क्या हौज खास में रेस्तरां कर रहे है पर्यावरण सम्बन्धी नियमों को अनदेखा, एनजीटी ने जांच के दिए निर्देश

शिकायत है कि हौज खास में कुछ रेस्तरां और कैफे बिना अनुमति के खुली छतों पर तेज आवाज में लाइव संगीत बजा रहे हैं

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 01 September 2023
 
कैफे की छत से फुरसत के समय में हौज खास के डिस्ट्रिक्ट पार्क के सुंदर दृश्यों का आनंद लेते युवा; फोटो: आईस्टॉक

हौज खास में रेस्तरां द्वारा पर्यावरण नियमों की अनदेखी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संयुक्त समिति को जांच के निर्देश दिए हैं। मामला दिल्ली के हौज खास क्षेत्र का है। 

इस मामले में मौजूदा स्थिति की जांच के लिए एनजीटी के न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी नियमों को ताक पर रख हौज खास में चल रहे रेस्तरां के खिलाफ जांच के लिए संयुक्त समिति को गठित करने के आदेश दिए हैं।

यह समिति स्थिति की समीक्षा करने के साथ-साथ इसकी रोकथाम के लिए भी कार्रवाई करेगी। कोर्ट के मुताबिक इस समिति में हौज खास के एसडीएम के साथ, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

समिति को क्षेत्र का दौरा करने, आवेदकों की शिकायतों की जांच करने और यह सुनिश्चित करने का काम दिया गया है कि वहां के रेस्तरां ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के साथ पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का भी पालन करें।

एनजीटी ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा जारी दिशानिर्देशों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। कोर्ट ने रेस्तरां मालिकों को भी अपना पक्ष रखने देने की बात कही है। संयुक्त समिति को अगले दो महीनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

हौज खास गांव के एक निवासी ने शिकायत की है कि वहां कुछ रेस्तरां और कैफे बिना अनुमति के खुली छतों पर तेज आवाज में लाइव संगीत बजा रहे हैं। उन्होंने हौज खास के एसडीएम द्वारा दायर की गई कार्रवाई रिपोर्ट का भी जिक्र किया है, जिसमें एसडीएम ने पर्यावरण संबंधी नियमों विशेष रूप से ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 का उल्लंघन करने वाले रेस्तरां पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाने की बात कही है।

हालांकि, अदालत का मानना है कि इस मामले में लगाया गया जुर्माना और स्थानीय निवासियों को ध्वनि प्रदूषण से बचाने के लिए उठाने गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। 

सुकापाइका नदी जल निकासी की बहाली के मुद्दे पर एनजीटी ने तलब की रिपोर्ट

31 अगस्त, 2023 को एनजीटी ने कटक के कलेक्टर से एक रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा है। इस रिपोर्ट में एनजीटी ने सुकापाइका नदी जल निकासी चैनल की बहाली से जुड़ी परियोजना का काम कैसे चल रहा है, उसपर जानकारी मांगी है। यह रिपोर्ट अगले चार सप्ताह के भीतर कोर्ट में सबमिट करने है। मामले में अगले सुनवाई 27 सितंबर, 2023 को होगी।

इस मामले में आवेदक स्वरूप कुमार रथ ने शिकायत दर्ज कराई है। उनका कहना है कि कुछ लोगों ने ओडिशा में महानदी की एक शाखा सुकापाइका को अवरुद्ध कर दिया है। इस रुकावट ने नदी में एक सूखा क्षेत्र बना दिया है, जिससे सुकापाइका नदी के बारहमासी जल स्रोत के मुक्त प्रवाह बाधित हो गया है।

इसकी वजह से भू-माफियाओं को नदी तल पर अतिक्रमण करने का मौका मिल गया है। उनके द्वारा न केवल वहां अवैध रूप से रेत एकत्र की जा रही है साथ ही नदी तल कूड़ा-कचरे के डंप में बदल गया है। इसकी वजह से पूरा क्षेत्र प्रदूषित हो गया है।

28 सितंबर, 2022 को एनजीटी ने राज्य अधिकारियों से कहा था कि यदि सरकार ने सुकापाइका ड्रेनेज चैनल के जीर्णोद्धार के लिए 4967.13 लाख रुपए का प्रस्तावित बजट आबंटित नहीं किया है। तो उसे एक माह के अंदर अवश्य करें। कोर्ट ने इस काम को पूरा करने और इस बारे में रिपोर्ट सौंपने के लिए 13 मार्च, 2023 का समय दिया गया था। हालांकि राज्य अधिकारियों ने अभी तक इसकी पुष्टि करते हुए कोई रिपोर्ट नहीं भेजी है।

पमारी नाले में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए करने होंगे और अधिक प्रयास: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 29 अगस्त, 2023 को कहा है कि अधिकारियों को पमारी नाले में दूषित सीवेज को जाने से रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। मामला उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद की टुंडला नगर पालिका का है।

इस मामले में कोर्ट ने अधिकारियों से दो महीनों के भीतर पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों और एनजीटी के निर्देशों का पालन करते हुए कार्रवाई करने को कहा है। कोर्ट ने  अधिकारयों से की गई कार्रवाई पर पांच नवंबर, 2023 तक रिपोर्ट भी सबमिट करने के लिए कहा है। एनजीटी ने यह भी कहा कि उन्हें पहले जो प्रतिक्रियाएं मिली थीं, वे पर्याप्त नहीं थीं।

इस बारे में संयुक्त समिति की रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि टूंडला नगर पालिका ने पमारी नाले पर पक्की छत का निर्माण किया है और उसके ऊपर शौचालय भी बना दिया है। उनके पास शौचालय के लिए एक सेप्टिक टैंक और अलग से सोक पिट भी है। अदालत को यह भी बताया गया है कि नाले के ऊपर बने शौचालय हटा दिए गए हैं लेकिन "इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि छत के स्लैब भी हटाए गए हैं या नहीं।"

जांच के दौरान संयुक्त समिति ने यह भी पाया कि घरेलू सीवेज को पामारी नाले में छोड़ा जाता है, जो करीब 12 किलोमीटर की दूरी तय करता है और रास्ते में नाले के सीवेज मिश्रित दूषित जल का उपयोग स्थानीय किसानों द्वारा किया जाता है।

संयुक्त समिति ने देखा कि लोग अपने घर का गंदा पानी पमारी नाले में डाल रहे हैं। यह सीवेज करीब 12 किलोमीटर तक बहता है और स्थानीय किसान इसका उपयोग अपने खेतों के लिए करते हैं। वे पानी को अस्थाई रूप से रोकते हैं। जानकारी मिली है कि सीवेज या दूषित जल नाले में नहीं बह रहा और न ही यह सीधे यमुना में छोड़ा जा रहा है।

हालांकि, अधिकारियों ने यह माना है कि मानसून के सीजन में बारिश के चलते नाले का पानी यमुना में जा सकता है। ट्रिब्यूनल ने बताया कि अधिकारियों ने अपने जवाब में इस बात का जिक्र नहीं किया है कि पानी को अन्य जल निकायों में छोड़े जाने से पहले उसका उपचार करने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं। साथ ही उन्होंने ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए क्या किया है।

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