अलास्का और हिमालय में ग्लेशियर से बनी झीलों के फटने से बाढ़ के खतरे और बढ़ सकते हैं

दुनिया भर में लगभग 15 लाख लोग झीलों के निचले प्रवाह में रहते हैं, जिनमें एशिया के ऊंचे पहाड़ों में रहने वाले लोग सबसे अधिक खतरे में हैं

By Dayanidhi

On: Tuesday 17 October 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, व्याचेस्लाव आर्गेनबर्ग

अध्ययन में बताया गया है कि, अगस्त 2023 में, जूनो, अलास्का के निवासियों ने देखा कि मेंडेनहॉल नदी कुछ ही घंटों में ऐतिहासिक स्तर तक बढ़ गई। तेज पानी ने नदी के किनारों को काट डाला और पूरे पेड़ों और कई इमारतों को निगल लिया।

बाढ़ भारी बारिश होने के कारण नहीं आई थी, यह मेंडेनहॉल ग्लेशियर के बगल में एक घाटी में स्थित छोटी ग्लेशियर से बनी झील के कारण थी।

इस तरह की ग्लेशियर से क्षतिग्रस्त झीलें अलास्का में भारी मात्रा में हैं। वे तब बनती हैं जब एक पार्श्व घाटी मुख्य घाटी की तुलना में तेजी से अपनी बर्फ खोती है, जिससे एक बिना बर्फ वाली घाटी बच जाती है जो पानी से भर सकती है। ये झीलें वर्षों तक स्थिर रह सकती हैं, लेकिन अक्सर वे एक चरम बिंदु पर पहुंच जाती हैं, जब पानी का भारी दबाव ग्लेशियर के नीचे एक हिस्सा खोलता है।

झील के पानी की तीव्र और विनाशकारी निकासी को ग्लेशियर से बनी झील में विस्फोट से बाढ़ या संक्षेप में इसे जीएलओएफ कहा जाता है। बाढ़ का पानी घंटों या दिनों में नीचे की ओर बढ़ता है और अक्सर अप्रत्याशित रूप से भारी नुकसान पहुंचता है।

ग्लेशियर से बनी झील के फटने से आई बाढ़ ने दुनिया भर में घरों, बुनियादी ढांचे और लोगों के जीवन को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने यूरोप में सैकड़ों लोगों और दक्षिण अमेरिका और मध्य एशिया दोनों में हजारों लोगों को मार डाला है। दुनिया भर में लगभग 15 लाख लोग इन झीलों के निचले प्रवाह में रहते हैं, जिनमें एशिया के ऊंचे पहाड़ों में रहने वाले लोग सबसे अधिक खतरे में हैं।

पांच अक्टूबर, 2023 को हिमालय में एक ग्लेशियर से बनी झील से आई बाढ़ के कारण भारत में दर्जनों लोगों की मौत हो गई, क्योंकि पानी में पुल बह गए, एक जलविद्युत स्टेशन क्षतिग्रस्त हो गया और छोटे शहरों में बाढ़ आ गई। उपग्रह चित्रों से पता चला कि कुछ ही घंटों में झील का स्तर काफी गिर गया।

शोधकर्ता ने कहा कि, वे अलास्का की ग्लेशियर से बनी झीलों और विशेष रूप से ग्लेशियर के टूटने से बनी झीलों द्वारा पैदा होने वाले खतरों का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, हमारे नवीनतम शोध से पता चलता है कि वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ ये झीलें कैसे बदल रही हैं।

क्या होता है जब ग्लेशियर झीलों को रोक लेते हैं?

कुछ ग्लेशियर से बनी झीलें मोराइन द्वारा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, चट्टान और मलबे के ढेर जो ग्लेशियर के पीछे हटने के कारण पीछे रह जाते हैं। अत्यधिक वर्षा, हिमस्खलन या भूस्खलन से झील में बना बहुत अधिक दबाव इन बांधों को तोड़ सकता है, जिससे विनाशकारी बाढ़ आ सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है ऐसा ही हुआ होगा जब अक्टूबर 2023 में हिमालय की लोनाक झील से भारत के शहरों में बाढ़ आ गई थी।

शोधकर्ता ने बताया कि, ग्लेशियर से क्षतिग्रस्त झीलें, जैसे मेंडेनहॉल ग्लेशियर के सुसाइड बेसिन, ग्लेशियर द्वारा ही क्षतिग्रस्त होती हैं।

बर्फ के नीचे पानी की निकासी का रस्ते  के चक्रीय खुलने और बंद होने के कारण ये ग्लेशियर से बनी झीलें बार-बार भरने और बहने लगती हैं। भरने और निकालने का चक्र हर दो साल में या साल में कई बार खतरा पैदा कर सकता है।

अलास्का में ग्लेशियर झील के खतरे कैसे बदल रहे हैं

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने अलास्का में 120 ग्लेशियर से बनी झीलों की पहचान की, जिनमें से 106 झीलें 1985 के बाद से कम से कम एक बार सूख चुकी हैं।

