अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ने से भी होगा पर्यावरण का नुकसान, जानें कैसे?

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं

By Dayanidhi

On: Thursday 03 September 2020
 
Photo: wikimedia commons

दुनिया भर में एक ओर जहां अक्षय ऊर्जा को बढ़ाकर विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय समस्याओं से निजात पाने की बात चल रही है। वहीं अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में लगने वाले अलग-अलग धातुओं के लिए की जा रही खनन को जैव विविधता के लिए खतरा बताया जा रहा है।

अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए विभिन्न धातुओं की आवश्यकता होती है। इन धातुओं को खनन के द्वारा निकाला जाता है। अब शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस खनन की वजह से जैव विविधता के लिए खतरा बढ़ गया है।

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय (यूक्यू) द्वारा किए गए एक अध्ययन में इसके प्रति आगाह किया गया है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशन्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ता डॉ. लॉरा सोन्टर ने कहा कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन में धातु की आवश्यकता जीवाश्म ईंधन की तुलना में बहुत अधिक होती है। इन धातु, सामग्रियों के खनन में वृद्धि होगी, क्योंकि जीवाश्म ईंधन को धीर-धीरे बंद करने की बात की जा रही है।

डॉ. सोन्टर ने कहा, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि लिथियम, कोबाल्ट, तांबा, निकल और एल्यूमीनियम जैसी धातुएं अक्षय ऊर्जा के लिए आवश्यक हैं। खनन से खनिज समृद्ध जगहों में स्थित जैव विविधता पर और दबाव पड़ेगा।

शोध टीम ने दुनिया के खनन क्षेत्रों का मानचित्रण किया। व्यापक डेटाबेस के अनुसार इसमें 62,381 पहले से चल रही, नई और बंद हो चुकी खदानें शामिल हैं। इन खदानों से 40 विभिन्न प्रकार की सामग्रियों को निकाला जा रहा था। 

उन्होंने पाया कि संभावित खनन गतिविधि वाले क्षेत्र में 5 करोड़ (50 मिलियन) वर्ग किलोमीटर जगह शामिल हैं। यह अंटार्कटिका को छोड़कर पृथ्वी का 35 प्रतिशत स्थलीय भूमि की सतह है। इनमें से कई क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं।

डॉ. सोन्टर ने कहा कि सभी खनन क्षेत्रों में लगभग 10 प्रतिशत वर्तमान में संरक्षित स्थलों के अंदर आते हैं। जिनमें से कई क्षेत्रों में खनन हो रहा है, वहां आसपास की बहुत सी प्रजातियों को भविष्य में संरक्षण के लिए प्राथमिकता देना जरूरी बताया गया है।

खनन क्षेत्रों के संदर्भ में विशेष रूप से अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री को निशाना बनाना, ठीक नहीं है। हमने पाया कि 82 प्रतिशत क्षेत्रों में खनन अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री के लिए किया जा रहा है। जिनमें से 12 प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र में आते हैं, 7 प्रतिशत प्रमुख जैव विविधता वाले क्षेत्रों और 14 प्रतिशत जंगल हैं। जिन खनन क्षेत्रों में संरक्षित क्षेत्र और जंगल थे, वे जो अक्षय ऊर्जा में उपयोग की जाने वाली सामग्री के लिए थे, उन खनन क्षेत्रों की तुलना में खानों का घनत्व कम था, जो अन्य सामग्रियों के लिए थे।

यूक्यू के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड कंजर्वेशन साइंस और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के प्रोफेसर जेम्स वाटसन ने कहा कि जैव विविधता पर अक्षय ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी)  के भविष्य के प्रभावों को अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियों में नहीं माना गया है।

प्रोफेसर वाटसन ने कहा 2020 के संयुक्त राष्ट्र की जैव विविधता के लिए रणनीतिक योजना के बारे में, दुनिया भर में वर्तमान में किए जा रहे विचार-विमर्श में, नए खनन से होने वाले खतरों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। शोध दल ने कहा कि सावधानीपूर्वक तय रणनीतिक योजना की तत्काल आवश्यकता थी। डॉ. सोन्टर ने कहा अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लिए अधिक खदान से निकाली जाने वाली सामग्री के रूप में जैव विविधता के लिए खनन का खतरा बढ़ जाएगा।

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