों ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित की और मोदी सरकार की फासीवादी, कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर जम कर हमला बोला।

आलोक बताते हैं कि आज इस यात्रा की शुरुआत मदनपुर गांव के उस ऐतिहासिक स्थान से की गई, जहां पर वर्ष 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगो को संबोधित करते हुए उनके जल- जंगल -जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था और कहा था कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं। चूंकि हमारी लड़ाई अवैध उत्खनन, धोखाधड़ी से आदिवासियों का जमीन हड़पना, अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद पेसा कानून का नहीं लागू करना जैसे मुद्दों को लेकर है। कॉरपोरेटीकरण और भ्रष्ट नौकरशाही को लेकर भी है। अतः हम तो लड़ेंगें।

ग्राम फत्तेपुर के मुनेश्वर पोर्ते कहते हैं कि 2015 में ही 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर कर कह दिया था कि हम कोयला खनन का विरोध करेंगें।  परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति ग्रामसभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई। शासन-प्रशासन सबको पता है कि उसके बावजूद न ही तो आजतक फर्जी प्रस्ताव को निरस्त किया गया, न ही दोषियों पर कार्रवाई की गई। हमारी मांग है कि इस प्रकार के फर्जी सहमति को निरस्त किया जाए।

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्री रामेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं कि अपने जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए हसदेव के लोग पिछले एक दशक से संघर्षरत हैं। हमसे तो केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही सौतेला व्यवहार कर रही हैं।   

पैदल यात्रा में भाग ले रहे रामलाल करियम कहते हैं कि अडानी को जिस प्रकार मोदी सरकार देश के तमाम संसाधनों को सौंपने की कोशिश कर रही है उस प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ सरकार भी अपनी पूर्ण सहभागिता निभा रही है। ऐसे में हमने अपने संविधानिक अधिकारों के रक्षा के लिए यह रैली निकाली है। और हमारी मांगे निम्नलिखित है।

  •  हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए।
  • बिना ग्राम सभा सहमती के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बोरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाएl
  • पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमती के प्रावधान को लागू किया जाए। 
  • परसा कोल ब्लाक के लिए फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त कराएं ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर एफआईआर दर्ज की जाए।
  • घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दो l
  • पेसा कानून 1996 का पालन किया जाए।

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