ये झीलें 35 वर्षों में सामूहिक रूप से 1,150 बार सूख चुकी हैं। यानी हर साल औसतन 33 घटनाएं होती हैं जहां एक झील अपनी सामग्री को बहा देती है, जिससे पानी का प्रवाह नीचे की ओर होता है और संभावित खतरनाक स्थितियां पैदा होती हैं।

इनमें से कई झीलें सुदूर स्थानों पर हैं और अक्सर उनका पता नहीं चल पाता है, जबकि अन्य झीलें समुदायों के बहुत करीब हैं, जैसे कि सुसाइड बेसिन, जो राज्य की राजधानी के पांच मील के भीतर है और पिछले एक दशक में अक्सर सूख गई है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया गया कि कुल मिलाकर, अलास्का में ग्लेशियर के टूटने से बनी झीलों की मात्रा 1985 के बाद से कम हो गई है, जबकि विस्फोट की आवृत्ति अपरिवर्तित बनी हुई है। इससे पता चलता है कि ग्लेशियर के टूटने से बनी झीलों से होने वाले खतरों में क्षेत्रीय गिरावट आई है क्योंकि कम संग्रहित पानी उपलब्ध है, एक प्रवृत्ति जिसे दुनिया भर में ग्लेशियर के टूटने से बनी झीलों के लिए उजागर किया गया है।

शोधकर्ताओं ने आम भाषा में इसे समझाने के लिए, एक बाथटब का उदाहरण दिया। टब के किनारे जितने ऊंचे होंगे, उसमें उतना अधिक पानी समा सकता है। ग्लेशियर से क्षतिग्रस्त झील के लिए, ग्लेशियर बाथटब के किनारे के रूप में कार्य करता है।

गर्म हवा के तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पतले हो रहे हैं, जिससे टब की दीवारें कम हो रही हैं और इसलिए कम पानी जमा हो रहा है। इससे हो सकता है ग्लेशियर से बनी झील के विस्फोट से आने वाली बाढ़ के लिए उपलब्ध पानी की कुल मात्रा कम हो जाती है।

हालांकि, छोटी झीलों के क्षेत्रफल में समय के साथ कम महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। जैसा कि अगस्त 2023 की घटना ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है, छोटी झीलें भी नीचे की ओर भारी प्रभाव डाल सकती हैं।

अलास्का ने निवासियों ने जूनो में बाढ़ से विनाश का एक नया रिकॉर्ड देखा। मेंडेनहॉल नदी गेज पर पानी लगभग 15 फीट तक पहुंच गया, जो कि इसके पिछले रिकॉर्ड से तीन फीट अधिक है।

केवल 2023 की गर्मियों में, अलास्का वासियों  ने आबादी वाले क्षेत्रों या बुनियादी ढांचे के पास कई ग्लेशियर के टूटने से बनी झीलों से रिकॉर्ड बाढ़ देखी, जैसे कि जूनो के पास सुसाइड बेसिन,  स्किलाक ग्लेशियर के टूटने से बनी झील, जो केनाई नदी को प्रभावित करती है और स्नो लेक, जो स्नो नदी को प्रभावित करती है। ये झीलें लगभग समान मात्रा में बनी हुई हैं लेकिन हाल के वर्षों में इनसे कुछ बड़ी बाढ़ आई हैं।

शोधकर्ता ने बताया कि, पतले और कमजोर बर्फ के बांध से पानी बहुत तेजी से निकल सकता है, हालांकि यांत्रिकी को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। बहरहाल, यह एक चेतावनी है कि ये झीलें और घटनाएं अप्रत्याशित हैं।

बढ़ते तापमान का इन झीलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

शोधकर्ता ने कहा, तापमान बढ़ने के साथ अलास्का में ग्लेशियरों का नुकसान तेजी से हो रहा है। अलास्का में ग्लेशियरों की बड़ी मात्रा और बर्फ से भरी कई घाटियों के कारण, इस बात की बहुत अधिक आसार हैं कि, घाटियों के पिघलने से नई झीलें विकसित होंगी, जिससे नए खतरे पैदा होंगे।

इनमें से कई झीलों के सुदूर स्थानों में विकसित होने की आशंका है और उनकी उपस्थिति केवल उपग्रह चित्रों में ही देखी जा सकती है जो समय के साथ बदलावों को दिखा रही हैं।

शोधकर्ता ने कहा कि, ग्लेशियर से बनी झीलों की बढ़ती संख्या और मानव जीवन के लिए उनसे होने वाले खतरे को देखते हुए, प्रारंभिक चेतावनी और निगरानी प्रणालियों की भारी कमी है।

शोधकर्ता ने बताया कि, हिमालय और चिली में प्रयास चल रहे हैं, लेकिन विश्वसनीय, कम लागत वाली निगरानी प्रणाली विकसित करने और इन उभरते खतरों के बारे में हमारी समझ में सुधार करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

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