बंजर होता भारत -8: गुजरात भी मरुस्थलीकरण की जद में, 50 फीसदी क्षेत्र में दिख रहा असर
दुनिया भर में जमीन का बंजरपन बढ़ रहा है। भारत में भी ज्यादातर राज्य इसकी चपेट में हैं। इसमें गुजरात भी शामिल हैं। डाउन टू अर्थ ने गुजरात के कुछ इलाकों का जायजा लिया।
On: Friday 13 September 2019


“जब सड़कें, बिजली और दूसरी कोई सुविधा नहीं थी, तब हमारे पास ‘माल’ था।” कच्छ के बगारिया गांव के कुबेर करमकांत जाट के लिए ‘माल’ का मतलब मवेशियों से है। पुराने दिनों की यादों में खोए कुबेर बताते हैं, “पहले घास के मैदानों की कमी नहीं थी, मवेशियों के लिए भरपूर चारा था। मवेशी दूर-दूर तक चरने जाते थे। लेकिन अब कुछ नहीं बचा।”
कुबेर मालधारी घुमंतू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। यह समुदाय भूमि क्षरण अथवा मरुस्थलीकरण से सबसे बुरी तरह प्रभावित है। समुदाय के मवेशी 2,617 वर्ग किलोमीटर में फैले बन्नी घास के मैदानों पर सदियों से आश्रित रहे हैं। कभी एशिया के सबसे अच्छे और प्राकृतिक घास के मैदानों में शुमार यह मैदान अब बबूल (स्थानीय भाषा में गंदो बबूल और पागल बबूल) के जंगल में तब्दील होते जा रहे हैं। 1960-61 में योजना आयोग की सलाह पर सरकार ने 31,550 हेक्टेयर क्षेत्र में बबूल के बीजों का हेलिकॉप्टर से छिड़काव कराया था। मकसद का जमीन खारापन को बढ़ने से रोकना। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, यह काम सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण पर प्रभाव के आकलन के बिना किया गया। बीज उस जगह भी डाल दिए गए जहां की जमीन में खारापन नहीं था अथवा कम खारापन था। धीरे धीरे से बबूल कच्छ के घास के मैदानों में भी फैल गए। गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेजर्ट इकॉलोजी के निदेशक विजय कुमार बताते हैं, “2009 में 33 प्रतिशत क्षेत्र इसके दायरे में था जो 2015 में बढ़कर 54 प्रतिशत हो गया। जैसे जैसे इसका दायर बढ़ रहा है, घास के मैदान सिकुड़ते जा रहे हैं।”
घास की कमी इस हद तक हो गई है कि अपने दूध के लिए मशहूर बन्नी भैंस के लिए चारा भी बाहर से लाना पड़ रहा है। कुबेर बताते हैं कि हमें वलसाड से 100 किलो घास मंगाने के लिए 1,600 रुपए देने पड़ते हैं। वह घास भी प्राकृतिक नहीं होती। इससे दूध की गुणवत्ता पर असर पड़ा है। पहले दूध में 8-10 प्रतिशत वसा निकलता था जो पिछले दो तीन सालों में घटकर 4-5 प्रतिशत ही रह गया है। इससे समुदाय को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है क्योंकि जो दूध पहले 40-45 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिकता था, वह अब 30-35 रुपए में बिक रहा है।
गुजरात उन पांच राज्यों में शामिल है जहां की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि मरुस्थलीकरण अथवा क्षरण की शिकार है। राज्य के कच्छ, सुरेंद्रनगर, पंचमहल, साबरकांठा और भावनगर में वनस्पति और मिट्टी की ऊपरी परत का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ है। यह क्षरण प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों का नतीजा है।
राज्य में पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन सहजीवन के कार्यकारी निदेशक पंकज जोशी बताते हैं, “प्राकृतिक क्षरण कई दशकों में और धीरे-धीरे होता है, जबकि मानवीय गतिविधियों से क्षरण बेहद तेज गति से होता है और इसे रोकना बड़ी चुनौती है।