पर्यावरण मुकदमों की डायरी: एनजीटी ने कमेटी को दिए वेटलैंड्स से जुड़े आंकड़ें एकत्र करने के निर्देश

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें –

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 31 August 2020
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने नेशनल वेटलैंड्स कमेटी के लिए निर्देश जारी किया है। जिसमें देश के सभी महत्वपूर्ण वेटलैंड्स के संबंध में आंकड़ें एकत्र करने के लिए कहा गया है। इन वेटलैंड्स में पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का किस तरह से पालन किया जा रहा है, यह आंकड़ें उससे जुड़े हैं। साथ ही उनमें सुधार को सुनिश्चित करने से भी सम्बंधित हैं ।

भारत में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,  प्रदूषण नियंत्रण समितियों और वेटलैंड प्राधिकरणों को अपने-अपने राज्यों और प्रदेशों में मौजूद वेटलैंड के मैनेजमेंट से जुड़े आंकड़ों और उसकी स्थिति सम्बन्धी जानकारी को तीन महीने के भीतर पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को देना है। इसके आधार पर 21 जनवरी, 2021 तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करेगा।

कोर्ट द्वारा यह आदेश जम्मू कश्मीर में गैर वैज्ञानिक तरीके से कचरे की डंपिंग की जा रही थी। साथ ही वहां होकेसर, वुलर झील और क्रेतेचू-चंद्रहारा वेटलैंड पर अवैध तरीके से अतिक्रमण किया गया था। इसी मामले में कोर्ट ने यह आदेश जारी किया था।

इस मामले में 18 अगस्त को जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन्यजीव संरक्षण विभाग और बडगाम, श्रीनगर और बांदीपोरा के उपायुक्तों की संयुक्त समिति द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट में होकेसर वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व, वुलर झील और क्रेतेचू के संरक्षण से जुड़े उपायों और उनकी प्रगति के बारे में उल्लेख किया गया है। 

इस रिपोर्ट पर आवेदक - राजा मुजफ्फर भट ने भी कुछ सुझाव देते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है। इस मामले में एनजीटी ने संयुक्त समिति को आगे की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि यदि आवेदक द्वारा दिए सुझाव अपनाये जा सकते है तो उनपर भी विचार किया जाए।   


मेरठ नगर निगम ने ठोस कचरे के मामले में एनजीटी के सामने प्रस्तुत की अपनी रिपोर्ट

मेरठ नगर निगम ने एनजीटी के समक्ष एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में गैर-वैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे ठोस कचरे की डंपिंग के खिलाफ जो कार्रवाई की है, उसकी जानकारी दी है। मामला काली नदी के किनारे गांवड़ी गांव से जुड़ा है।

रिपोर्ट के अनुसार इस साइट पर जो भी कचरा पड़ा था वो ताजा था। जिसको बैक्टीरिया की मदद से मिश्रित कचरे को खाद में बदल दिया गया है। जबकि जो हरा कचरा था उसे भी खाद में बदल दिया गया है, जिस वजह से वहां दुर्गंध आना पूरी तरह बंद हो गया है। वहीं नदी किनारे 120 मीटर की दूरी में फैले कचरे को जेसीबी और अन्य मशीनों की मदद से इकठ्ठा किया गया है। जिसके बाद उस जगह की सफाई की गई है और वहां 3,500 पेड़ लगाए गए हैं।

वहां मौजूद कचरे को साफ़ करने के लिए एक एयर ब्लास्टिक सेग्रीगेटर मशीन लगाई गई है। इस मशीन की क्षमता 15 टन प्रति घंटा है और यह मशीन दिसंबर, 2019 के बाद से लगातार काम कर रही है। यह मशीन एक तरफ से कंपोस्ट बनाती है, दूसरी साइड में इनर्ट पार्ट और तीसरी तरफ से रिफ्यूज-डिराइव्ड फ्यूल तैयार करती है।

मेरठ नगर निगम ने जीरो सेनेटरी लैंडफिल तकनीक का उपयोग किया है। जो खाद तैयार होती है, उसका उपयोग नगर निगम ही करता है। इसके साथ ही कचरे में से लोहे, कांच, ईंट और पत्थर को अलग करने के बाद अन्य कचरे का उपयोग नगर निगम द्वारा किया जा रहा है। जबकि आरडीएफ का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही मेरठ नगर निगम ने एक मेगावाट बिजली संयंत्र के लिए मेसर्स बिजेंद्र इलेक्ट्रिकल एंड रिसर्च को मंजूरी दी है।


कृष्णागिरी में अवैध रूप से पाली जा रही थी अफ्रीकी कैटफिश

तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में अवैध रूप से अफ्रीकी कैटफिश पाली जा रही थी, जिसके खिलाफ उचित कार्रवाई की गई है। यह जानकारी कृष्णागिरी जिला मजिस्ट्रेट ने एनजीटी को दी है। गौरतलब है कि अफ्रीकी कैटफिश एक मांसाहारी प्रजाति की मछली है, जिसकी खेती को जैव विविधता अधिनियम, 2020 के तहत प्रतिबंधित किया गया है।

इन मछलियों को बड़ा करने के लिए चिकन, मांस और अंडे के अपशिष्ट खिलाये जाते हैं। जिसे वजह से दुर्गंध फैलती है और जल प्रदूषित हो जाता है।

इसके बाद एनजीटी ने इस मामले को बंद कर दिया है।

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