कॉप 27: पहला ड्राफ्ट जारी, कोयले पर रोक और समता पर जोर, अन्य मुद्दे रहे नदारद

इस ड्राफ्ट में जी77 देशों द्वारा 'हानि और क्षति' के लिए मांगे गए फण्ड पर बहुत कम प्रकाश डाला गया है। वहीं जीवाश्म ईंधन को कम करने की आवश्यकता का कोई उल्लेख इसमें नहीं है

By Avantika Goswami, Lalit Maurya

On: Friday 18 November 2022
 
Photo: @AlokSharma_RDG / Twitter

कॉप-27 के दौरान 17 नवंबर, 2022 की सुबह एक 'नॉन-पेपर' जारी किया गया। इसमें विभिन्न देशों से प्राप्त जानकारियों को संकलित किया गया है, जिससे इस सम्मलेन में उठाए सभी मुद्दों पर प्रकाश डाला जा सके और निर्णय पर पहुंचा जा सके।  गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन का 27वां शिखर सम्मेलन (कॉप-27) मिस्र के तटीय शहर शर्म अल-शेख में चल रहा है, जिसका आज अंतिम दिन है।

यह 'नॉन पेपर' पूरे सम्मेलन के दौरान उठाए गए मुद्दों और सहमतियों को सार प्रस्तुत करता है। साथ ही इसके बाद कार्रवाई कैसे आगे बढ़नी चाहिए, इसके लिए मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। गौरतलब है कि ग्लासगो में कॉप 26 के कवर निर्णय को ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट (जीसीपी) के रूप में जाना जाता है, जिसने 'जीवाश्म ईंधन' शब्द का उल्लेख करने वाला पहला कॉप निर्णय होने का इतिहास बनाया। (जीवाश्म ईंधन से आशय कोयला, तेल प्राकृतिक गैस् आदि से है)। मिस्र में जारी यह दस्तावेज 20 पेज लम्बा है, वहीं ग्लासगो में जारी जीसीपी आठ पृष्ठों का था।

इस बारे में शिष्टमंडल के प्रमुखों के साथ परामर्श के दौरान, कई पार्टियों ने इतनी देर से इतना लंबा दस्तावेज प्राप्त करने के बारे में भी शिकायत की है, अब इस सम्मलेन का केवल एक आधिकारिक दिन बचा है। ऐसे में उनका कहना है कि  इस ड्राफ्ट पर बातचीत करने के लिए बहुत कम समय बचा है। 

इस दस्तावेज में ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) और बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) की रिपोर्टों के निष्कर्षों पर व्यापक खंड है। ऐसे में यह यूएनएफसीसीसी के दायरे के भीतर और बाहर कई विषयों को बटोरने वाले सुझावों की एक लम्बी, व्यापक सूची है।

यह ड्राफ्ट ऊर्जा प्रणालियों में तेजी से बदलाव के साथ उसे अधिक सुरक्षित, विश्वसनीय और लचीला होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह ऊर्जा सुरक्षा के बारे में है, जो अधिकांश देशों के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता भी है। यह पेपर अक्षय ऊर्जा की ओर बदलाव और झुकाव के साथ कोयला आधारित ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान करता है। हालांकि जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर यह जीसीपी के शब्दों को कमजोर करता हुआ प्रतीत होता है।

गौरतलब है कि ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट (जीसीपी) में अकुशल जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान किया था  जबकि कॉप 27 में जारी इस मसौदे में "अक्षम जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटाने और युक्तिसंगत बनाने" की आवश्यकता बताई है।

हालांकि यह दस्तावेज अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों के विरोध के बावजूद यूएनएफसीसीसी और 2015 के पेरिस समझौते के समता के सिद्धांतों को दोहराता है। इसमें विकसित देशों द्वारा उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती कर पाने में विफल रहने का भी जिक्र किया है।

इसमें एक चीज जो नई जोड़ी गई जो कई लोगों को हैरान भी करती है वो यह है कि  'जस्ट ट्रांसिशन' पर एक एक नए कार्यक्रम की स्थापना की मांग करता है। एचओडी की बैठक में, यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि मिटिगेशन वर्क प्रोग्राम में 'जस्ट ट्रांसिशन' पर पहले ही चर्चा की जा चुकी है और उस पर बस सहमति बननी बाकी है।

वहीं संयुक्त राष्ट्र के आरईडीडी+ के मुद्दे पर यह पेरिस समझौते के अनुच्छेद 5.2 के तहत आरईडीडी+ के मूल्यांकन और सत्यापित परिणामों के लिए अधिक वित्त की पेशकश का समर्थन करता है, जिससे देशों को उनके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) और शुद्ध शून्य लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिल सके।

