मनरेगा ने गांव की ‘आधी आबादी’ को आबाद किया

मनरेगा में मजदूरी के बाद मिल रहा पैसा महिलाओं को अपनी खुद की कमाई का अहसास दिला रहा है

By Anil Ashwani Sharma

On: Thursday 16 July 2020
 
राजस्थान के बांदरसिंदड़ी (अजमेर) तहसील के मीणाओं की ढाणी (गांव) की महिलाएं मनरेगा कार्य करते हुए। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा

अक्सर देखा-सुना जाता है कि दुनिया की आधी आबादी अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी ना किसी स्तर पर पुरूषों की ओर ताकती हैं। इनमें विशेषकर ग्रामीण महिलाओं का अनुपात अधिक होता है। लेकिन राजस्थान के बांदरसिंदड़ी (अजमेर) तहसील के मीणाओं की ढाणी (गांव) की महिलाओं ने इस बात को झुठला दिया है। 

क्योंकि उनके हाथों में मनरेगा ने एक ऐसी मजबूती दी है जिसकी बदौलत वे आगामी रक्षाबंधन के त्योहार पर अपनी मजूरी के पैसों से अपने भाईयों की कलाइयों को रंग-बिरंगी राखियों से भर सकेंगी। ढाणी में 5 किमी लंबे बन रहे फीडर (आव) में तगाड़ी में मिट्टी भर कर मेड़ों पर डालती सुमन से जब पूछा गया कि इस मजूरी के पैसों का आप क्या करेंगी? तो वह अपने चेहरे से घूंघट हटाते हुए बताती हैं कि पहली बार मैं अपनी कमाई के पैसों से अपने भाई के लिए राखी खरीदूंगी। वह आगे कहती हैं, हर बार होता यह था कि मुझे कच्चे धागे को हल्दी में डालकर ही भाई को राखी बांधनी पड़ती थी। यहां अकेले सुमन ही ऐसी महिला नहीं हैं बल्कि इस फीडर पर वर्तमान में काम कर रहीं 77 महिलाओं में से अधिकांश महिलाओं ने ऐसी ही कहानियां बयां कीं।

महिलाओं की आत्मनिर्भरता की कहानी सिर्फ राखी खरीदने तक ही सीमित नहीं हैं। इसी फीडर पर बबूल के पेड़ पर कुल्हाड़ी चला रही मीरा कहती हैं कि राखी तो खरीदूंगी ही खरीदूंगी, कोरोना का कहर कम होने पर जब स्कूल खुलेंगे तो मैं अपने तीनों बच्चों के लिए कापी-पेंसिल और उनकी स्कूल ड्रेस भी खरीदूंगी। महिलाओं द्वारा खोदे जा रहे इस फीडर की गहराई को इंचीटेप से नाप रहे कुलदीप माली (मनरेगा मेट) बताते हैं कि पिछले लगभग तीन महीने से  काम कर रही ये महिलाएं मुझसे जब-तब यह दोहराती हैं कि हम अब अपना घर खर्च स्वयं वहन करने में सक्षम हैं। माली कहते हैं, ‘मैं इसी ढाणी का रहने वाला हूं और इन महिलाओं के आर्थिक दशा से भली-भांति परिचित हूं कि कैसे ये एक-एक पैसे के लिए मोहताज हुआ करती थीं, लेकिन मनरेगा ने इन महिलाओं की ना केवल आर्थिक दशा सुधारी बल्कि इनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया है।’

ढाणी में बन रहे इस फीडर के माध्यम से जब बारिश का पानी गांव के तालाब में पहुंचेगा तो इस गांव के 80 हेक्टेयर जमीन सिंचित होने की स्थिति में होगी। 

गांव की जमीनों के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाले बुजुर्ग हंसराज बताते हैं कि फीडर पानी स्त्रोतों तक बारिश की एक-एक बूंद को पहुंचाने का सर्वेश्रेष्ठ प्राकृतिक माध्यम हैं। चूंकि पिछले सालों में बारिश के पानी के साथ आई मिट्टी के कारण ये फीडर लगभग पूरी तरह से चोक हो चुका था, जिसके चलते गांव का तालाब पूरी तरह से जल रहित हो गया था। केचमेंट एरिया का पानी भी फीडर के चोक होने के कारण तालाब तक नहीं पहुंच पा रहा था जिससे गांव में पेयजल का संकट पिछले तीन साल से बना हुआ था। पानी की कमी की मार सबसे अधिक गांव की महिलाओं पर ही पड़ी है।

यही कारण है कि इस फीडर के निर्माण में गांव की महिलाएं बढ़-चढ़ कर लगी हुई हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि तालाब भरेगा तो उनके कुओं में पानी आएगा और उन्हें कई किमी दूर से पानी लाने की मुसीबत से छुटकारा मिलेगा। इस संबंध में मेट कहते हैं कि मनरेगा का वक्त सुबह 6 बजे शुरू होता है और खत्म दोपहर एक बजे होता है। सप्ताह में एक दिन गुरूवार को इनकी छुट्टी होती है, लेकिन अक्सर ये महिलाएं उस दिन भी काम पर आ डटती हैं। 

तालाब की क्षमता  के संबंध में गांव के बुजुर्ग हीरालाल बताते हैं कि यदि यह फीडर पूरी तरह साफ-सुफ हो गया तो तालाब में 16 हजार क्यूबिक मीटर पानी का भराव होगा। जिससे गांव के 24 कुओं का जल स्तर बढ़ जाएगा। तालाब की भराव क्षमता बढ़ाने के लिए तैयार हो रहे फीडर पर काम कर रही महिलाओं के उत्साह के संबंध में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र बैरवा बताते हैं कि वास्तव में जब भी कोई ऐसा काम जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति को ताकत मिलती है तो वह हर हाल में उस काम को पूरे मनोयोग से करने की पुरजोर कोशिश करती हैं। यही कारण है कि इस गांव की महिलाएं फीडर पर पूरे तन-मन से काम में जुटी हुई हैं

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