पलायन की पीड़ा-5: प्राकृतिक आपदाओं से बढ़ रहा विस्थापन

भारत में चक्रवातों और बाढ़ के कारण 27 लाख लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा

By Bhagirath Srivas

On: Wednesday 08 April 2020
 
Photo: Arnab Pratim Dutta

कोरोनावायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन की घोषणा होते ही बड़े शहरों में रह रहे प्रवासी मजदूर अपने घर लौटने लगे। चिंता थी कि 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान काम नहीं मिला तो क्या करेंगे, कहां रहेंगे? रेल-बस सेवा बंद होने के बावजूद ये लोग पैदल ही अपने-अपने गांव की ओर लौट पड़े। कोई सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने-अपने घर पहुंच चुका है तो लाखों मजदूरों को जहां-तहां रोक दिया गया है। लेकिन इस आपाधापी में एक सवाल पर बात नहीं हो रही है कि आखिर हर साल लाखों लोग पलायन क्यों करते हैं? डाउन टू अर्थ ने इन कारणों की व्यापक पड़ताल की है। इसे एक सीरीज में वेब में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक गांव के लोग, जो सदियों से पलायन का दंश झेल रहे हैं। दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, खेतों में नहीं होती गुजर बसर लायक पैदावार । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा- क्यों इन राज्यों से होता है सबसे ज्यादा पलायन । अगली कड़ी में आपने पढ़ा, पलायन के कारण एशिया के 20 देशों की बढ़ी आबादी। पढ़ें, अगली कड़ी-

 

इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) 2018 से प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित हुए लोगों पर से नजर रख रहा है। आईडीएमसी के अनुसार, 2018 में 148 देशों में कुल 2.8 करोड़ लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। इनमें 61 प्रतिशत विस्थापन आपदाओं के कारण, जबकि 39 प्रतिशत विस्थापन संघर्ष और हिंसा के कारण हुआ। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण 2008 के बाद से औसतन 31 लाख लोग हर साल विस्थापित हो रहे हैं। 

नवंबर 2017 में ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट और यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम द्वारा जारी “क्लाइमेट चेंज, माइग्रेशन एंड डिसप्लेसमेंट” रिपोर्ट में कहा गया है कि लोग सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय कारणों से अपना घर छोड़ते हैं। ये सभी कारण एक-दूसरे से जुड़े हैं। इन कारणों से अलग-अलग करना संभव नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में 2.4 करोड़ लोग चक्रवातों और बाढ़ के चलते अचानक विस्थापित हो गए। दिसंबर 2019 में स्पेन के मैड्रिड में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-25) के दौरान वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट 2019 रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2019 तक 2.2 करोड़ लोग अतिशत मौसम की घटनाओं के चलते विस्थापित होंगे। वैश्विक तापमान ने 2019 में ऐसी घटनाओं को बढ़ाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से जून 2019 के बीच एक करोड़ लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। इनमें से 70 लाख लोगों के विस्थापन की वजह बाढ़, चक्रवात और तूफान थे।

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 बताती है कि दक्षिण एशिया में आपदाओं से 2018 में 33 लाख नए विस्थापन हुए। भारत सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में शामिल था। भारत में चक्रवातों और बाढ़ के कारण 27 लाख लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा।

मानव तस्करी

विस्थापन का एक अन्य पहलू मानव तस्करी भी है। भारत में मानव तस्करी का लंबा इतिहास रहा है। यूएन एनवायरमेंट कार्यक्रम का अनुमान है कि प्राकृतिक आपदाओं के समय मानव तस्करी 20-30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन पहले से ही समस्या को गंभीर बना रहा है। मीडिया में प्रकाशित खबरों की पड़ताल से पता चलता है कि मानव तस्करी में जो लोग पकड़े जा रहे हैं और उनके चंगुल से जो लड़कियां मुक्त हो रही हैं, वे मुख्य रूप से ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से हैं। आपदाओं के समय और उसके बाद ऐसी घटनाएं अक्सर बढ़ जाती हैं। 2016 में जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सूखे का सामना कर रहा था, तब भी लड़कियों के ट्रैफिकिंग की खबरों सुर्खियां बनी थीं। 