यह अनुच्छेद 6.2 के तहत द्विपक्षीय व्यापार में आरईडीडी+ जमा करने की भी अनुमति देता है। इसे यूके के आर्ची यंग द्वारा पूर्व-निर्णय बताया गया था, क्योंकि इस मुद्दे पर अभी भी कॉप 27 में बातचीत चल रही है। इस ड्राफ्ट में वित्त पर "गंभीर चिंता व्यक्त की गई है" क्योंकि 100 बिलियन डॉलर जलवायु वित्त देने का लक्ष्य विकसित देशों द्वारा पूरा नहीं किया गया है, और यह कॉप 26 में प्रस्तुत जीसीपी के अनुसार अनुकूलन के लिए दिए जाने वाले वित्त को दोगुना करने के लक्ष्य को दोहराता है।

वहीं 'हानि और क्षति' के मुद्दे पर, इस मसौदे में इसके कारण बढ़ती बढ़ती लागत और उधारी के साथ-साथ गैर-यूएनएफसीसीसी तंत्र जैसे कि ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क शील्ड और बीमा क्षमता का भी जिक्र किया है। हालांकि, इस मुद्दे पर चल रही कठिन वार्ताओं के कारण विकासशील देशों की मुख्य मांग - कॉप 27 में हानि और क्षति की वित्त सुविधा - इसमें से गायब है। बारबाडोस ने एचओडी बैठक में एओएसआईएस की ओर से बोलते हुए कहा कि वे इस बात से निराश हैं कि नए हानि और क्षति के एजेंडे को इसमें कैसे प्रबंधित किया गया है।

उनके अनुसार अब तक इस मुद्दे पर वार्ता के लिए कोई विवरण तैयार नहीं किया गया है और न ही इस मामले पर औपचारिक बातचीत के लिए कोई समय आबंटित किया गया है। न ही कोई संयुक्त संपर्क समूह बनाया गया है। बारबाडोस स्पीकर का कहना है कि एजेंडा में शामिल हर दूसरे विषयों को बातचीत के लिए समय दिया गया है, और हम मांग करते हैं कि इस विषय को भी वही शिष्टाचार दिया जाए जो हमारे लिए बहुत मायने रखता है।

इस मसौदे में सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के भारत के प्रस्ताव का भी जिक्र नहीं है। वास्तव में, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाने के संदर्भ में ही ड्राफ्ट में जीवाश्म ईंधन का एकमात्र जिक्र किया गया है। यह एक ऐसा फैक्ट है जो इस नॉन पेपर को महत्वाकांक्षा हीन बनाता है। इस बारे में कई लोगों का कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधन को समाप्त करना बहुत जरूरी है।

एचओडी की बैठक में, जी77 और चीन के पक्षकारों का कहना था कि यह मसौदा जलवायु वार्ता की यात्रा की दिशा को स्पष्ट नहीं करता है। वहीं बोलिविया ने कहा कि इस ड्राफ्ट के माध्यम से पेरिस समझौते की पुनर्व्याख्या नहीं होनी चाहिए। उनका आगे कहना था कि विकसित देशों के वित्तीय दायित्वों को कम नहीं किया जा सकता है।

वहीं अरब पक्षकारों ने सुझाव दिया कि विशिष्ट ऊर्जा स्रोतों को लक्षित करने के बजाय, ड्राफ्ट में उत्सर्जन को लक्षित करना चाहिए। कई पार्टियों ने गैर-यूएनएफसीसीसी योजनाओं जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन को शामिल करने का भी मुद्दा उठाया है।

चीन ने कहा है कि एमडीबी के सुधार पर ड्राफ्ट में मौजूद खंड को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि यह "इस प्रक्रिया के जनादेश से परे है और वैश्विक वित्तीय प्रशासन का एक मुद्दा है।" अमेरिका ने इसमें, उन पार्टियों की प्रासंगिकता जो वैश्विक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान देती हैं और सही पथ पर लाने में मदद करने में उनकी क्या भूमिका है" इसको भी जोड़ने के लिए कहा है।

यह भी प्रतीत होता है कि वो 100 अरब डॉलर के लक्ष्य और अनुकूलन वित्त को दोगुना करने पर सहमत है। लेकिन साथ ही अमेरिका की मांग है कि ज्यादा वित्त की मांग के साथ इसमें "प्रभावी शमन" और एनडीसी में महत्वाकांक्षा के अपडेट को भी जोड़ा जाना चाहिए।

गौरतलब है कि कॉप 27 प्रेसीडेंसी अब नॉन पेपर को निर्णय के वास्तविक मसौदे में बदलने पर काम करेगी। लेकिन क्या 18 नवंबर की शाम तक सम्मेलन समय पर खत्म होगा, इसको लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि असहमतियों का आंकड़ा और बढ़ने की संभावना है।

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