अमेरिका स्थित कोलंबिया लॉ स्कूल में सबिन सेंटर फॉर क्लाइमेंट चेंज लॉ के निदेशक माइकल बी गेराल्ड के अनुसार, दुनियाभर में करीब 2.1 करोड़ लोग मानव तस्करी से पीड़ित हैं। ये मुख्य रूप से वैश्यावृति के धंधे में जबरन धकेले गए हैं अथवा बंधुआ मजदूर हैं। यह आधुनिक गुलामी प्राकृतिक आपदाओं और संघर्ष के बाद और बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के दौर में यह विस्थापन और पलायन बढ़ने के चलते लोग मानव तस्करी के प्रति और संवेदनशील होंगे। भविष्य की रणनीति 

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 के सह-संपादक बिनोद खादरिया बताते हैं कि पलायन को खत्म नहीं किया जा सकता है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले माइग्रेशन को और नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है (देखें: प्रवास, विस्थापन को कम किया जा सकता है, पूर्णतः रोका नहीं जा सकता, पेज 38 )। प्राकृतिक आपदाओं में जानमाल की हानि को कम करने के लिए आवास की बुनियादी कमियों को सबसे पहले दूर करना होगा। स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज रिसर्च फेलो एवं भूगोलवेत्ता मैक्स मार्टिन का कहना है जलवायु परिवर्तन की वजह से बड़े पैमाने पर मानव प्रवासन होगा और यह असर सभी भौगोलिक क्षेत्रों व सीमाओं के पार दिखाई देगा (देखें : एजेंडे में बदलाव की जरूरत,)। 

जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तनों में कुछ प्रवृत्तियों और उनके प्रभावों को उजागर करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं जिनमें मानव गतिशीलता के बदलते स्वरूप शामिल हैं, इसलिए नीतियों में इनका जिक्र होना चाहिए। वह कहते हैं, “समझदारी इसी में है कि इस तथ्य को स्वीकार करें और जितना संभव हो सके आवाजाही की योजना बनाएं और उसका प्रबंधन करें। यह प्रवासी मजदूर हैं जो शहरों का निर्माण, संचालन और रखरखाव करते हैं। फिर भी वे हमेशा शहर की सीमारेखा की तरफ धकेल दिए जाते हैं। 

माइग्रेशन इन्फॉर्मेशन एंड रिसोर्स सेंटर के निदेशक उमी डेनियल का कहना है कि आश्चर्य की बात है कि देशभर में आपदा प्रभावित क्षेत्रों से पलायन तेजी से बढ़ रहा है, फिर भी ग्रामीण-शहरी श्रमिक पलायन और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के पलायन को समझने-पहचानने के लिए अब तक कोई प्रभावी तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है। जोखिम-सूचना ग्रामीण विकास योजना का एक प्रमुख पहलू है, जिसे बुनियादी ढांचे के विकास, आजीविका के उपाय विकसित करने, आपदा के असर को कम करने और अनुकूलन से संबंधित हर एक कार्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है। 

डेनियल ने कहा कि त्वरित आपदा राहत योजना और रणनीति लोगों को आजीविका और सामाजिक संकट से उबारने में कारगर साबित होगी। साथ ही आपदा के बाद लोगों को मानव तस्करी से बचाने के लिए विभिन्न आवश्यक उपायों को लागू करना भी महत्वपूर्ण है। सुरक्षित पलायन के बारे में जागरुकता पैदा करने की आवश्यकता है। पलायन करने वाले श्रमिकों के कौशल विकास को प्राथमिकता देना आवश्यक है। वह कहते हैं,“पलायन एक कड़वा सच है लेकिन, इस सच की कड़वाहट को न्यूनतम करने के लिए हमें रणनीति तैयार करनी होगी।

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